Have nothing in your house that you do not know to be useful, or believe to be beautiful. - William Morris
Wednesday, October 22, 2025
My floating flower arrangement
A floating arrangement is an inspired solution for flowers that naturally droop on their stems, preventing their charming "faces" from being fully appreciated in a traditional vase. By releasing the yellow oleander's nodding blossoms from their stems, their cheerful forms can be arranged to drift gracefully on the surface of water, creating a serene and captivating display.
xoxo
Friday, October 3, 2025
Burlap Plant Containers
Plant containers need not be only terra-cotta. My idea for creative plantpots and containers will enhance the beauty of their contents.
For cheerful containers, I used burlap strings and money plant to complement their contents. Terra-cotta is very porous, and it's important to use materials that won't harm the plants burlop cloth or burlop strings when wet gives cooling effect to the containers plants feel terra-cotta impression with burlaps on them.
my inspirational post today...
Turmeric & Saffron: Mast-o-Moosir with Chips and Crudités
Turmeric & Saffron: Mast-o-Moosir with Chips and Crudités: موسیر Moosir (Allium stipitatum) is a native plant that grows wild across Iran's Zagros Mountains. Its white oval bulbs are harvested, ...
Monday, September 29, 2025
Red Doily
Have you done any Valentine's Day crochet projects?
I've done one so far - this red doily. I already have a collection of Valentine's Day doilies, but I couldn't help and make one more.
I like this doily, but I'm not very happy with my thread choice. Instead of cotton thread, I used acrylic. This doily is a bit too soft for my liking. I prefer crisp and starched doilies.
My doily came out quite big, 20 inches in diameter.
I will post the pattern later on.
Saturday, September 27, 2025
My china rose
When I have pluck’d the rose,
I cannot give it vital growth again,
It needs must wither: I’ll smell it on the tree.
William Shakespeare, Othello, act V, scene 2
Perhaps I should start with a few of my prejudices. I don’t like to pick the roses in my front yard (or have anyone else pick them), so none of my roses are selected with that fate in mind. I don’t particularly care for modern hybrid teas; to me, they are over civilized, unnaturally perfect, and more suited to the florist’s shop than the garden, and, as the saying goes, “they don’t die well.” The older roses I favor tend to have one season of extravagant bloom and reach their peak just before they are finished for the year. They also know how to age gracefully, whereas the supreme moment for a modern rose is when it is still in the bud.
Friday, September 12, 2025
Flower arrangement in my room...
A simple arrangement where leaves and flower are plonked into a glass globe of water.
This mat on which the flower vase is placed was made by my mother.
ON THE MAT HER HANDS ONCE WOVE,
THIS FLOWER VASE FINDS ITS PLACE,
AND IN ITS QUIET, SIMPLE GRACE,
I FEEL THE SHELTER OF HER LOVE
my inspirational site today...
The History Of Choti Satrod | ITIHAS CHOTI SATROD KA | Documentary | Vik...
Wednesday, September 10, 2025
मेरी बेटी द्वारा लिखी कहानी
यह कहानी उसकी बटोड़ा नामक प्रकाशित किताब में है
हरियाणा में बटोड़ा मतलब, गोबर के उपलों (उपले) को व्यवस्थित रूप से रखने के लिए बनाई गई जगह है।( bitoda is a carefully constructed and neatly arranged stack or large pile of dried cow dung cakes)
कहानी
बटोडा /विपिन चौधरी
अभी कल की ही तो बात थी जब गाँव के बीच में खरीदे गए प्लाट में रामफल की पत्नी रीना अपनी देवरानी के साथ बटोडे में गोसे बिठा रही थी कि पड़ोस के कल्लू लुहार की बड़ी बेटी कांता अनायास ही संतोषी का जिक्र छेड़ बैठी वह प्लाट के दूसरे पुराने मजबूत बटोड़े को देख कर बोल उठी.
"यो बटोडा तो जमा पाक्या पड़ा स कितने बरस साल पहले संतोषी और मन्ने बड़ी मेहनत त लगाया था'.
