Tuesday, December 27, 2011

स्त्रियाँ इस वर्ष ....और स्त्री और मातृत्व की परीक्षा

यह वर्ष यानी कि 2011 महिलाओं के लिए उत्तमव उल्लेखनीय वर्ष रहा है इस वर्ष अक्टूबर में तीन महिलाओं ने अपने-अपने देशों में सराहनीय काम करने की वजह से नोबल शान्ति पुरस्कार साझा किया है.

एलेन जोंसन पिछले लाइबेरिया सरकारों के एक मुखर आलोचक रही जब तक कि वह २००५ में अफ्रीकी देशों की पहली मुखिया ना बन गई. लेय्माह ग्बोवी ने अपने देश लाइबेरिया में हो रहे गृह युद्ध के खिलाफ महिलाओं को एकजुट किया. तवाकुल कारमन एक पत्रकार हैं और इस्लामिक पार्टी इसला की सदस्य हैं और यमन के रास्ट्र पति, अली अब्दुल सालेह के खिलाफ मोर्चे की कमान सम्भाले थीं.

ओस्लो। लाइबेरिया और यमन में अन्याय, तानाशाही और यौन उत्पीड़न के खिलाफ संघर्ष करने वाली तीनों महिलाओं ने शनिवार को नार्वे की राजधानी ओस्लो में आयोजित एक समारोह में शांति का नोबेल पुरस्कार ग्रहण किया।ओस्लो के सिटी हॉल में आयोजित इस समारोह में लाइबेरिया की राष्ट्रपति एलेन जॉनसन सिरलीफ, उन्हीं के देश की निवासी लेयमाह ग्बोवी और यमन की तवाकुल करमान ने तालियों की गूंज के बीच अपना नोबेल डिप्लोमा और मेडल ग्रहण किया।

यह तीनों महिलाएं सामान्य तौर पर मानवाधिकार और विशेष तौर पर महिलाओं की समानता तथा शांति के लिए संघर्ष का प्रतिनिधित्व करती हैं।

वर्ष 2004 के बाद से उप सहारा देशों की किसी भी महिला ने यह पुरस्कार प्राप्त नहीं किया है। नोबेल समिति ने इससे पहले केन्या की वांगरी मथाई को जंगलों को नष्ट होने से बचाने के लिए गरीब महिलाओं को एकत्र करने और पेड़ लगाने के लिए इस पुरस्कार से सम्मानित किया था।

सिरलीफ को पहली बार वर्ष 2005 में लाइबेरिया का राष्ट्रपति चुना गया और इस साल अक्टूबर में हुए चुनावों में जीत हासिल करके वह दोबारा सत्ता में लौटीं। उन्हें अपने देश को एक भयावह गृहयुद्ध से बाहर निकालने के लिए जाना जाता है।



एलन जोनसन

39 वर्षीय ग्बोवी ने लंबे वक्त तक छत्रपों को चुनौती देते हुए महिलाओं के दुष्कर्मो और उनके अधिकारों के लिए संघर्ष किया। उन्होंने वर्ष 2003 में सैकड़ों महिलाओं की रैली का नेतृत्व करके उन लड़ाकों को हथियार मुक्त करने की मांग की जो 14 वर्ष पुराना गृहयुद्ध समाप्त होने के बावजूद महिलाओं के साथ जबरदस्ती करते थे।

कारमन एक पत्रकार हैं और इस्लामिक पार्टी इसला की सदस्य हैं। यह नोबेल पुरस्कार से सम्मानित होने वाली पहली महिला हैं। वह कारमन नोबेल शांति पुरस्कार पाने वाली सबसे कम उम्र की व्यक्तित्व हैं।




लेयमाह ग्बोवी


किसी को भी यह बात आश्चर्य में डाल सकती है कि कैसे एक सिर ढकने वाली महिला इतनी मुखर हो सकती है,और कैसे एक अफ्रीकी राष्ट्र अमेरिका से पहले महिला रास्त्र्पति चुनने की पहल कर सकता है.कइयों के लिए यह भी आश्चर्य हओ सकता है कि कैसे उसकी मातृभूमि को नष्ट करने में युद्धरत गुटों के खिलाफ शांतिपूर्ण ढंग से आंदोलन का तेत्र्त्व किया.

बहुत से लोग तर्क देते हैं कि महिला होने के नाते मीडिया इन्हें ज्यादा तरजीह दे रही है.परंतु हान उपलब्धियों को लिंग, जाती, या विश्वास की मान्यता के बिना अपना लेना चाहिये. और में स्वयं इस बात से सहमत हूँ कि इनके काम को सराहना चाहिये और उसे तरजीह देनी चाहिये इसमें कोई बुराई नहीं है. यह उन लोगों के आँखें खोलने के लिए है जो समझते हैं महिलाएं समाज पर कोई पराभव नहीं डाल सकती. यह तीनों महिलाएं दर्शाती हैं कि जब आधी जनसंख्या सामाजिक, आर्थिक और राज्नितिक गतिविधियों में संलग्न है तब वह क्या कर रहीं है.


तवाकुल कारमन

यह तीन महिलाएं तो सिर्फ़ "ऊँट के मुँह में जीरा हैं." सभी महाद्वीपों में महिलाएँ अपने दैनिक जीवन में संघर्षरत हो अपना और अपने आस-पास का जीवन बेहतर करने में जुटी हैं.दुनिया ने उनके काम को देखा और उन्हें सम्मानित किया उस सम्मान से जो उन्हिने वर्षों पहले अर्जित कर लिया था.



मेरी भतीजी ...जप कि अपने संगीत में व्यस्त है...
और में इस फोटो में ऊपर की तस्वीर में ... जीवन भर संघर्ष सं घर्ष और संघर्ष ................. ...........

बिटिया "धारिणी "साहित्य सर्जन पत्रिका के कालम लिखती है नीचे इस महीने का लेख पढ़ें ( नीचे के लिंक पर चटकाएं)
स्त्री और मातृत्व की परीक्षा

खुदा हाफ़िज़!

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