Have nothing in your house that you do not know to be useful, or believe to be beautiful. - William Morris
Tuesday, December 9, 2025
Roznamcha -Karguzari: I am in WE November2nd 2010
Roznamcha -Karguzari: I am in WE November2nd 2010: On request of Editor WE as fallows.. Dear writer, Since its first issue, Woman’s Era has made its mark among its readers beca...
राजा इक्ष्वाकु
राजा इक्ष्वाकु:
वह वैवस्वत मनु के पुत्र थे, जिन्हें वर्तमान कल्प (मनवन्तर) का पहला मानव माना जाता है। इस प्रकार, इक्ष्वाकु मानव जाति की प्राथमिक पीढ़ियों में से एक थे।
"इक्ष्वाकु" का शाब्दिक अर्थ संस्कृत में "गन्ना" होता है। कुछ पौराणिक कथाओं में उनके जन्म को राजा मनु की छींक से जोड़ा जाता है, जबकि अन्य संदर्भों में यह नाम उर्वरता और समृद्धि का प्रतीक माना जाता है।
उन्हें एक धर्मात्मा और कुशल प्रशासक माना जाता था।
उन्होंने अपने राज्य में वैदिक धर्म और व्यवस्था को स्थापित किया।
उन्होंने कई यज्ञ किए और ऋषियों का सम्मान किया।
उनके वंश में आगे चलकर राजा हरिश्चंद्र, राजा सगर, राजा दिलीप, राजा रघु और सबसे महत्वपूर्ण, भगवान श्री राम जैसे महान सम्राट हुए।
संक्षेप में, राजा इक्ष्वाकु वह नींव का पत्थर थे जिस पर बाद में रघुवंश (सूर्यवंश का एक और नाम) की गौरवशाली इमारत खड़ी हुई, जो प्राचीन भारतीय इतिहास में आदर्श शासन और धर्मपरायणता का प्रतीक बन गया।
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xoxo
Monday, December 8, 2025
Shraddhadeva Manu
वैवस्वत मनु (Shraddhadeva Manu)।
"वैवस्वत" शब्द का अर्थ है 'विवस्वान (सूर्य देव) के पुत्र'। "मनु" शब्द 'मन' धातु से बना है, जिसका अर्थ विचार करना या सोचना होता है, इसलिए उन्हें पहला विचारक मनुष्य माना जाता है।
सूर्यवंश से संबंध
वह सूर्यवंश के दूसरे प्रमुख सदस्य हैं:
उनके पिता विवस्वान (सूर्य देव) हैं, जिन्हें सूर्यवंश का मूल संस्थापक माना जाता है।
उनके पुत्र राजा इक्ष्वाकु थे, जिन्होंने अयोध्या में पहले राज्य की स्थापना की।
मुख्य भूमिकाएँ और कहानियाँ
प्रथम मनुष्य और मानव जाति के पिता:
हिंदू पौराणिक कथाओं के अनुसार, वर्तमान सृष्टि चक्र (जिसे सप्तम मन्वंतर कहा जाता है) में मनु पहले मनुष्य थे। माना जाता है कि पृथ्वी पर मौजूद सभी मनुष्य उन्हीं की संतान हैं।
जल प्रलय की कथा (मत्स्य अवतार):
मनु से जुड़ी सबसे प्रसिद्ध कथा 'महाप्रलय' की है। जब एक विशाल जल प्रलय आने वाली थी, तब भगवान विष्णु ने मत्स्य (मछली) अवतार लिया और मनु को आगाह किया। भगवान मत्स्य ने मनु की नाव को सुरक्षित स्थान पर पहुँचाया और सृष्टि के बीज बचाए। प्रलय के बाद, मनु ने नए सिरे से मानव सभ्यता की स्थापना की।
धर्म और नियम के संस्थापक:
मनु को धर्म और सामाजिक व्यवस्था का प्रणेता माना जाता है। हिंदू धर्म का प्रसिद्ध ग्रंथ मनुस्मृति (जिसे मानव धर्मशास्त्र भी कहते हैं) उन्हीं के उपदेशों और संहिताओं पर आधारित माना जाता है, जिसमें जीवन जीने के नियम और सामाजिक कर्तव्य बताए गए
संक्षेप में, वैवस्वत मनु वह महान ऋषि और राजा हैं जिन्होंने सूर्
• नाम: वैवस्वत मनु (Shraddhadeva Manu)।
• अर्थ: "वैवस्वत" शब्द का अर्थ है 'विवस्वान (सूर्य देव) के पुत्र'। "मनु" शब्द 'मन' धातु से बना है, जिसका अर्थ विचार करना या सोचना होता है, इसलिए उन्हें पहला विचारक मनुष्य माना जाता है।
सूर्यवंश से संबंध
वह सूर्यवंश के दूसरे प्रमुख सदस्य हैं:
• उनके पिता विवस्वान (सूर्य देव) हैं, जिन्हें सूर्यवंश का मूल संस्थापक माना जाता है।
• उनके पुत्र राजा इक्ष्वाकु थे, जिन्होंने अयोध्या में पहले राज्य की स्थापना की।
3. मुख्य भूमिकाएँ और कहानियाँ
प्रथम मनुष्य और मानव जाति के पिता:
हिंदू पौराणिक कथाओं के अनुसार, वर्तमान सृष्टि चक्र (जिसे सप्तम मन्वंतर कहा जाता है) में मनु पहले मनुष्य थे। माना जाता है कि पृथ्वी पर मौजूद सभी मनुष्य उन्हीं की संतान हैं।
मनुस्मृति: उन्हें पारंपरिक रूप से प्राचीन भारतीय कानून और सामाजिक आचार संहिता, मनुस्मृति (Manusmriti) का लेखक माना जाता है।
महाप्रलय के नायक: हिंदू पौराणिक कथाओं में, वैवस्वत मनु वह शख्सियत हैं जिन्होंने भगवान विष्णु के मत्स्य अवतार की सहायता से महान जलप्रलय (महाप्रलय) से जीवन की रक्षा की थी। उन्होंने हर प्रजाति के एक जोड़े और सप्त ऋषियों को बचाने के लिए एक विशाल नाव का निर्माण किया।
वर्तमान मन्वंतर के मनु: हिंदू कालगणना के अनुसार, वर्तमान युग (कल्प) में चल रहे चक्र को 'सातवां मन्वंतर' कहा जाता है, और वैवस्वत मनु ही इस वर्तमान मन्वंतर के मनु हैं, यानी वर्तमान मानव जाति के पूर्वज।
Vivasvan(सूर्य देव)