कल्लू की बेटी के इस वाक्य से रीना के मन में संतोषी का किस्सा हरा हो गया. वह जब बहु बन कर आयी थी तो संतोषी के चर्चे ताज़ा तरीन थे और आस पड़ोस की लड़कियों और बहुओं ने धीरे-धीरे किश्त दर किश्त रीना के कानों में उतार दी, तब भी अबोध रीना को संतोषी से सहानुभूति उमड़ी और अपने पति के प्रति प्रेम उमड़ा.
लोग चाहे संतोषी को अधूरी औरत कहते पर जब एक दिन अपने पति की कपड़ों की अलमारी में रखी संतोषी की तस्वीर देखि तो वह भी हतप्रभ रह गयी थी. अपनी हिंदी की पुस्तक में ठीक इस तस्वीर जैसी ही किसी सुन्दर नारी का चित्रण किया गया था एक नायिका सी ही थी संतोषी सुंदर नैन नक्श, गोरा चिट्टा रंग, लम्बा छरहरा शरीर पता नहीं खुदा ने क्यों ये कमी पेशी रख छोड़ी थी कि उसके जाने के बाद उसे अधूरी औरत का ख़िताब दे दिया गया.
अधूरी औरत की पूरी कहानी
राममेहर नम्बरदार की बहू संतोषी से जुडे इस प्रसंग को पूरे पच्चीस साल गुज़र चुके हैं. 'सुरों की ढाणी' के लोगों की बातचीत में यदा-कदा आज भी इस प्रसंग की अनुगूंज सुनाई दे जाती है. इसी गाँव की बहू थी संतोषी, उसकी कर्मठता को लोग लगभग भूला ही चुके हैं लेकिन उन्हें संतोषी की चतुराई जब याद आती है तो उसे सिर्फ और सिर्फ कोसते है.
यह किस्सा उन दिनों का है जब गांव की तबियत इतनी नासाज़ नहीं हुई थी की शहर की रंगीनियाँ देख कर उसे अपने सौंधेपन से उबकाई आने लगे. गाँव में तब ऐसे खांटी बुजुर्गों की संख्या बहुतायत में होती थी जो अपनी कड़क आवाज़ में एक बार कुछ बोल दे वही पत्थर की लकीर. उन्ही दिनों में ढाणी में गेंदा बुआ नाम की एक महिला हुआ करती थी जो पिछले साल ही चल बसी थी. गेंदा बुआ अपनी वाक्पटुता के लिये काफी प्रसिद्ध थी, केवल उसी ने ऐसा फौलादी जिगरा पाया था जिसके बूते वह सार्वजनिक तौर पर यह कह देती थी कि उसके चारों बच्चों की पैदाईश के पीछे उसके पति सुन्दरलाल का कोई हाथ नहीं है. यही नहीं इससे भी आगे बढ़कर गेंदा बुआ अपने बच्चों के तथाकथित बापों के नाम भी उजागर कर दिया करती थी. बड़ा छोरा रलदू का, दूसरी छोरी गुलशन फौजी की तीसरी गणपत की और छोटंम-छोटा छोरा राममेहर फौजी का. उन दिनों सुरों की ढाणी में शाम होते ही चौपाल बूढे बुजुर्गों से भर जाती, देर रात उनके हुक्के गुडगुडाने के साथ गाँव के ताज़ा घटना क्रमों के बारे में बातचीत भी जारी रहती. भरी दोपहर में गाँव की कच्ची गलियों में बच्चे धूल उड़ाते फिरते या फिर कंचे खेलते दिखते और गाँव की कर्मठ महिलायें घर- बाहर के काम काज मुस्तैदी से निपटाती दिखाई देती. आज से पच्चीस बर्ष पहले गाँव में सिर्फ दोपहर के वक़्त ही नलके आते तब औरतें भाग- भाग कर कई मटके पानी भरने की होड़ में लगीरहती. गाँव की बेटी- बहुओं के मेल- मुलाकात का बहाना भी ये सामूहिक नल ही होते . इसी गाँव की सबसे सुंदर और सुशील बहु भी एक के बाद एक कर कई घड़े अपने घर ले लाती. जिस दिन धोलपुर गाँव के सुंदर मास्टर की बड़ी बेटी संतोषी का विवाह सुरों की ढाणी के राममेहर नम्बरदार के बड़े लडके रामफल के साथ हुआ बस उस घडी से ही संतोषी चर्चा में रही. अव्वल बात तो यहथी कि संतोषी दहेज़ ही इतना अधिक लेकर आयी थी की गाँव भर के लोगों की आंखे फटी की फटी रह गयी थी, ब्लैक एंड व्हाईट टेलीविज़न, गोदरेज की बड़ी अलमारी, आटा चक्की, स्कूटर, दो बड़े बक्से, सिलाई मशीन, डबल बेड घर के उपयोग की कई दूसरी चीज़े और ऊपर से रूप गुण में भी संतोषी गाँव में सबसे अलग नज़र आती थी. इसके साथ ही वह होशियार भीथी. उसका स्नातक परीक्षा का परिणाम भी शादी के बाद ही आया वह जिले भर में प्रथम आई थी. घर और बाहर चारों ओर संतोषी की ही चर्चा सुनाई देती. संतोषी ने ससुराल में आते ही अपने अच्छे स्वभाव केकारण सबके मन में घर कर लिया था.
