My daughter's article about carrier choices..................a true story of her friend
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विपिन चौधरी
जनसत्ता 29 अक्तूबर, 2013 : नाटकों का मंचन देखने की रुचि के चलते ही हम दोनों दोस्त बने। लगभग चार साल से मेरे और उसके बीच किताबों का आदान-प्रदान होता रहा। इस बार भी अपने व्यस्त समय से कुछ पल महफूज रख कर मेरी सहेली डॉक्टर कुसुम किताब लौटाने आई थी। हमेशा की तरह उसके पास बैठने से पहले मैं रसोईघर में गई और दो मग चाय और बिस्कुट के साथ लौटी तो एकबारगी कुसुम के बदले हुए रंग-रूप की तरफ मेरा ध्यान नहीं गया। अपने बैग से उपन्यास ‘शालभंजिका’ निकाल कर मेज पर रखती हुई वह बोली- ‘इसे लौटाना था और जाने से पहले तुमसे मिलना भी था।’ ‘जाने से पहले!’ -मैंने हैरानी से पूछा। उसने कहा- ‘पिछले दिनों जब तुम्हारा फोन आया था, तब मैंने बताया था न कि मैं अपने घर काठमांडो में हूं। मैंने मिस नेपाल प्रतियोगिता में हिस्सा लिया था, जिसमें मैं दूसरे स्थान पर रही। अब वहां मुझे एक नेपाली टेलीविजन चैनल की तरफ से एक कार्यक्रम में काम करने का प्रस्ताव मिला है। मैंने अस्पताल से इस्तीफा दे दिया है। दो दिन बाद काठमांडू जा रही हूं।’ click here for complete article
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http://www.jansatta.com/index.php/component/content/article/53699-2013-10-29-04-16-53
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