Sunday, November 14, 2010

खिलौने बनाने की परम्परा!

मेरे घर के सामने वाले पेड़ की कच्ची फुंग्लिया खाने की गरज से, जो कि हमारे मेन गेट के ऊपर तक लटक जाती हैं, अक्सर बन्दर गेट पर बैठ जाते हैं। पिछले दिनों इस नजारे को मैने  अपनी बैठक के कमरे की जाली के दरवाजे से कैमरे में कैद किया, कहीं आहट पाकर यह बंदरों का जोड़ा, बिछुड़ ना जाए.....

देखिये  है  ना नजारा खुबसूरत......
ज़ब बाहर आई तो सचमुच वे बिछुड़ गये थे और इस एक को मैने कैमरे में कैद किया....

ऊपर फोटो में मेरी बिटिया ज़ब नन्ही थी तब का फोटो देखिये पास में ही इसका खिलौना पप्पी बैठा है जिसे मैने स्वयं बनाया था.
और फ़िर यह गुडिया ......
और यह भी .....
ऐसे सैकड़ो खिलौने मैने बनाये थे जिन्हें बच्चों को गिफ्ट किया....
सबसे पहले मैने इन्हें हमारे पास के गाँव में आई ग्राम सेविका से सीखा तब मैं कोई १५-१६ वर्ष की थी ....और निरंतर ......कुछ-कुछ अंतराल में आवश्यकतानुसार इन्हें बनाकर गिफ्ट करती रही...
पूरी कहानी फ़िर कभी .......

शब्बा खैर!

No comments:

Post a Comment