Tuesday, September 1, 2015

My daughter's poems



१.

जनपद – कल्याणी आम्रपाली
भंते,
स्मृतियाँ
मुझे अकेला छोड़
अपनी छलकती हुयी गगरियाँ कमर पर उठा
पगडण्डी-पगडण्डी हो लिया करती हैं


स्मृतियों के मुहं मोड़ते ही
अजनबी झुरियां,
झुण्ड बनाकर
मुझसे दोस्ती करने के लिये आगे
बढ़ने लगती हैं


अठखेलियाँ करने को आतुर
रहने लगी हैं
बालों की ये सफ़ेद लटें
उफ्फ
अब और नहीं
भंते और नहीं


मेरा दमकता
नख-शिख
घडीदरघडी दरक रहा है


क्या हर चमकती चीज़
एक दिन इसी गति को जाती हैं  ?
राष्ट्र को बनानेबिगाड़ने वाला
मेरा सौन्दर्य  इतना कातर
क्योंकर  हुआभंते


जिस जिद्दी दुख,
का रास्ता सिर्फ नील थोथे को मालूम हुआ करता था
अब वही दुःख
मेरे  मदमदाते शरीर में
अपना  रास्ता ढूंढने लगा है

मुक्ति की
कोई राह है भंते
सीधी न सही
आड़ी-टेढ़ी ही


वैशाली की नगरवधू जनपद कल्याणी
बौद्ध भिक्षुणी के बाने
भीतर  भी
आसक्ति के कतरों को
अपने से अलग नहीं कर पा रही
इस अबूझ विवशता को क्या कोई नामकरण दिया है तुमने भंते


बिम्बिसार की मौन मरीचिका के आस-पास
एक वक़्त को मेरा प्रेम जरूर
टूटी चूड़ी सा कांच-कांच हो गया था
किन्तु  बुद्धमशरणम् के बाद  भी
अनुरागप्रीतिमुग्धता के अनगिनत कतरे मेरे तलुओं पर रड़क रहे हैं


सौंदर्य क्या इतनी मारक चीज़ है
तथागत
कि  मेरे प्रश्नों पर तुमने यूँ
एकाएक मौन साध
ध्यान की मुद्रा में खुद को स्थिर कर लिया  है
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xoxo

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