विवस्वान (सूर्य देव)
विवस्वान (Vivasvan) सूर्य देव का एक विशेष नाम है और वर्तमान मन्वंतर के प्रमुख सूर्य देवता हैं। हिंदू पौराणिक कथाओं में, वह महत्वपूर्ण स्थान रखते हैं क्योंकि उन्हें वर्तमान मानव जाति के पूर्वज वैवस्वत मनु, मृत्यु के देवता यमराज, और यमुना नदी के पिता के रूप में जाना जाता है।
पौराणिक महत्व और कथाएं
आदित्य स्वरूप: विवस्वान बारह आदित्यों में से एक हैं, जो ऋषि कश्यप और उनकी पत्नी अदिति के पुत्र हैं।
सृष्टि के पालक: वह सूर्य ग्रह के अधिष्ठाता देवता हैं, जो अपनी असीम शक्ति और ऊष्मा से सभी ग्रहों को प्रकाश और गर्मी प्रदान कर नियंत्रित करते हैं।
ज्ञान के स्रोत: पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, भगवान कृष्ण ने सर्वप्रथम विवस्वान को ही भगवद्गीता का ज्ञान दिया था।
वंश परंपरा: विवस्वान की पत्नी संज्ञा थीं, जिनसे उन्हें तीन संतानें प्राप्त हुईं:
वैवस्वत मनु: ये पहले मानव और वर्तमान मन्वंतर (कालचक्र) के मनु हैं, जिनसे समस्त मानव जाति की उत्पत्ति मानी जाती है।
यम (यमराज): मृत्यु के देवता।
यमुना: एक पवित्र नदी देवी।
अन्य प्रमुख पुत्र
विवस्वान के अन्य पुत्रों में सम्राट कर्ण (महाभारत के अनुसार) और वानरराज सुग्रीव (रामायण के अनुसार) भी शामिल हैं।
विवस्वान नाम का शाब्दिक अर्थ "उज्ज्वल," "चमकदार," या "दिव्य सूर्य" होता है, जो उनकी तेजस्वी प्रकृति को दर्शाता है।
xoxo
Sunday, December 7, 2025
मित्र सप्तमी
आज हिंदू पंचांग के अनुसार, 7 दिसंबर 2025 को मार्गशीर्ष (अगहन) मास के शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि है।आज हमने मित्र सप्तमी का पर्व मनाया, जो सूर्य देव को समर्पित है।आज हमने सूर्य की पूजा की और स्वास्थ्य तथा समृद्धि के लिए प्रार्थना की।
पूजा के समय सूर्य देव का मंत्र पढ़ा
एहि सूर्य सहस्त्रांशो तेजोराशे जगत्पते. अनुकम्पय मां देवी गृहाणार्घ्यं दिवाकर..
ॐ भूर्भुवः स्वःतत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्यः धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात्॥
आज सूर्य देव का दिन (रविवार) है, इसलिए धार्मिक कार्यों और सूर्य पूजा के लिए यह एक अच्छा दिन माना जाता है.
आज हम विवस्वान (सूर्य देव), वैवस्वत मनु और राजा इक्ष्वाकु—जिन्हें सूर्यवंश का संस्थापक माना जाता है—के बारे में विस्तार से चर्चा करेंगे। ये तीनों हिंदू पौराणिक इतिहास की वे महत्वपूर्ण कड़ियाँ हैं, जिनसे अयोध्या के प्रतापी रघुवंश (जिसमें भगवान श्री राम हुए) की शुरुआत होती है।
विवस्वान (सूर्य देव), मनु और राजा इक्ष्वाकु हिंदू पौराणिक कथाओं में सूर्यवंश के तीन महत्वपूर्ण और प्रारंभिक सदस्य हैं। ये तीनों एक-दूसरे से सीधे संबंधित हैं।
1. विवस्वान (सूर्य देव)
परिचय: विवस्वान सूर्य देव का एक नाम है, जिन्हें वैदिक ग्रंथों में एक प्रमुख देवता माना जाता है। वह भगवान कश्यप और अदिति के पुत्र हैं।
(Source:internet)
भूमिका: हिंदू धर्म में, विवस्वान को सूर्यवंश का आदि-प्रवर्तक या मूल स्रोत माना जाता है। भगवद गीता (अध्याय 4, श्लोक 1) में भगवान कृष्ण ने स्वयं उल्लेख किया है कि उन्होंने यह अविनाशी योग विज्ञान सबसे पहले विवस्वान को सिखाया था।
2. मनु (वैवस्वत मनु)
परिचय: मनु, जिनका पूरा नाम वैवस्वत मनु या श्रद्धादेव मनु है, विवस्वान (सूर्य देव) और उनकी पत्नी संज्ञा के पुत्र हैं। उन्हें मानव जाति का पिता और प्रथम मनुष्य माना जाता है।
(Source:internet)
भूमिका: मनु ने ही अपने पिता विवस्वान से योग और धर्म का ज्ञान प्राप्त किया और उसे पृथ्वी पर मानव समाज के लिए स्थापित किया। मनुस्मृति जैसे धर्मग्रंथों की रचना का श्रेय भी उन्हीं को जाता है। उन्होंने एक महान जल प्रलय (जिसे मत्स्य अवतार की कथा में वर्णित किया गया है) के दौरान मानव जाति की रक्षा की।
राजा इक्ष्वाकु
परिचय: राजा इक्ष्वाकु वैवस्वत मनु के दस पुत्रों में सबसे बड़े थे।
(Source:internet)
भूमिका: इक्ष्वाकु कोसल राज्य के पहले राजा और अयोध्या शहर के संस्थापक माने जाते हैं। उन्होंने ही अपने पिता मनु द्वारा दिए गए ज्ञान के आधार पर पृथ्वी पर एक सुसंगठित राजव्यवस्था और इक्ष्वाकु वंश (जिसे सूर्यवंश भी कहा जाता है) की स्थापना की।
वंश: इसी प्रतापी वंश में आगे चलकर राजा हरिश्चंद्र, राजा भगीरथ, राजा रघु और अंततः भगवान श्री राम का जन्म हुआ। जैन धर्म के पहले तीर्थंकर ऋषभदेव भी इसी वंश से थे।
संक्षेप में, ये तीनों हस्तियाँ सूर्यवंश के संस्थापक क्रम में हैं, जिन्होंने वैदिक ज्ञान और क्षत्रिय परंपरा को पृथ्वी पर स्थापित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
rest is in the next post...continued...