रामफल मेहनती और कड़क गबरू जवान था और उसकी बहु भी सुंदर बहु आयी थी,उसकी चचरी बहने हंसी ठिठोली करती नयी बहु के आने की बात जोह रही थी, उनकी ऊँची आवाज़ गीत गए जा रही थी.
जैसे ही सजी धजी गाडी आती दिखी माहिलाओं की स्वर लहरियां सुनाई पढने लगी.
एरी बनडा चलै णां चालणदे, हे री रस्ते में खड़ी गुज़रिया
बनडा सीस तेरे का सेहरा, बनडा कान तेरे के मोती
एरी उस की लडिया लहरा ले, हे री रस्ते में खड़ी गुज़रिया
बनडा गल तेरे का तोडा, बनडा अंग तेरे का जामा
एरी उस की चोली लहरा ले, हे री रस्ते में खड़ीगुज़रिया
रामफल का रूखा-सुखा जीवन रंगीन हो उठा था, नयी बहु को देखते ही उसके मन में तरंग उठी थी. क्या सुर्ख साडी पहने छ्म- छ्म करती यह युवती मेरे घर में रहेगी और जब उसकी पत्नी को उसके कमरे मेंबिठा दिया गया तो रामफल शर्म से लाल हो गया था. सकुचाते- सकुचाते वह अपने कमरे में घुसा.
अगले दिन बिना किसी से कुछ कहे सुबह ही कुदाल के कर खेत की और चल दिया था.बाहर दालान में माँ को बैठा देख कर अनदेखा क्र निकल गया. फिर दिन बीतते चलेगए गए पर रामफल के आंगन में एक बिरवा भी न उगा.
फिर दिन अपना चोला उतरने के लिये खूब उतावले होतें हैं दिन गुजरते चले गए.
पर रामरती खानाती औरत थी घर खूब बसाया उसने की आवारा देवर बही सीधा हो गया मिट्ठू और चमिया आई और जीवन हरा बहरा हो गया, एक अछसे से लडकी देख आकर रामदरश का ब्याह कर दिया
लामणी के दिनों में संतोषी, पति रामफल के साथ अपने खेतों में जुटी रहती, कुए और नलकों से पानी लाती, ढोर-डंगरों के लिए चारा ला, उन्हे निहलाती धुलाती, उनके लिये चाट रांधती, देर रात अपनी सासू माँ के पाँव दबाते-दबाते थक हार कर इधर -उधर लुडक कर सो जाती. इतनी कमेरी बहु के आने से संतोषी की सास काफी खुश थी. यूँ तो संतोषी की सास मात्र चालीस साल की ही थी पर गाँव में प्रचलित उस रिवाज़ को निभाने में वह भला क्यों पीछे रहती जिसके मुताबिक घर में बहु के आ जाने के बाद सास किसी काम को हाथ नहीं लगाया करती. वह या तो दिन भर हाथ पर हाथ धरे बारने में बैठी रहती और गली में आती- जाती हुई माहिलाओं को बातों में लगा लेती और ससुर दिन भर गाँव की चौपाल में मर्दों के साथ बैठा हुक्का फूकता रहता. पिछले साल जब संतोषी का पति रामफल पीलिया और टाईफाईड से ग्रस्त हुआ तो महीना भर बाद ही खाट से उठ सका. तब संतोषी अकेले ही घर- बाहर को निपटाती रही और घर के सभी लोगों की सेवा-पानी भी करती रही. संतोषी का डील डौल मजबूत था, सुबह उठते ही ढेर सारा गेहूं पीसती, सिर पर पल्लू डाले, नीचे नज़रों से चुपचाप संतोषी अपने काम में लगी रहती. जब घर के लिये कुछ सोदा सुल्फा चाहिये होता तो अपने पति रामफल से कह कर पड़ोस के शहर से मंगवा लेती.
