Tuesday, April 23, 2013

बहु उतारने की रस्म,Summer dress


बहु उतारने की रस्म



गाडी से उतरते वक्त बहु कुक सिलावा के डिब्बे को सासुजी को देकर पैर छुती है। नाल लपेटा हुआ पांच या सात पत्तो की पीपल की डाली, गेहूं के आटे को भेजाकर उसमें खड़ी करके लोटे के ऊपर रखकर बहु के सिर पर रखते हैं, पहले से दरवाजे मे चैक पुरकर पाटा बिछाकर रखें, बेटा-बहू को उस पर खड़ा करें। बेटा की माँ बेटा-बहू को मिनती है। वार फेर करके पाटा से उतारकर अन्दर ले जाते हैं घर में बहू पहले दायां पांव अन्दर रखती है कोई भी सात थालियों को लाईन से रखते हैं थाली में कुछ मिठाई रखनी होती है। फिर बेटा कटार से उस थाली को सरकाता जाता है और बहु उठाकर इकट्ठा करती जाती है। इकट्ठी करते वक्त आवाज नहीं होनी चाहिये। इकट्ठा करके सासु को देकर पैर पड़ती है फिर बेटा-बहु को थापा के आगे ले जाकर धोक दिलाते हैं ।

फिर सबसे पहले सास घी का दिया जला कर बहु का मुँह देखती है। और बहु को मुँह दिखाई देती है, काजल घालने वाली एक परात में कच्चा दूध, मुंग, चावल, दूब, सुपारी, कोडी, छलला, पैसा, हल्दी की गांठ डालकर बेटा-बहु को जुआ-कंगना खिलाती हैं। सातवीं बार वर को जिताते हैं और चाँदी का छल्ला बेटा बहु को पहना देता है। बेटा बहु एक दूसरे का कांगन डोरा खोलते हैं, दूल्हे को एक हाथ से खोलने की और दूल्हन को दोनों हाथों से खोलने की इजाजत होती है। फिर आपस में एक दूसरे की मुट्ठी खोलते हैं। फिर सारा सामान खोला हुआ बेटा बहु के सिर पर रख देता है। फिर बहु का सात सुहागन मुँह बिटालती हैं इस रस्म को गोत कुंडाला बोलते हैं। कई लोगों के यहां सास-बहू आपस में एक प्लेट में घी-खीचड़ी खाती हैं (कहा जाता है सास-बहू घी खीचड़ी हो गई अर्थात् दोनों के मन मिल गए)।

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 Just stummbled on this summer skirt Here... 
Happy Day!

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