Saturday, December 6, 2025
A PRICELESS VASE WOVEN FROM A MOTHER'S MEMORIES.
माँ की यादों से बना एक अमूल्य फूलदान।
मैंने अपने घर में बेकार पड़ी चीजों—एक जूट की अनाज की बोरी और छोड़े गए केबल वायर—को एक खूबसूरत फूलदान में बदलकर रीसायकल किया है। यह परियोजना न केवल रचनात्मकता का प्रतीक है, बल्कि इसमें मेरी स्वर्गीय माँ की मेहनत, प्यार और यादें भी जुड़ी हैं। इस फूलदान को बनाने की प्रक्रिया में बहुत मेहनत लगी, जिसका श्रेय मेरी माँ को जाता है। जूट की बोरी को "उधेड़ने" (unraveling) का थकाऊ और मेहनती काम उन्होंने ही किया था, जिससे मुझे लंबे, पतले जूट के धागे (ट्विन) मिले। उन धागों को केबल वायर के चारों ओर लपेटने का मेहनती काम भी उन्होंने ही किया, ताकि वायर छिप जाए और सामग्री एकसार हो जाए। उनकी हर एक मेहनत की गांठ में उनका प्यार और आशीर्वाद छिपा है। इस फूलदान को छूने पर मुझे उनकी ममता और उपस्थिति का गहरा अहसास होता है। इसके बाद, तैयार केबल को एक टेराकोटा के बर्तन पर लपेटा गया, और उसका ढक्कन भी उसी तरह बनाया गया। परिणामस्वरूप, यह सुंदर, हस्तनिर्मित फूलदान तैयार हुआ है। यह टिकाऊ क्राफ्टिंग का एक जीता-जागता उदाहरण है, जो दर्शाता है कि संसाधनशीलता और कलात्मकता मिलकर एक व्यावहारिक और अनूठी वस्तु का निर्माण कर सकते हैं। इस कृति को टेराकोटा के बर्तन की तरह और फूलदान की तरह भी इस्तेमाल किया जा सकता है। यह फूलदान अब मेरे लिए खास है क्योंकि यह सिर्फ एक सजावटी वस्तु नहीं, बल्कि मेरी माँ की मेहनत की एक अमूल्य और जीवित निशानी है।
Thursday, December 4, 2025
Tuesday, November 25, 2025
Embracing the Stark Reality: A Plath-Inspired Reflection on the Winter Season's Arrival
DECEMBER IS UPON US, AND THE CHILL IN THE AIR CONFIRMS WINTER'S DEFINITIVE ARRIVAL. THIS SEASONAL SHIFT, WHETHER SEEN AS TARDY BY SOME OR EARLY BY OTHERS, IS AN INESCAPABLE REALITY. REGARDLESS OF PERSONAL PREFERENCE FOR THE COLD, LET US SET ASIDE ALL COMPLAINT FOR A MOMENT. INSTEAD, WE CAN "EMBRACE" THE "WINTER" OF THIS YEAR BY TURNING OUR ATTENTION TO THE PIERCING VERSE OF SYLVIA PLATH, A POET WHOSE WORK RESONATES WITH STARK, BEAUTIFUL CLARITY.
WINTER TREES
The wet dawn inks are doing their blue dissolve.
On their blotter of fog the trees
Seem a botanical drawing.
Memories growing, ring on ring,
A series of weddings.
Knowing neither abortions nor bitchery,
Truer than women,
They seed so effortlessly!
Tasting the winds, that are footless,
Waist-deep in history.
Full of wings, otherworldliness.
In this, they are Ledas.
O mother of leaves and sweetness
Who are these pietas?
The shadows of ringdoves chanting, but chasing nothing.
A WINTER SHIP
At this wharf there are no grand landings to speak of.
Red and orange barges list and blister
Shackled to the dock, outmoded, gaudy,
And apparently indestructible.
The sea pulses under a skin of oil.
A gull holds his pose on a shanty ridgepole,
Riding the tide of the wind, steady
As wood and formal, in a jacket of ashes,
The whole flat harbor anchored in
The round of his yellow eye-button.
A blimp swims up like a day-moon or tin
Cigar over his rink of fishes.
The prospect is dull as an old etching.
They are unloading three barrels of little crabs.
The pier pilings seem about to collapse
And with them that rickety edifice
Of warehouses, derricks, smokestacks and bridges
In the distance. All around us the water slips
And gossips in its loose vernacular,
Ferrying the smells of cod and tar.
Farther out, the waves will be mouthing icecakes —
A poor month for park-sleepers and lovers.
Even our shadows are blue with cold.
We wanted to see the sun come up
And are met, instead, by this iceribbed ship,
Bearded and blown, an albatross of frost,
Relic of tough weather, every winch and stay
Encased in a glassy pellicle.
The sun will diminish it soon enough:
Each wave-tip glitters like a knife.
WINTERING
This is the easy time, there is nothing doing.
I have whirled the midwife’s extractor,
I have my honey,
Six jars of it,
Six cat’s eyes in the wine cellar,
Wintering in a dark without window
At the heart of the house
Next to the last tenant’s rancid jam
and the bottles of empty glitters–
Sir So-and-so’s gin.
This is the room I have never been in
This is the room I could never breathe in.
The black bunched in there like a bat,
No light
But the torch and its faint
Chinese yellow on appalling objects–
Black asininity. Decay.
Possession.
It is they who own me.
Neither cruel nor indifferent,
Only ignorant.
This is the time of hanging on for the bees–the bees
So slow I hardly know them,
Filing like soldiers
To the syrup tin
To make up for the honey I’ve taken.