सीधा-सादा रामफल कम ही बोलता था, ना उसका कोई यार दोस्त था और कोई ख़ास शौक -शगल भी नहीं थे उसके. शादी के बाद तो उसे बहुत कम ही बोलते हुए देखा गया था. सुबह खेत के ओर रुखकरता फिर सांझ ढले ही लौटता और खा- पी कर सो जाता. इसी तरह बिना किसी शोरोंगुल के चार साल तक संतोषी और रामफल की घर गृहस्थी का यह मूक सिलसिला चलता रहा औरशायद आगे भी सफलता से अपनी इसी कहानी को हर रोज़ दोहराता चलता. पर लगता था कि संतोषी के दिन इस घर में पूरे हो गए थे तभी तो इस शांत घर में एकदम से हलचल हुई और इस हलचल का कारण बना संतोषी का देवर रामदरश जो अपने बड़े भाई रामफल से बिल्कुल उल्टा था. हद दर्जे का बदमाश और आवारा. पढने में उसकी कोई रूचि नहीं दिन भर घर से बाहर रहता और अपनी नशेबाजी की आदत के कारण लोगों से पीट-पिटा कर घर आता.
संयोगवश एक दिन रामफल को किसी काम से अपने दूर के रिश्तेदारों के पास रुकना पड़ा. उस दिन खूब बारिश हो रही थी आस पास के इलाकों में बाढ़ आने की सम्भावना जाती जाने लगी थी. उसी घटाटॉपरात में पीछे से रामफल के छोटे भाई रामदरश ने अपनी भाभी संतोषी के साथ ज़ोर- जबरदस्ती कर डाली इस बार संतोषी कुछ कर नहीं कर पाई. वह थक हार कर ऊपर के चौबारे में सोई ही थी की ताक में लगा रामदरश बिल्ली की तरह दबे पाँव सीढियां चढ़ा और बिना कोई आवाज़ किये बिस्तर पर सोई संतोषी पर झलांग लगा दी. जब तक थक कर टूट चुकी नींद में बेसुध संतोषी कुछ समझ पाती उसके बदन से कपडे गायब हो चुके थे. हकबकाकर संतोषी ने एक जोरदार लात रामदरश के पेट में जमा दी. तब रामदरश औंधे मुहं अपने कपडे संभालता, गिरता पड़ता चोबारे से भाग खड़ा हुआ. अपनी भाभी को छेडने का उसका दूसरा प्रयास था इससे पहले एक दिन देर शाम को जब संतोषी चूल्हे के लिये लकडियाँ काट रही थी कि रामदरश ने अचानक पीछे से आकर अपनी भाभी को धर दबोचा था तब संतोषी ने बड़ी मुश्किल से उसे परे धकलते और धीमी आवाज़ में कहा था
" तेरा भाई घर मे न स पीछे तय कुछ उंच नीच होगी तो दोनोआ की बदनामी हो जागी '. इस घटना के बाद संतोषी चौकनी हो गयी थी, उसने अपने साथ घटी इस छेड़खानी का किसी से जिक्र भी नहीं किया था. इस बात से ही शायद रामदरश को शह मिली और उसके बल पर वह भाभी के चौबारे में चढ़ने की हिमाकत कर बैठा.
सीढ़ियों से नीचे आते ही रामदरश ने शोर मचाना शुरू कर दिया वह नशे की अवस्था में ज़ोर ज़ोर से चिल्ला रहा था.
भाईयों या संतोषी लुगाई कोनी फेर या माहरे घर की बहु क्यूकर बन गयी' इब या उरे कोनी रह सके.
