Saturday, March 24, 2012

Martyrdom Day and Vikram_Samvat 2069


my computer was not on working order since last 2-3 days, so i am posting the poem my daughter wrote .....on Shaeed Bhagat Singh.......on 23rd march also new Vikram_Samvat 2069 will be observed on Hindu calender from 23rd march 2012

शहीद-आज़म के नाम एक कविता


उस वक़्त भी होंगे तुम्हारी बेचैन करवटों के बरक्स

चैन से सोने वाले
आज भी बिलों में कुलबुलाते हैं
तुम्हारी जुनून मिजाज़ी को "खून की गर्मी कहने वाले

तुमने भी तो दुनिया को बिना परखे ही जान लिया होगा

जब
कई लंगोटिए यार तुम्हारी उठा-पटक से
परेशान हो

कहीं दूर छिटक गए होंगे


तुम्हारी भीगी मसों की गर्म तासीर से

शीशमहलों में रहने वालों की

दही जम जाया करती होगी

दिमागी नसों की कुण्डी खोले बिना ही तुम
समझ गए होगे कि
इन्सान- इन्सान में जमीन आसमान जितना असीम
फर्क भी हो सकता है

अपने चारों ओर बंधी बेड़ियों
के भार को संभालते हुए
कोयले से जो लिखा होगा तुमने

उसे पढ़
कईयों ने जानबूझ कर अनजान बन

अपनी गर्दन घुमा ली होगा
कई ठूंठ बन गए होंगे और
कई बहरे, काने और लंगडे बन

अपनी बेबसियों का बखान करने लगें होंगे


परेशान आज भी बहुत है दुनिया,
ज़रा सा कुरेदने पर

लहू के आंसूओं की

खड़ी नदियाँ बहा सकती है
पर क्रांति की बात दूसरी-तीसरी है

जनेऊ अब भी खीज में उतार दे कोई
पर वह बात नहीं बनती
जो मसीहाई की गली की ओर मुडती हो

क्रांति बोल-वचन का मीठा और सूफियाना मुहावरा बन
कईयों के सर पर चढ

आज भी बेलगाम हो

भिनभिनाता है

लहू में पंगे शेरे-पंजाब की

दिलावरी को याद करने के लिए
पंजों के बल खडे होना पड़ता है
पर

हमारी तो शुरुआ़त ही लड़खडाने से होती है


हम हर पन्ने को शुरू से लेकर अंत तक ते हैं
और
लकीर को लकीर ही कहते है

रटे-रटाये प्रश्नों के बीच आये

एक टेढे प्रश्न को बीच में ही छोड़

भाग खडे होते हैं

जब क्रांति का अर्थ समझने के लिए इतिहास की पुस्तके उठाते हैं

और सिर्फ उनकी धुल ही झडती है हमसे

हमारे समझने बूझने का

पिरामिड अब इतना बौना हो गया है
कि मारी मुंडी क्रांति की चौखट से

see the link for its publication... http://www.jankipul.com/2012/03/blog-post_5212.html?spref=fb



for my inspirational blog today this link.........Musings in the moment

Happy day!!!

No comments:

Post a Comment