Tuesday, October 29, 2013

My daughter's writting

My daughter's article about carrier choices..................a true story of her friend

विपिन चौधरी

जनसत्ता 29 अक्तूबर, 2013 : नाटकों का मंचन देखने की रुचि के चलते ही हम दोनों दोस्त बने। लगभग चार साल से मेरे और उसके बीच किताबों का आदान-प्रदान होता रहा। इस बार भी अपने व्यस्त समय से कुछ पल महफूज रख कर मेरी सहेली डॉक्टर कुसुम किताब लौटाने आई थी। हमेशा की तरह उसके पास बैठने से पहले मैं रसोईघर में गई और दो मग चाय और बिस्कुट के साथ लौटी तो एकबारगी कुसुम के बदले हुए रंग-रूप की तरफ मेरा ध्यान नहीं गया। अपने बैग से उपन्यास ‘शालभंजिका’ निकाल कर मेज पर रखती हुई वह बोली- ‘इसे लौटाना था और जाने से पहले तुमसे मिलना भी था।’ ‘जाने से पहले!’ -मैंने हैरानी से पूछा। उसने कहा- ‘पिछले दिनों जब तुम्हारा फोन आया था, तब मैंने बताया था न कि मैं अपने घर काठमांडो में हूं। मैंने मिस नेपाल प्रतियोगिता में हिस्सा लिया था, जिसमें मैं दूसरे स्थान पर रही। अब वहां मुझे एक नेपाली टेलीविजन चैनल की तरफ से एक कार्यक्रम में काम करने का प्रस्ताव मिला है। मैंने अस्पताल से इस्तीफा दे दिया है। दो दिन बाद काठमांडू जा रही हूं।’ click here  for complete article 
link .........
 http://www.jansatta.com/index.php/component/content/article/53699-2013-10-29-04-16-53

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 Photo: जनसत्ता 29 अक्टूबर 2013, को "दुनिया मेरे आगे कॉलम' में (मन की राह ) शीर्षक से मैंने अपनी सहेली की लगन का जिक्र किया था उसी डॉक्टर सहेली की तस्वीर अब एक मॉडल के रूप में, नेपाल के कलेंडर पर अंकित 
http://www.jansatta.com/index.php/component/content/article/53699-2013-10-29-04-16-53
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