उसकी आवाज़ की टोन में कुछ इस तरह का बेशर्म आभास था मानों उसने अपने घर के बिल में चार बर्ष से दुबके हुए चूहे को बाहर निकाल दिया हो. भोर होने को थी ससुर आँगन में सो रहे थे और सासतडके ही नहा कर अपना तौलिया अलगनी पर सुखा रही थी कि अपने बेटे की आवाज़ सुन कर दोनों दंग रह गए. तब तक संतोषी भी नीचे उतर आई. कुछ ही घंटे में रामफल भी शहर से आ गया उसी वक़्त संतोषी के पिता को बुलावा भेजा गया और रात होते होते ढेरों गालियों के साथ संतोषी की विदाई हो गयी.
चौपाल में बैठे पुरुषों और ठाली बैठी महिलाओं को संतोषी की बातो का नया मसाला मिल गया.
कमाल कर दिया इसके माँ बाप ने जब छोरी ब्याह के काबिल नहीं थी तो ब्याह क्यों करा.
यो तो रामफल भोला छोरा स नहीं तो की या इतने बर्ष उरे टिक पांदी
या सोचदी होगी के रोटी बना के पार पड़ जागी, पर आदमी ने तो लुगाई चाहिए
धीरे-धीरे संतोषी का किस्से पर धूल की परत चढ़ती चली गयी.
गाँव के काम काज उसी मंधीर गति से होते रहे. सुरों की ढाणी का माहौल समय के साथ कुछ बदला भी, गाँव के ही एक पढ़ा लिखा युवक हरज्ञान के सरपंच बनने से गांव में कुछ सुधार हुआ, लड़कों के लिये व्यायामशाला बनी, लड़कियों के लिये सिलाई सेंटर, सरकारी स्कूल का दर्ज़ा आठवी से बारहवी तक बढ़ गया. कुछ लडकियां उच्च शिक्षा के लिये शहर में भी चली गयी. गाँव का एक आदमी गजोधर पंडित अमरीका जा कर बड़ा सेठ हो गया और गाँव के गरीब घरो के बच्चों को पढ़ाई के लिये खर्च भेजने लगा. कुछ ही समय में सुरों की ढाणी एक आदर्श गाँव घोषित कर दिया गया और सरपंच को स्वतंत्रता दिवस पर पुरस्कार भी मिला. वैसे गाँव का अपना पुश्तैनी व्यवसाय धरती से उपज लेने का था. गाँव में नब्बे प्रतिशत लोग खेती करते थे. जिसे शहर के कृषि विज्ञानियों की मदद से खेतिहरों ने खूब उपज ली.
इस साल भी सुरों की ढाणी में खूब बारिश आई थी लोग कहते है पच्चीस साल पहले गाँव में इतनी घनघोर बारिश थी जब संतोषी को इस गाँव से निकला गया था. किसानों ने इस बढ़िया बारिश की वजह से अपने खेतों में घान की बिजाई कर दी. पूरे गाँव में जगह-जगह हरियाली ने अपने पाँव पसार दिए थे . राममेहर नम्बरदार के घर का भूगोल भी बदल चुका था. उसकी पत्नी का देहावसान हो चुका था, राममेहर के दमे का रोग बढ़ गया था अब उसने गाँव की चौपाल में बैठना छोड़ दिया था अपनी बैठक में खाट डाल लेता था जहाँ पहले उसकी दिवंगत पत्नी बैठा करती थी उसके साथ ही रामफल के दोनों बच्चे खेलते रहते. रामफल का दूसरा ब्याह हो गया उसकी पत्नी रीना ने सुंदर घर बसाया उसने ने अपने आवारा देवर रामदरश को सीधा कर दिया अब वह अपने बड़े भाई के साथनियम से खेतों में काम करने लगा. रामफल के आँगन में मिट्ठू और छमिया आई और उसका जीवन हरा-भरा हो गया, एक नेक लडकी देख कर रीना ने रामदरश का ब्याह कर दिया. रीना ने रामदरश की पत्नी रानी के साथ घर का मोर्चा संभाल लिया था. रामदरश की पत्नी रीना काफी तेजतर्रार थी जिसके आगे बदमाश रामदरश भीगी बिल्ली बना रहता. लेकिन दोनों देवरानी जेठानी में खूब बनती थी. दोनों साथ-साथ ही मिलजुलकर घर के काम निपटती.