Tate and Lyle keeps them going,
The refined snow.
It is Tate and Lyle they live on, instead of flowers.
They take it. The cold sets in.
Now they ball in a mass,
Black
Mind against all that white.
The smile of the snow is white.
It spreads itself out, a mile-long body of Meissen,
Into which, on warm days,
They can only carry their dead.
The bees are all women,
Maids and the long royal lady.
They have got rid of the men,
The blunt, clumsy stumblers, the boors.
Winter is for women–
The woman, still at her knitting,
At the cradle of Spanis walnut,
Her body a bulb in the cold and too dumb to think.
Will the hive survive, will the gladiolas
Succeed in banking their fires
To enter another year?
What will they taste of, the Christmas roses?
The bees are flying. They taste the spring.
Adventures in Decorating: Still Loving Our Basement LVP ...
Adventures in Decorating: Still Loving Our Basement LVP ...: Happy Thursday! Whenever I walk down to the basement, admittedly, I'm still pleased by the refreshed view that greets us! Tha...
Thursday, November 13, 2025
The Art of Traditional Pink Butter Making
I love to make pink butter like my grandmother and my Mom used to make, even though it takes soooo much time, makes a mess, and seems expensive!
Usually I use my electrical churner. But I tried it in real traditional way...
Making traditional pink butter is a deeply rewarding culinary journey, a cherished memory of my grandmother and mother who passed this unique technique down through generations. While this process can be time-consuming, messy, and potentially expensive, the result is a divine, uniquely flavoured butter that carries a taste of nostalgia and pairs wonderfully with chapattis, bread, khichri, biryani, or pulao.
In case you want to try it out...then precede as fallows...
To begin this process, you first need to prepare the base. Start by simmering raw milk on a low heat for at least two hours, or until it starts to develop a light pink hue. This slow cooking step is essential for the butter's distinct colour and flavour. Once the milk has achieved its tint, remove it from the heat and set it aside to cool until it is hand-warm.
Next, you need to set the milk into curd, or yogurt. Add one tablespoon of existing yogurt culture to each liter of the warm, pinkish milk and stir it in well. (If you regularly use a clay or terracotta pot for setting curd, you might not need an additional culture). Cover the mixture and leave it in a warm place for about five hours, or until it has set into a firm curd.
Once the curd is ready, ensure it is at room temperature before you begin the churning. Transfer the set curd to a large bowl or your stand mixer/churner container. Start beating the curd at the highest speed using a hand mixer, stand mixer, or a traditional hand churner. The mixture will go through a whipped stage first, gradually thickening and becoming increasingly pinkish as you continue.You will begin to think it looks like butter before it is butter.
…Don’t give it up!
Patience is a key ingredient here; it will look like butter before it actually is. Keep beating, making sure to periodically scrape down the sides of the bowl with a wooden spatula to ensure everything is evenly mixed. Then, fairly suddenly, the mixture will "fall," which means the lovely pinkish butter will separate from the liquid buttermilk.
The final product is a truly special, traditionally made pink butter. ...........I love it. It taste divine toooo make it and enjoy with chapattis/bread/khichri/biryani/pulavIt is a labour of love that connects me to my family's heritage, and the unparalleled taste makes all the effort worthwhile. Enjoy the fruits of your labour with your favourite dishes.
Bone apatite!
Wednesday, October 22, 2025
My floating flower arrangement
A floating arrangement is an inspired solution for flowers that naturally droop on their stems, preventing their charming "faces" from being fully appreciated in a traditional vase. By releasing the yellow oleander's nodding blossoms from their stems, their cheerful forms can be arranged to drift gracefully on the surface of water, creating a serene and captivating display.
xoxo
Friday, October 3, 2025
Burlap Plant Containers
Plant containers need not be only terra-cotta. My idea for creative plantpots and containers will enhance the beauty of their contents.
For cheerful containers, I used burlap strings and money plant to complement their contents. Terra-cotta is very porous, and it's important to use materials that won't harm the plants burlop cloth or burlop strings when wet gives cooling effect to the containers plants feel terra-cotta impression with burlaps on them.
my inspirational post today...
Turmeric & Saffron: Mast-o-Moosir with Chips and Crudités
Turmeric & Saffron: Mast-o-Moosir with Chips and Crudités: موسیر Moosir (Allium stipitatum) is a native plant that grows wild across Iran's Zagros Mountains. Its white oval bulbs are harvested, ...
Monday, September 29, 2025
Red Doily
Have you done any Valentine's Day crochet projects?
I've done one so far - this red doily. I already have a collection of Valentine's Day doilies, but I couldn't help and make one more.
I like this doily, but I'm not very happy with my thread choice. Instead of cotton thread, I used acrylic. This doily is a bit too soft for my liking. I prefer crisp and starched doilies.
My doily came out quite big, 20 inches in diameter.
I will post the pattern later on.
Saturday, September 27, 2025
My china rose
When I have pluck’d the rose,
I cannot give it vital growth again,
It needs must wither: I’ll smell it on the tree.
William Shakespeare, Othello, act V, scene 2
Perhaps I should start with a few of my prejudices. I don’t like to pick the roses in my front yard (or have anyone else pick them), so none of my roses are selected with that fate in mind. I don’t particularly care for modern hybrid teas; to me, they are over civilized, unnaturally perfect, and more suited to the florist’s shop than the garden, and, as the saying goes, “they don’t die well.” The older roses I favor tend to have one season of extravagant bloom and reach their peak just before they are finished for the year. They also know how to age gracefully, whereas the supreme moment for a modern rose is when it is still in the bud.
Friday, September 12, 2025
Flower arrangement in my room...
A simple arrangement where leaves and flower are plonked into a glass globe of water.
This mat on which the flower vase is placed was made by my mother.
ON THE MAT HER HANDS ONCE WOVE,
THIS FLOWER VASE FINDS ITS PLACE,
AND IN ITS QUIET, SIMPLE GRACE,
I FEEL THE SHELTER OF HER LOVE
my inspirational site today...
The History Of Choti Satrod | ITIHAS CHOTI SATROD KA | Documentary | Vik...
