Sunday, November 10, 2013

लाओत्से सूत्र ,Quote



लाओत्से कहता है, एक और ही रास्ता है। और वह रास्ता है: घाटी के राज को जान लेना। वर्षा होती है; पहाड़ खाली रह जाते हैं, घाटियां भर जाती हैं, लबालब भर जाती हैं। राज क्या है? राज यह है कि घाटी पहले से ही खाली है। जो खाली है वह भर जाता है। पहाड़ पहले से ही भरे हैं, वे खाली रह जाते हैं। अहंकार रोग है, तो निरहंकारिता में राज है, कुंजी है।
तुम जब तक दूसरे से अपने को तौलोगे और दूसरे से आगे होना चाहोगे तब तक तुम पाओगे कि तुम सदा पीछे हो। जिसने आगे होना चाहा, वह सदा पाएगा कि वह पीछे है। जिसने प्रतिस्पर्धा की, वह सदा पाएगा कि हार गया। लेकिन जो पीछे होने को राजी हो गया, जीवन की इस व्यर्थ दौड़ को देख कर, समझ कर, ध्यान से जो पीछे खड़ा हो गया, और जिसने कहा हम दौड़ते नहीं आगे होने को, लाओत्से कहता है, एक अनूठा चमत्कार घटित होता है कि जो आगे होने की दौड़ में होते हैं वे हीन हो जाते हैं और जो पीछे खड़े हो जाते हैं उनकी श्रेष्ठता की कोई सीमा नहीं है।
सच तो यह है कि पीछे तुम खड़े ही जैसे होते हो वैसे ही श्रेष्ठ हो जाते हो, हीनता मिट जाती है। क्योंकि तुलना ही रही तो हीन कैसे हो सकते हो? किसी से तौलोगे तो पीछे हो सकते हो। तौलते ही नहीं किसी से, पीछे, सबसे पीछे ही खड़े हो गए, अपने तईं खड़े हो गए, अपने हाथ से ही संघर्ष छोड़ दिया और पीछे गए, अब तो तुम्हें हीनता का कैसे बोध होगा? हीनता का घाव भर जाएगा; और श्रेष्ठता के फूल उस घाव की जगह प्रकट होने शुरू हो जाते हैं। श्रेष्ठ केवल वे ही हो पाते हैं जो श्रेष्ठ होने की दौड़ में नहीं पड़ते। और हीन से हीनतर होता जाता है मनुष्य, जितनी ही दौड़ में पड़ता है।

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