पहली बहु का दूसरा आगमन
भोर हो चली है दूर से मोरों की आवाजें सुबह के शांत वातावरण की ख़ामोशी को भंग कर रही हैं. आज रीन का बदन टूट रहा है लगता है बुखार चढ़ आया है. कल बटोडा तैयार करते-करते देर हो गयी थी.
तभी अपने दादा के साथ सुबह की सैर से लौटे छोटे बेटे ने आकर रीना को इतला दी.
माँ काकी आई है,
कोण सी काकी
बेरा कोनी, बर्नी में दादा धोरे बैठी स
कोण बसेसर की माँ के
ना कोई और स मे कोनी जानूं उसने
मैंने कोनी बेरा तू ही दीख ले
भीतर बुला ले
रीना खाट पर से उठ कर अपना पल्लू ठीक करने लगी.
इतनी देर में एक महिला लाठी टेकती-टेकती रीना के कमरे में चली आयी. यह महिला रीना की दूर की चची लगती है जो रीना के पति की पहली पत्नी संतोषी के मायके धोलपुर में रहती है.उसकी ननद की सास सुरों की ढाणी में रहती है उसका दो दिन पहले देहांत हो गया था उसी के शोक में वह अपनी गाँव से कईमहिलाओंके साथ ट्रेक्टर में बैठ करआई हैं.
नाश्ता करके लक्ष्मी काकी दो तीन घंटे रीना से बाते करती रही इतने में उसके गाँव की एक महिला उसे बुलाने आ गयी.
लक्ष्मी काकी के जाते ही रीना सोच में पड़ गयी और अपनी देवरानी को चाय बनाने को कह कर घडी भर को आराम करने चली गयी.
पर उसकी आँखों में नींद नहीं थी, भीतर कुछ रेंगता सा लग रहा था.
रामफल के खेत से लौटने का इन्तजार लम्बा पड़ने लगा था. बार बार उसकी निगाहे चौखट की और चली जाती.
कद आव्गा यो रामफल घनी बार होगी इब तो
रामफ़ल ने घर आते ही उसने खाना खाया और आराम करने चल पड़ा पोली में
पीछे पीछे रीना भी चली आई.
के बात स आज
मेरे मन में एक बात आयी स.
अच्छा बता, एक बात आई स दिन भर का थका-हारा रामफल ने जैसे अनिछ्चा से जवाब दिया.
मैं चाहती हूँ कि संतोषी अपने घर में रहे.
रामफल एक पल को चौंका
फिर कुछ ध्यान आते ही बोला
क्यों क्या बात है.
आज धोलपुर वाली लक्ष्मी काकी, गुड्डी की सास के काज में आई थी. उसने ही बताया की संतोषी के साथ कसुती बुरी बन री स.
भाई भाभी ने संतोषी का उसका जीना हराम कर रखा स.
कदे वा भी इस घर का हिस्सा थी,
रामफल गर्दन झुकाए रीना की बात सुन रहा था, फिर धीरे से बोला जो तेरे मर्जी हो वो कर, मन्ने आज तायी तेरी कोई बात टाली कोनी.
पति की सहमती पर रीना की आँखों में अचानक से chamak तैर गयी.
जब घर में आने वाली इस सदस्य के बारे में रामफल के रीना के देवर रामदरश को पता चला तो बिदक गया
और अपने माथे पर त्योरियां चढ़ा कर रामफल से बोला
जो कुछ करना हो करो मैं तो इस घर तह नयारा हो जाऊंगा.
उसके ज़ोर से बोलने पर रीना आ गयी, रामदरश रीना भाभी से डरता था इसलिए उसके आते ही एकदम से चुप हो गया.
रामफल कुछ बोले उससे पहले ही रीना बोल पडी.
तेरी मर्जी है. न्यारा होना है तो हो जा. पर संतोषी आ इस घर में आना तय है.
How to Crochet Rose Flower for Beginners | Very easy crochet rose motif..
Tuesday, September 9, 2025
last day of may: 16/52
last day of may: 16/52: elsa...first bare feet on the grass moment of 2013..."it tickles!!" (i couldn't resist a diptych this week) "a port...