Wednesday, September 10, 2025
मेरी बेटी द्वारा लिखी कहानी
यह कहानी उसकी बटोड़ा नामक प्रकाशित किताब में है
हरियाणा में बटोड़ा मतलब, गोबर के उपलों (उपले) को व्यवस्थित रूप से रखने के लिए बनाई गई जगह है।( bitoda is a carefully constructed and neatly arranged stack or large pile of dried cow dung cakes)
कहानी
बटोडा /विपिन चौधरी
अभी कल की ही तो बात थी जब गाँव के बीच में खरीदे गए प्लाट में रामफल की पत्नी रीना अपनी देवरानी के साथ बटोडे में गोसे बिठा रही थी कि पड़ोस के कल्लू लुहार की बड़ी बेटी कांता अनायास ही संतोषी का जिक्र छेड़ बैठी वह प्लाट के दूसरे पुराने मजबूत बटोड़े को देख कर बोल उठी.
"यो बटोडा तो जमा पाक्या पड़ा स कितने बरस साल पहले संतोषी और मन्ने बड़ी मेहनत त लगाया था'.
कल्लू की बेटी के इस वाक्य से रीना के मन में संतोषी का किस्सा हरा हो गया. वह जब बहु बन कर आयी थी तो संतोषी के चर्चे ताज़ा तरीन थे और आस पड़ोस की लड़कियों और बहुओं ने धीरे-धीरे किश्त दर किश्त रीना के कानों में उतार दी, तब भी अबोध रीना को संतोषी से सहानुभूति उमड़ी और अपने पति के प्रति प्रेम उमड़ा.
लोग चाहे संतोषी को अधूरी औरत कहते पर जब एक दिन अपने पति की कपड़ों की अलमारी में रखी संतोषी की तस्वीर देखि तो वह भी हतप्रभ रह गयी थी. अपनी हिंदी की पुस्तक में ठीक इस तस्वीर जैसी ही किसी सुन्दर नारी का चित्रण किया गया था एक नायिका सी ही थी संतोषी सुंदर नैन नक्श, गोरा चिट्टा रंग, लम्बा छरहरा शरीर पता नहीं खुदा ने क्यों ये कमी पेशी रख छोड़ी थी कि उसके जाने के बाद उसे अधूरी औरत का ख़िताब दे दिया गया.
अधूरी औरत की पूरी कहानी
राममेहर नम्बरदार की बहू संतोषी से जुडे इस प्रसंग को पूरे पच्चीस साल गुज़र चुके हैं. 'सुरों की ढाणी' के लोगों की बातचीत में यदा-कदा आज भी इस प्रसंग की अनुगूंज सुनाई दे जाती है. इसी गाँव की बहू थी संतोषी, उसकी कर्मठता को लोग लगभग भूला ही चुके हैं लेकिन उन्हें संतोषी की चतुराई जब याद आती है तो उसे सिर्फ और सिर्फ कोसते है.
यह किस्सा उन दिनों का है जब गांव की तबियत इतनी नासाज़ नहीं हुई थी की शहर की रंगीनियाँ देख कर उसे अपने सौंधेपन से उबकाई आने लगे. गाँव में तब ऐसे खांटी बुजुर्गों की संख्या बहुतायत में होती थी जो अपनी कड़क आवाज़ में एक बार कुछ बोल दे वही पत्थर की लकीर. उन्ही दिनों में ढाणी में गेंदा बुआ नाम की एक महिला हुआ करती थी जो पिछले साल ही चल बसी थी. गेंदा बुआ अपनी वाक्पटुता के लिये काफी प्रसिद्ध थी, केवल उसी ने ऐसा फौलादी जिगरा पाया था जिसके बूते वह सार्वजनिक तौर पर यह कह देती थी कि उसके चारों बच्चों की पैदाईश के पीछे उसके पति सुन्दरलाल का कोई हाथ नहीं है. यही नहीं इससे भी आगे बढ़कर गेंदा बुआ अपने बच्चों के तथाकथित बापों के नाम भी उजागर कर दिया करती थी. बड़ा छोरा रलदू का, दूसरी छोरी गुलशन फौजी की तीसरी गणपत की और छोटंम-छोटा छोरा राममेहर फौजी का. उन दिनों सुरों की ढाणी में शाम होते ही चौपाल बूढे बुजुर्गों से भर जाती, देर रात उनके हुक्के गुडगुडाने के साथ गाँव के ताज़ा घटना क्रमों के बारे में बातचीत भी जारी रहती. भरी दोपहर में गाँव की कच्ची गलियों में बच्चे धूल उड़ाते फिरते या फिर कंचे खेलते दिखते और गाँव की कर्मठ महिलायें घर- बाहर के काम काज मुस्तैदी से निपटाती दिखाई देती. आज से पच्चीस बर्ष पहले गाँव में सिर्फ दोपहर के वक़्त ही नलके आते तब औरतें भाग- भाग कर कई मटके पानी भरने की होड़ में लगीरहती. गाँव की बेटी- बहुओं के मेल- मुलाकात का बहाना भी ये सामूहिक नल ही होते . इसी गाँव की सबसे सुंदर और सुशील बहु भी एक के बाद एक कर कई घड़े अपने घर ले लाती. जिस दिन धोलपुर गाँव के सुंदर मास्टर की बड़ी बेटी संतोषी का विवाह सुरों की ढाणी के राममेहर नम्बरदार के बड़े लडके रामफल के साथ हुआ बस उस घडी से ही संतोषी चर्चा में रही. अव्वल बात तो यहथी कि संतोषी दहेज़ ही इतना अधिक लेकर आयी थी की गाँव भर के लोगों की आंखे फटी की फटी रह गयी थी, ब्लैक एंड व्हाईट टेलीविज़न, गोदरेज की बड़ी अलमारी, आटा चक्की, स्कूटर, दो बड़े बक्से, सिलाई मशीन, डबल बेड घर के उपयोग की कई दूसरी चीज़े और ऊपर से रूप गुण में भी संतोषी गाँव में सबसे अलग नज़र आती थी. इसके साथ ही वह होशियार भीथी. उसका स्नातक परीक्षा का परिणाम भी शादी के बाद ही आया वह जिले भर में प्रथम आई थी. घर और बाहर चारों ओर संतोषी की ही चर्चा सुनाई देती. संतोषी ने ससुराल में आते ही अपने अच्छे स्वभाव केकारण सबके मन में घर कर लिया था.
