Saturday, June 5, 2010

काचरियाँ कै दिनाँ मैं.....


मेरी दादी..अर.काचरी..
मेरी दादी रात न खिचङी खाण कै बखत(काचरियाँ कै दिनाँ मैं) काचरी छोलया करदी मैं दादी की लाडली थी खिचङी खाये पाछ उसकै धोरैए बैठी रैया करदी। कई बर इसा होंदा अक मेरी दादी काचरी छोलीं जांदी अर मैं खाईं जांदी, ईसी मिठी लागदी अक सब के सवाद नयारे-नयारे, नुँ जाणदी अक इबकाअल दखाँ काचरी किसी पावैगि। मेरी दादी रोलै करण लागदी, हे छोरी के होया ईसा ऐक भी काचरी बोईयै में कोनी पङंदी, कितणी बार होगी मनैं छोलदी हाँण।

काचरी चटनी
लहासी का गिलास
दादी इस ढाल अक एक छोतक लिकङा करदा बीच मैं किते नहीं टुटदा। दादी घणीये काचरी छोल-छोल कीं सुखाया करदी, सारी साल चटणी मैं गेरण खातर। काचरियाँ की चटणी भोत आछी बणया करै।

इसने बणाण खातर आपिंनै चाईयें किमे साबत लाल मिरच-सुखोङी, लहसण, थोङा सा नूण हर थोङी लहासी

अर या चटणी कुंडी सोटै तैं घणी बढिया बणा करै।

बणाण का तरिकाः

छोलोड़ी कचरियां में साबत लाल मिर्च लहसन आर नमक घाल कीं कुण्डी सोटे तं खूब कूट ल्यो अर जिद कूट जां तो दही घाल कीं खूब रगड़ ल्यो .

बढिया चटनी बण जागी. इब इसनें चाहे तो बाजरे की रोटी सतीं खाओ या मेसी रोटी सतीं.

अलूणी घी

रोटी, अलूणी घी, अर एक लहासी का गिलास सारे पकवान एक कानी अर यो पकवान एक कानीं.

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