"Hello everyone and welcome to my little corner of the internet! I absolutely adore autumn – that sweet spot with perfect weather that's neither too hot nor too cold. Hope you all had a fantastic time celebrating Diwali. I spent my holidays getting lost in a creative flow, and this lovely crocheted doily is the result. How beautiful is it?"
Of all the doilies I’ve crocheted, this doily is one of my favorites.
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Karen Klarbæks Verden: Ting jeg kan lide: Trådkurvene fra Lene Bjerre og glasset fra House Doctor som kun er et par år gamle. Lampen fra ca. 1940 som jeg arvede fra min mormor og...
xoxo
Monday, September 8, 2025
Raji's Craft Hobby: Quick and Easy Crochet Granny Square Doily
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Sunday, September 7, 2025
Monday, August 11, 2025
Sunday, August 10, 2025
FREEBIES FOR CRAFTERS: Peek-A-Boo" Toy Sacks
FREEBIES FOR CRAFTERS: Peek-A-Boo" Toy Sacks: Peek- A- Boo" Toy Sacks What a terrific way to store toys or other goodies and know what is in the bag and this Lego ...
Saturday, August 2, 2025
Wreath
Recently, I crafted a wreath to hang on my front door. This decorative tradition has its roots in 16th-century Germany during the Reformation, where Martin Luther used a wheel-shaped device to teach children about Christmas. Today, this circular arrangement, often embellished in various ways, serves as a charming and festive embellishment for a home's entryway.
my inspirational blogpost today
Rápido y Bonito: Puntillas para Servilletas de una Vuelta - Decora con E...
xoxo
Friday, August 1, 2025
Thursday, July 10, 2025
Saturday, June 7, 2025
काचरियाँ कै दिनाँ मैं.....
मेरी दादी..अर.काचरी..
मेरी दादी रात न खिचङी खाण कै बखत(काचरियाँ कै दिनाँ मैं) काचरी छोलया करदी मैं दादी की लाडली थी खिचङी खाये पाछ उसकै धोरैए बैठी रैया करदी। कई बर इसा होंदा अक मेरी दादी काचरी छोलीं जांदी अर मैं खाईं जांदी, ईसी मिठी लागदी अक सब के सवाद नयारे-नयारे, नुँ जाणदी अक इबकाअल दखाँ काचरी किसी पावैगि। मेरी दादी रोलै करण लागदी, हे छोरी के होया ईसा ऐक भी काचरी बोईयै में कोनी पङंदी, कितणी बार होगी मनैं छोलदी हाँण।
काचरी चटनी
लहासी का गिलास
दादी इस ढाल अक एक छोतक लिकङा करदा बीच मैं किते नहीं टुटदा। दादी घणीये काचरी छोल-छोल कीं सुखाया करदी, सारी साल चटणी मैं गेरण खातर। काचरियाँ की चटणी भोत आछी बणया करै।
इसने बणाण खातर आपिंनै चाईयें किमे साबत लाल मिरच-सुखोङी, लहसण, थोङा सा नूण हर थोङी लहासी
अर या चटणी कुंडी सोटै तैं घणी बढिया बणा करै।
बणाण का तरिकाः
छोलोड़ी कचरियां में साबत लाल मिर्च लहसन आर नमक घाल कीं कुण्डी सोटे तं खूब कूट ल्यो अर जिद कूट जां तो दही घाल कीं खूब रगड़ ल्यो .
बढिया चटनी बण जागी. इब इसनें चाहे तो बाजरे की रोटी सतीं खाओ या मेसी रोटी सतीं.
अलूणी घी
रोटी, अलूणी घी, अर एक लहासी का गिलास सारे पकवान एक कानी अर यो पकवान एक कानीं.
Tuesday, June 3, 2025
Pics
Roman Times: Ancient slingers: The power of a simple stone: by Mary Harrsch © 2025 I saw this beautifully angled image of Gian Lorenzo Bernini’s “David” on Facebook this morning and it reminded me ho...
Tuesday, March 4, 2025
Its March!
Goodness, it's March already! After the looooongest January ever, February flew by and now, OH! it's March. Apparently, according to Indian seasons, Spring begins from Basant Pnchmi.. – but its still winter here - but it's nice to see bulbs coming up and smell that springy smell in the air and feel a little heat from the sun. Yes, hello March, I like you.
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