रामफल मेहनती और कड़क गबरू जवान था और उसकी बहु भी सुंदर बहु आयी थी,उसकी चचरी बहने हंसी ठिठोली करती नयी बहु के आने की बात जोह रही थी, उनकी ऊँची आवाज़ गीत गए जा रही थी.
जैसे ही सजी धजी गाडी आती दिखी माहिलाओं की स्वर लहरियां सुनाई पढने लगी.
एरी बनडा चलै णां चालणदे, हे री रस्ते में खड़ी गुज़रिया
बनडा सीस तेरे का सेहरा, बनडा कान तेरे के मोती
एरी उस की लडिया लहरा ले, हे री रस्ते में खड़ी गुज़रिया
बनडा गल तेरे का तोडा, बनडा अंग तेरे का जामा
एरी उस की चोली लहरा ले, हे री रस्ते में खड़ीगुज़रिया
रामफल का रूखा-सुखा जीवन रंगीन हो उठा था, नयी बहु को देखते ही उसके मन में तरंग उठी थी. क्या सुर्ख साडी पहने छ्म- छ्म करती यह युवती मेरे घर में रहेगी और जब उसकी पत्नी को उसके कमरे मेंबिठा दिया गया तो रामफल शर्म से लाल हो गया था. सकुचाते- सकुचाते वह अपने कमरे में घुसा.
अगले दिन बिना किसी से कुछ कहे सुबह ही कुदाल के कर खेत की और चल दिया था.बाहर दालान में माँ को बैठा देख कर अनदेखा क्र निकल गया. फिर दिन बीतते चलेगए गए पर रामफल के आंगन में एक बिरवा भी न उगा.
फिर दिन अपना चोला उतरने के लिये खूब उतावले होतें हैं दिन गुजरते चले गए.
पर रामरती खानाती औरत थी घर खूब बसाया उसने की आवारा देवर बही सीधा हो गया मिट्ठू और चमिया आई और जीवन हरा बहरा हो गया, एक अछसे से लडकी देख आकर रामदरश का ब्याह कर दिया
लामणी के दिनों में संतोषी, पति रामफल के साथ अपने खेतों में जुटी रहती, कुए और नलकों से पानी लाती, ढोर-डंगरों के लिए चारा ला, उन्हे निहलाती धुलाती, उनके लिये चाट रांधती, देर रात अपनी सासू माँ के पाँव दबाते-दबाते थक हार कर इधर -उधर लुडक कर सो जाती. इतनी कमेरी बहु के आने से संतोषी की सास काफी खुश थी. यूँ तो संतोषी की सास मात्र चालीस साल की ही थी पर गाँव में प्रचलित उस रिवाज़ को निभाने में वह भला क्यों पीछे रहती जिसके मुताबिक घर में बहु के आ जाने के बाद सास किसी काम को हाथ नहीं लगाया करती. वह या तो दिन भर हाथ पर हाथ धरे बारने में बैठी रहती और गली में आती- जाती हुई माहिलाओं को बातों में लगा लेती और ससुर दिन भर गाँव की चौपाल में मर्दों के साथ बैठा हुक्का फूकता रहता. पिछले साल जब संतोषी का पति रामफल पीलिया और टाईफाईड से ग्रस्त हुआ तो महीना भर बाद ही खाट से उठ सका. तब संतोषी अकेले ही घर- बाहर को निपटाती रही और घर के सभी लोगों की सेवा-पानी भी करती रही. संतोषी का डील डौल मजबूत था, सुबह उठते ही ढेर सारा गेहूं पीसती, सिर पर पल्लू डाले, नीचे नज़रों से चुपचाप संतोषी अपने काम में लगी रहती. जब घर के लिये कुछ सोदा सुल्फा चाहिये होता तो अपने पति रामफल से कह कर पड़ोस के शहर से मंगवा लेती.
सीधा-सादा रामफल कम ही बोलता था, ना उसका कोई यार दोस्त था और कोई ख़ास शौक -शगल भी नहीं थे उसके. शादी के बाद तो उसे बहुत कम ही बोलते हुए देखा गया था. सुबह खेत के ओर रुखकरता फिर सांझ ढले ही लौटता और खा- पी कर सो जाता. इसी तरह बिना किसी शोरोंगुल के चार साल तक संतोषी और रामफल की घर गृहस्थी का यह मूक सिलसिला चलता रहा औरशायद आगे भी सफलता से अपनी इसी कहानी को हर रोज़ दोहराता चलता. पर लगता था कि संतोषी के दिन इस घर में पूरे हो गए थे तभी तो इस शांत घर में एकदम से हलचल हुई और इस हलचल का कारण बना संतोषी का देवर रामदरश जो अपने बड़े भाई रामफल से बिल्कुल उल्टा था. हद दर्जे का बदमाश और आवारा. पढने में उसकी कोई रूचि नहीं दिन भर घर से बाहर रहता और अपनी नशेबाजी की आदत के कारण लोगों से पीट-पिटा कर घर आता.
संयोगवश एक दिन रामफल को किसी काम से अपने दूर के रिश्तेदारों के पास रुकना पड़ा. उस दिन खूब बारिश हो रही थी आस पास के इलाकों में बाढ़ आने की सम्भावना जाती जाने लगी थी. उसी घटाटॉपरात में पीछे से रामफल के छोटे भाई रामदरश ने अपनी भाभी संतोषी के साथ ज़ोर- जबरदस्ती कर डाली इस बार संतोषी कुछ कर नहीं कर पाई. वह थक हार कर ऊपर के चौबारे में सोई ही थी की ताक में लगा रामदरश बिल्ली की तरह दबे पाँव सीढियां चढ़ा और बिना कोई आवाज़ किये बिस्तर पर सोई संतोषी पर झलांग लगा दी. जब तक थक कर टूट चुकी नींद में बेसुध संतोषी कुछ समझ पाती उसके बदन से कपडे गायब हो चुके थे. हकबकाकर संतोषी ने एक जोरदार लात रामदरश के पेट में जमा दी. तब रामदरश औंधे मुहं अपने कपडे संभालता, गिरता पड़ता चोबारे से भाग खड़ा हुआ. अपनी भाभी को छेडने का उसका दूसरा प्रयास था इससे पहले एक दिन देर शाम को जब संतोषी चूल्हे के लिये लकडियाँ काट रही थी कि रामदरश ने अचानक पीछे से आकर अपनी भाभी को धर दबोचा था तब संतोषी ने बड़ी मुश्किल से उसे परे धकलते और धीमी आवाज़ में कहा था
" तेरा भाई घर मे न स पीछे तय कुछ उंच नीच होगी तो दोनोआ की बदनामी हो जागी '. इस घटना के बाद संतोषी चौकनी हो गयी थी, उसने अपने साथ घटी इस छेड़खानी का किसी से जिक्र भी नहीं किया था. इस बात से ही शायद रामदरश को शह मिली और उसके बल पर वह भाभी के चौबारे में चढ़ने की हिमाकत कर बैठा.
