एलिजाबेथ टेलर का नाम आते ही मैं किन्ही ख्यालों में खो जाती हूँ .....
क्लियोपैट्रा जैसी अनोखी फ़िल्म में अद्भुत अदाकारी दिखाने वाली अदाकारा अब इस दुनिया में नहीं रहीं. इसी वर्ष मार्च 23 2011 को उनका निधन हो गया. कल अचानक ही उनके बारे में यह नीचे दिया ...लिंक देख और पढ़ कर याद आया.... उन दिनों पंजाब केसरी खूब पढ़ा जाता था, उसी अखबार में एलिजाबेथ टेलर की आठवीं शादी के बारे में पढ़ा था. पंजाब केसरी एक अच्छा अखबार रहा था जिसमें मैने और मेरी बेटी ने अमृताप्रीतम, बलबीर कौर तिवाना, अजितकौर, बचित कौर आदि की जीवनीयाँ बराबर पढ़ी थी और खूब पढ़ी थीं जिनके संस्मरण अभी तक मानस-पटल पर बने हुए हैं. पंजाब केसरी में मेरे हस्तकारी के लेख भी शनिवार के महिला संस्करण में खूब छपे हैं. आज मेरी बेटी भी एक कवि हैं और इनमें से कई लेखिकाओं से रूबरू हुई , और कईयों से मिलती रहती है।
क्लियोपैट्रा जैसी अनोखी फ़िल्म में अद्भुत अदाकारी दिखाने वाली अदाकारा अब इस दुनिया में नहीं रहीं. इसी वर्ष मार्च 23 2011 को उनका निधन हो गया. कल अचानक ही उनके बारे में यह नीचे दिया ...लिंक देख और पढ़ कर याद आया.... उन दिनों पंजाब केसरी खूब पढ़ा जाता था, उसी अखबार में एलिजाबेथ टेलर की आठवीं शादी के बारे में पढ़ा था. पंजाब केसरी एक अच्छा अखबार रहा था जिसमें मैने और मेरी बेटी ने अमृताप्रीतम, बलबीर कौर तिवाना, अजितकौर, बचित कौर आदि की जीवनीयाँ बराबर पढ़ी थी और खूब पढ़ी थीं जिनके संस्मरण अभी तक मानस-पटल पर बने हुए हैं. पंजाब केसरी में मेरे हस्तकारी के लेख भी शनिवार के महिला संस्करण में खूब छपे हैं. आज मेरी बेटी भी एक कवि हैं और इनमें से कई लेखिकाओं से रूबरू हुई , और कईयों से मिलती रहती है।
फिर से एलिजाबेथ टेलर की बात पर- उनके बारे में जब भी कहीं में पढ़ती, मुझे मेरी पङ-दादी (मेरे पिताजी की दादी,great grandmaa) की याद आती थी. मेरी पङ-दादी (मेरे पिताजी की दादी) जिनका नाम हंसा था उनकी छोटी बहन अण्ची भी मेरे परिवार में ब्याही गई थी, उनके एक लङ्का होने के बाद उनके शौहर का निधन हो गया था, फिर वे मेरे पङ-दादा श्योराम के साथ ब्याही गई थी (उनका लत्ता ओढा था) जिनसे उनके एक लङ्की हुई जिसका नाम था (जिसका जन्म मेरे पङ-दादा के देहांत होने के बाद हुआ था) उस समय वे माtr 17 वर्ष की थी. फिर उन्होंने तीसरी शादी परिवार के अन्य पुरुष चुन्लाल से की और वे दूसरे परिवार में चली गई पर मेरे दादा के साथ शादी के लिहाज से वे मेरी पङ-दादी हुई. और मेरी वह पङ- दादी बहुत-बहुत बातें बताती थी और कहानियाँ सुनाती थी, मुझे जब मौका मिलता मैं उनके पास पहुँच जाती थी, मैं उनकी कहानियों के साथ-साथ वे पुरानी बातें भी नोट कर लेती थी. इससे मेरे पास घर-परिवार के साथ-साथ कहानियों का ख़जाना इकट्ठा हो गया था.
उनके पास तीन तरह के परिवार थे उनकी पहली शादी से जो लङ्का था वह काफी अच्छी तरक्की पर था हमारे गाँव में जमीन के साथ उनके पास desh kii आजादी के बाद(आजाद हिन्द फौज़ के लिए जवान भेजने के एवज में) मुरब्बे (25 एकङ जमीन सुई गाँव में मिलीं हुई थी) मिले हुए थे. उनकी तीसरी शादी के बाद पैदा हुए लङ्के और आपने पति के साथ रहते हुए भी वे हम सब परिवारों से इज़्ज़त पाती थी. और उन्होंने अपनी जिंदगी अच्छी गुजारी थी. 1966 में जब मैं आठ्वीं कक्षा में आगरा में पढ़ती थी तब उनका देहांत हुआ. और एक्बारगी तो गाँव में जाने का मेरा आकर्षण भी खत्म हो गया था.
आज एलिजाबेथ टेलर के इस लिंक के साथ ही में उनकी बात का यह हिस्सा यहाँ खत्म करती हूँ.
मेरी अपनी पड़ दादी के बारे में मैं आगे कभी जिक्र करूंगी.
Link for Elijabeth tayler: monday’s montage « Rules Of Engagement – Blog & Community for Guys & Brides – The Ring, The Proposal, The वेद्डिंग
At last upper view from my porch
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At last upper view from my porch
The glorious blue along with white clouds made the incredible green leaves and yellow marrigold flowers the more stunning. We were lucky to be here to capture beautiful pics |
शब्बा खैर!!
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