My daughter |
किसी भी रचनाकार के लिए उसकी देशजता सबसे अहम होती है। अपनी रचनाओं के लिए खाद-पानी वह वहीँ से आजीवन जुटाता है। अपनी देशज बोलियों के ऐसे शब्द जिनका अक्स दूसरी बोलियों में प्रायः नदारद होता है, अपनी कविताओं में ला कर न केवल कविताओं की जमीन को पुख्ता करता है, बल्कि देश-दुनिया को भी एक नए शब्द की आभा से परिचित कराता है। हाल ही में अपने एक साक्षात्कार में कवि केदार नाथ सिंह ने कहा था कि मेरी एक इच्छा है कि मेरा एक कविता संग्रह मेरी देशज भाषा भोजपुरी में आए। लेकिन यह अभी तक संभव नहीं हो सका है। संयोगवश हमारे युवा साथी अपनी देशजता के प्रति सजग हैं। विपिन चौधरी हिंदी कविता में आज एक सुपरिचित नाम है। कविताओं के साथ-साथ विपिन कहानियाँ और अनुवाद के क्षेत्र में भी सक्रिय हैं। आज हम आपको विपिन की उन हरियाणवी कविताओं से परिचित करा रहे हैं जो उनकी अपनी बोली-बानी है। जिसमें वे बेझिझक अपने को व्यक्त कर अपनत्व महसूस करती हैं. तो आइए पहली बार पर पढ़ते हैं विपिन चौधरी की कुछ हरियाणवी कविताएँ।
विपिन चौधरी की हरियाणवी कविताएँ
बाट
कोए आण आला सै
छोरी आंखया की ओट तै बोली
मुंडेर पर बैठा
मोर किस बाट में नाचया
दादाजी हुक्के में
चिलम मह चिंगारी की बाँट देख छोह मह आए
बालक
नै सपने में
नई पतंग की बाट देखयी
बाट बाट मह
तो या दुनिया गोल होई
No comments:
Post a Comment