सीढ़ियों से नीचे आते ही रामदरश ने शोर मचाना शुरू कर दिया वह नशे की अवस्था में ज़ोर ज़ोर से चिल्ला रहा था.
भाईयों या संतोषी लुगाई कोनी फेर या माहरे घर की बहु क्यूकर बन गयी' इब या उरे कोनी रह सके.
उसकी आवाज़ की टोन में कुछ इस तरह का बेशर्म आभास था मानों उसने अपने घर के बिल में चार बर्ष से दुबके हुए चूहे को बाहर निकाल दिया हो. भोर होने को थी ससुर आँगन में सो रहे थे और सासतडके ही नहा कर अपना तौलिया अलगनी पर सुखा रही थी कि अपने बेटे की आवाज़ सुन कर दोनों दंग रह गए. तब तक संतोषी भी नीचे उतर आई. कुछ ही घंटे में रामफल भी शहर से आ गया उसी वक़्त संतोषी के पिता को बुलावा भेजा गया और रात होते होते ढेरों गालियों के साथ संतोषी की विदाई हो गयी.
चौपाल में बैठे पुरुषों और ठाली बैठी महिलाओं को संतोषी की बातो का नया मसाला मिल गया.
कमाल कर दिया इसके माँ बाप ने जब छोरी ब्याह के काबिल नहीं थी तो ब्याह क्यों करा.
यो तो रामफल भोला छोरा स नहीं तो की या इतने बर्ष उरे टिक पांदी
या सोचदी होगी के रोटी बना के पार पड़ जागी, पर आदमी ने तो लुगाई चाहिए
धीरे-धीरे संतोषी का किस्से पर धूल की परत चढ़ती चली गयी.
गाँव के काम काज उसी मंधीर गति से होते रहे. सुरों की ढाणी का माहौल समय के साथ कुछ बदला भी, गाँव के ही एक पढ़ा लिखा युवक हरज्ञान के सरपंच बनने से गांव में कुछ सुधार हुआ, लड़कों के लिये व्यायामशाला बनी, लड़कियों के लिये सिलाई सेंटर, सरकारी स्कूल का दर्ज़ा आठवी से बारहवी तक बढ़ गया. कुछ लडकियां उच्च शिक्षा के लिये शहर में भी चली गयी. गाँव का एक आदमी गजोधर पंडित अमरीका जा कर बड़ा सेठ हो गया और गाँव के गरीब घरो के बच्चों को पढ़ाई के लिये खर्च भेजने लगा. कुछ ही समय में सुरों की ढाणी एक आदर्श गाँव घोषित कर दिया गया और सरपंच को स्वतंत्रता दिवस पर पुरस्कार भी मिला. वैसे गाँव का अपना पुश्तैनी व्यवसाय धरती से उपज लेने का था. गाँव में नब्बे प्रतिशत लोग खेती करते थे. जिसे शहर के कृषि विज्ञानियों की मदद से खेतिहरों ने खूब उपज ली.
इस साल भी सुरों की ढाणी में खूब बारिश आई थी लोग कहते है पच्चीस साल पहले गाँव में इतनी घनघोर बारिश थी जब संतोषी को इस गाँव से निकला गया था. किसानों ने इस बढ़िया बारिश की वजह से अपने खेतों में घान की बिजाई कर दी. पूरे गाँव में जगह-जगह हरियाली ने अपने पाँव पसार दिए थे . राममेहर नम्बरदार के घर का भूगोल भी बदल चुका था. उसकी पत्नी का देहावसान हो चुका था, राममेहर के दमे का रोग बढ़ गया था अब उसने गाँव की चौपाल में बैठना छोड़ दिया था अपनी बैठक में खाट डाल लेता था जहाँ पहले उसकी दिवंगत पत्नी बैठा करती थी उसके साथ ही रामफल के दोनों बच्चे खेलते रहते. रामफल का दूसरा ब्याह हो गया उसकी पत्नी रीना ने सुंदर घर बसाया उसने ने अपने आवारा देवर रामदरश को सीधा कर दिया अब वह अपने बड़े भाई के साथनियम से खेतों में काम करने लगा. रामफल के आँगन में मिट्ठू और छमिया आई और उसका जीवन हरा-भरा हो गया, एक नेक लडकी देख कर रीना ने रामदरश का ब्याह कर दिया. रीना ने रामदरश की पत्नी रानी के साथ घर का मोर्चा संभाल लिया था. रामदरश की पत्नी रीना काफी तेजतर्रार थी जिसके आगे बदमाश रामदरश भीगी बिल्ली बना रहता. लेकिन दोनों देवरानी जेठानी में खूब बनती थी. दोनों साथ-साथ ही मिलजुलकर घर के काम निपटती.
पहली बहु का दूसरा आगमन
भोर हो चली है दूर से मोरों की आवाजें सुबह के शांत वातावरण की ख़ामोशी को भंग कर रही हैं. आज रीन का बदन टूट रहा है लगता है बुखार चढ़ आया है. कल बटोडा तैयार करते-करते देर हो गयी थी.
तभी अपने दादा के साथ सुबह की सैर से लौटे छोटे बेटे ने आकर रीना को इतला दी.
