Thursday, June 4, 2015

Mending for life

Look at him he is darning the dresses that got cuts by moths or got any damage done with various reasons.
last week i had made my shirt patched by him and took this photograph

 when my daughter was a kid she accompanied me during  my visits to his shop to darn dresses.
I think that was the reason she wrote this poem on him ............

रसूल रफूगर का पैबंदनामा By विपिन चौधरी

फटे कपडे पर एक जालीदार पुल सा बना  
कपड़ों का खोया हुआ मधुमास लौटा देता है वह

जब रसूल के इस हुनर को खुली आँखों से देखा नहीं था
तब सोचा भी नहीं था
और तब तक जाना भी नहीं था
कि फटी चीजों से इस कदर प्रेम भी किया जा सकता है

खूबसूरत जाल का महीन ताना-बाना
उसकी खुरदरी उँगलियों की छांव तले
यूँ उकेरता है कि
देखने वालों की
जीभ दांतों तले आ जाती है  
और दांतों को भरे पाले में पसीना आने लागता है

घर के दुखों की राम कहानी को
एक मैले चीथड़े में लपेट कर रख आता है वह
अधरंग की शिकार पत्नी
बेवा बहन
तलाकशुदा बेटी
अनपढ़ और बेकार बेटे के दुखों के भार को वैसे भी
हर वक्त अपने साथ नहीं रखा जा सकता  

 दुखों के छींटों का घनत्व भी इतना
कि पूरे उफान से जलते चूल्हे की आंच भी
उनके बौछार से एकदम ठंडी पड़ जाए

माप का मैला फीता
गले में डाल
स्वर्गीय पिता खुदाबक्श की तस्वीर तले
गर्दन झुकाए खुदा का यह नेक बन्दा
कई बन्दों से अलग होने के जोखिम को पाले रखता है

बीबियों के बेल-बूटेदार हिजाबों.  
सुन्दर दुपट्टे,
रंग- बिरंगे रेशमी धागों,
पुरानी पतलूनों के बीच घिरा रसूल

उम्मीद का कोई भटका तारा
आज भी उसकी आँखों में टिमटिमाते हुए
संकोच नहीं करता
और क्या रंगीनियाँ चाहिए मेरे जैसे आदमी को
इस वाक्य को रसूल मिया कभी-कभार खुश
गीत की लहर में दोहराया करता है  

अपने सामने की टूटी सड़क
किरमिचे आईनों
टपकते नलों
गंधाते शौचालय की परम्परागत स्थानीयता को
सिर तक ओढ़ कर जीता रसूल
देशजता के हुक्के में दिन-रात चिलम भरता है

उसने अभी-अभी
अपनी अंटी से पचास रुपया निकाल रामदयाल पंडित को दिया है
और खुद फांके की छाह में सुस्ताने चल पड़ा है

सन १९३० में बनी पक्की दुकान को
बलवाईयों ने तोड़ दिया था
तब से एक खड्डी के कोने में बैठते है
और इस कोने को खुदा की सबसे बड़ी नेमत मानता  हैं

खुद के फटे कमीज़ को नज़रअंदाज़ कर  
फटे कपड़ों को रफू करता रसूल
दो दूर के छिटक आये पाटों को इतनी खूबसरती से मिलाता है
की धर्मगुरु का मिलन मैत्री सन्देश फीका हो जाता है

किसी दूसरे के फटे में हाथ डालना रसूल बर्दाश्त नहीं  
फटी हुए चीज़े मानीखेज हैं उसके लिए

इस चक्करवयुह की उम्र सदियों पुरानी है
एक बनाये
दूसरा पहने
और तीसरा रफू करे

दुनिया इसीलिए ऐसी है
तीन भागों की विभीत्सता  में बंटी हुई  
जिसमे हर तीसरे को
पहले दो जन का भार ढोना है

क्रांति की चिंगारी थमानी हो
तो रसूल रफूगर जैसे कारीगरों को थमानी चाहिए
जो स्थानीयता को धोता-बिछा कर  

फटे पर चार चाँद टांक देते हैं 
XOXO

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