तब क्या था पुट्टी में नमी की वजह से गांठें पड़ी हुई थी और वे पानी डाल कर पेस्ट बानाते समय किसी भी तरह घुलने का नाम नहीं ले रही थी. मैंने एक गर्दन टूटे मिटटी के कुलहड़ को उठाया और उस पर वह पेस्ट गांठों समेत ही लेप दिया फिर एक पुराना पड़ा छोटा गमला उठाया और उस पर भी वह पुट्टी का गाँठ वाला पेस्ट लीप दिया और उन्हें सुखाने के लिए रख दिया. और वह दोनों ही बर्तन/गमला और कुलहड़ बहुत ही सुन्दर कलात्माक चीजें बन गईं. फिर मैंने कुलहड़ पर सफ़ेद पेंट कर दी तथा दुसरे यानी गमले पर वार्निश कर दी जो की वर्षीं पुरानी थी और कुछ गाढ़ी हो गई थी.....
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यह देखिये एक ही फूल से सज्जित यह फूलदान ...कितना सुन्दर लग रहा है
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और इसे पास से देखिये!
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देखिये यह गमला केलि पौधे को पनाह दे कैसे सिर ऊँचा किये है.....
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पुट्टी इतनी मजबूती से जकड़ी है कि इसे उतारना मुश्किल यानी की सोलीड और दुरुस्त काम .....
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इस बिना किसी मेहनत के सुन्दर और तिकाऊ काम को देख मन बहुत खुश हुआ और ...मुझे याद आया की वर्षों पहले जब हमने अपना पहला मकान बनाया था तो ऐसा दाना अफैक्ट देने के लिए हमने अपने घर के सामने की दीवार पर सीमेंट की लिपाई करवाकर उस पर रोड़ी चिपकवाई थी ..जो बहुत मुश्किल और महँगा काम था ..उन दिनों इस तरह की दीवार का बहुत रिवाज था.
शब्बा खैर!!!
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