माँ काकी आई है,
कोण सी काकी
बेरा कोनी, बर्नी में दादा धोरे बैठी स
कोण बसेसर की माँ के
ना कोई और स मे कोनी जानूं उसने
मैंने कोनी बेरा तू ही दीख ले
भीतर बुला ले
रीना खाट पर से उठ कर अपना पल्लू ठीक करने लगी.
इतनी देर में एक महिला लाठी टेकती-टेकती रीना के कमरे में चली आयी. यह महिला रीना की दूर की चची लगती है जो रीना के पति की पहली पत्नी संतोषी के मायके धोलपुर में रहती है.उसकी ननद की सास सुरों की ढाणी में रहती है उसका दो दिन पहले देहांत हो गया था उसी के शोक में वह अपनी गाँव से कईमहिलाओंके साथ ट्रेक्टर में बैठ करआई हैं.
नाश्ता करके लक्ष्मी काकी दो तीन घंटे रीना से बाते करती रही इतने में उसके गाँव की एक महिला उसे बुलाने आ गयी.
लक्ष्मी काकी के जाते ही रीना सोच में पड़ गयी और अपनी देवरानी को चाय बनाने को कह कर घडी भर को आराम करने चली गयी.
पर उसकी आँखों में नींद नहीं थी, भीतर कुछ रेंगता सा लग रहा था.
रामफल के खेत से लौटने का इन्तजार लम्बा पड़ने लगा था. बार बार उसकी निगाहे चौखट की और चली जाती.
कद आव्गा यो रामफल घनी बार होगी इब तो
रामफ़ल ने घर आते ही उसने खाना खाया और आराम करने चल पड़ा पोली में
पीछे पीछे रीना भी चली आई.
के बात स आज
मेरे मन में एक बात आयी स.
अच्छा बता, एक बात आई स दिन भर का थका-हारा रामफल ने जैसे अनिछ्चा से जवाब दिया.
मैं चाहती हूँ कि संतोषी अपने घर में रहे.
रामफल एक पल को चौंका
फिर कुछ ध्यान आते ही बोला
क्यों क्या बात है.
आज धोलपुर वाली लक्ष्मी काकी, गुड्डी की सास के काज में आई थी. उसने ही बताया की संतोषी के साथ कसुती बुरी बन री स.
भाई भाभी ने संतोषी का उसका जीना हराम कर रखा स.
कदे वा भी इस घर का हिस्सा थी,
रामफल गर्दन झुकाए रीना की बात सुन रहा था, फिर धीरे से बोला जो तेरे मर्जी हो वो कर, मन्ने आज तायी तेरी कोई बात टाली कोनी.
पति की सहमती पर रीना की आँखों में अचानक से chamak तैर गयी.
जब घर में आने वाली इस सदस्य के बारे में रामफल के रीना के देवर रामदरश को पता चला तो बिदक गया
और अपने माथे पर त्योरियां चढ़ा कर रामफल से बोला
जो कुछ करना हो करो मैं तो इस घर तह नयारा हो जाऊंगा.
उसके ज़ोर से बोलने पर रीना आ गयी, रामदरश रीना भाभी से डरता था इसलिए उसके आते ही एकदम से चुप हो गया.
रामफल कुछ बोले उससे पहले ही रीना बोल पडी.
तेरी मर्जी है. न्यारा होना है तो हो जा. पर संतोषी आ इस घर में आना तय है.
How to Crochet Rose Flower for Beginners | Very easy crochet rose motif..
Tuesday, September 9, 2025
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Monday, September 8, 2025
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Monday, August 11, 2025
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Saturday, August 2, 2025
Wreath
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Friday, August 1, 2025
Thursday, July 10, 2025
Saturday, June 7, 2025
काचरियाँ कै दिनाँ मैं.....
मेरी दादी..अर.काचरी..
मेरी दादी रात न खिचङी खाण कै बखत(काचरियाँ कै दिनाँ मैं) काचरी छोलया करदी मैं दादी की लाडली थी खिचङी खाये पाछ उसकै धोरैए बैठी रैया करदी। कई बर इसा होंदा अक मेरी दादी काचरी छोलीं जांदी अर मैं खाईं जांदी, ईसी मिठी लागदी अक सब के सवाद नयारे-नयारे, नुँ जाणदी अक इबकाअल दखाँ काचरी किसी पावैगि। मेरी दादी रोलै करण लागदी, हे छोरी के होया ईसा ऐक भी काचरी बोईयै में कोनी पङंदी, कितणी बार होगी मनैं छोलदी हाँण।
काचरी चटनी
लहासी का गिलास
दादी इस ढाल अक एक छोतक लिकङा करदा बीच मैं किते नहीं टुटदा। दादी घणीये काचरी छोल-छोल कीं सुखाया करदी, सारी साल चटणी मैं गेरण खातर। काचरियाँ की चटणी भोत आछी बणया करै।
इसने बणाण खातर आपिंनै चाईयें किमे साबत लाल मिरच-सुखोङी, लहसण, थोङा सा नूण हर थोङी लहासी
अर या चटणी कुंडी सोटै तैं घणी बढिया बणा करै।
बणाण का तरिकाः
छोलोड़ी कचरियां में साबत लाल मिर्च लहसन आर नमक घाल कीं कुण्डी सोटे तं खूब कूट ल्यो अर जिद कूट जां तो दही घाल कीं खूब रगड़ ल्यो .
बढिया चटनी बण जागी. इब इसनें चाहे तो बाजरे की रोटी सतीं खाओ या मेसी रोटी सतीं.
अलूणी घी
रोटी, अलूणी घी, अर एक लहासी का गिलास सारे पकवान एक कानी अर यो पकवान एक कानीं.
Tuesday, June 3, 2025
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Roman Times: Ancient slingers: The power of a simple stone: by Mary Harrsch © 2025 I saw this beautifully angled image of Gian Lorenzo Bernini’s “David” on Facebook this morning and it reminded me ho...
Tuesday, March 4, 2025
Its March!
Goodness, it's March already! After the looooongest January ever, February flew by and now, OH! it's March. Apparently, according to Indian seasons, Spring begins from Basant Pnchmi.. – but its still winter here - but it's nice to see bulbs coming up and smell that springy smell in the air and feel a little heat from the sun. Yes, hello March, I like you.
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