Saturday, June 16, 2012

परम्पराएं, क्रोशिया

राजस्थान के कबीलों ने अपनी संस्क्रती को बखूबी सहेज रखा है जबकि हम आधुनिकता को ओढे इसे पीछे छोड़ते चले जा रहे हैं
राजस्थानी कबीलाई महिला अपने परम्परागत लिबास में  
 इस टिब्बे की रेत   और इन ऊँटों को देख मुझे अपना बचपन याद आ गया जब मैं इन ऊँटों के पिलान पर बैठा करती थी  और  हमारे ऊंट होली आले  टिब्बे से होता हुआ हमारे खेत जाया करता

टिब्बे की रेत 

 क्रोशिया

मैंने अपने इस खादी के कांथा कधी वाले कमीज़ के गले के पहले के क्रोशिये की लेस को उधेड़ इसे बड़ा किया इसकी बाहें भी काट दिन और इसे विदाउट स्लीव बना कर सईदों से भी ढीला कर दिया ताकि मैं इसे घर पहन सकूँ ...

पीछे का गला  
 गले को काट कर बड़ा किया ..अपनी जेनोम मशीन से किनारों(गले और बाहों  के) पर जिग-जैग मशीन चला कर पक्का किया और फिर क्रोशिया चला कर बार्डर यानि ट्रिम बना दी

सामने का गला

 इसके लिए मैंने मशीन के धागे (तेहरेका इस्तेमाल किया है...
हैं ना सुन्दर !!!!!

शब्बा खैर!

No comments:

Post a Comment