देखें साङी से बने सुट से बचे कपङे का पैच लगा कर सुंदर बैग बनाया गया है, जिस पर आईलैट हैंडल लगाये गये हैं। बैग का बेस कपङा मेरे कतरनों के डिब्बे से लिया गया है, देखिये जरा नीचे
कैसे बनायें?
इसके लिये बेस कपङा लें अपने बैग की लम्बाई व् चौड़ाई के अनुसार व साईडों के लिये, चित्र 1 अनुसार १,२,३,४ माप लें ऐवं ज़रुरत अनुसार चौङाई ले लें
ईतना ही फयुज़न कपङा ( पेसटिंग वाली टैटरोन) लें,
ऐवं ईतना ही लाईनिंग के लिये कपङा लें,
ज़रुरत अनुसार ज़िप लें जितनी आपको जेबें लगानी हों
साङी का बार्डर, व कुछ मेन साङी का कपङा, बैग के ऊपर निचे व बैग बंद करने के फलैप पर लगाने के लिये लें( इन्हें भी फ्यूजन करें)।
बेस कपङे को ऊलटा कर फयुज़न कपङा गोंद कि तरफ से उस के ऊपर रखैं, मलमल के कपङे को पानी में भिगो कर निचोङ लें, इसे फयुज़न कपङे पर अच्छी तरह फैला कर कर इस्त्री करें, ध्यान रहे इस्त्री को रख कर दबाएँ ,फिर उठायें, फिर दुसरी जगह ऐसा ही करें, इस तरह दोनो परतें फयूज़ हो जायेंगी। बैग की दुसरी साईड व साइडों को भी इसी तरह फयूज़ कर लें। साङी का बार्डर, साङी का कपङा, पैच लगाने के लिए व् बैग बंद करने वाली फ्लैप के लीए जो साड़ी बार्डर लिया है उसे से भी फ्यूजन कपड़े से फ्यूज़ कर लें.
अब सिलाई शुरू करें---
बैग के सामने वाले हिस्से पर ऊपर व निचे डिज़ाईन (चित्र 3 देखें) जोङ दें, अब सामने वाले हिस्से पर साईडें जोङ दें (सीधी तरफ से) बैग का पिछला हिस्सा भी साइडों से जोङ दें। बैग की बाहरी सिलाई को पाईपिंग से सिलते हुये छिपा दें।
लाईनिंग भी इसी तरह सिलाई कर जोङ लें, जेबें लगा कर ज़िप लगालें।
बैग व लाईनिंग के उलटे हिस्से को अंदर से मिला कर जोङते हूये सिलाई कर लें, ऊपर से भी पाईपिंग लगा लें.
फलैप बैग के पिछले हिस्से ( देखें चित्र 2 में पीछे का हिस्सा) पर बीच में जोङ दें, किसी बटन पर बेस कपङा मढ कर फ्लैप पर टांक दें, फलैप पर व बैग के सामने बीच में व्ल्क्रो ( बैग बंद करने के लिए) टांक दें, आईलैट लगा कर हैंडल डाल दें।
अब यह बैग व पर्स दोनों का काम करेगा और बार- बार इसे इस्तेमाल किया जा सकेगा। इस तरह आप पर्यावरण बचाने में सहायक होंगी.
मेरी बेटी ने इस बैग को माडल किया है, साड़ी से बनाये सूट में से बची कतरनों को मैंने अपने कतरनों के डिब्बे में सहेज लिया था. बेटी के जन्म-दिन पर यह मैचिंग बैग बना कर मैंने उसे भेंट किया तथा पोली- बैग से खरीदारी न कर के, पर्यावरण बचाने में शायद कुछ मदद हो, पुराणी साड़ी रिसाइकिल कर के सुट. रिसाइकिल का महत्व समाहित है
देखिये हिन्दुस्तानी परम्परागत साडी कैसे पहनी जाती है.अब इन साड़ियों को कौन पहने .....
मुझे तो इन्हें पहन कर कहीं जाना बहुत मुश्किल लगता है..
साडी ही क्यों हमारे हरियाणा का परम्परागत २० से ४० गज का घाघरा भी काफी भारी होता था.
मुझे याद है मेरी दादी हब कहीं बैठती थी तो घाघरे को समेट कर उस पर बैठ जाया करती थी.
मुझे यह भी याद है कि खेत में काम करते समय औरतें वहां पर सलवार-सूट पहनती थी. और उन्हें खेत में ही रख देती थी.
बाहर हाल शब्बा खैर!!
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