वाकया बहुत पुराना है बरसों पहले जब मैं मुम्बई गई थी (कालेज के टूर पर) तब वहां की फुटपाथी कला को देखकर चमत्कृत और अभिभूत हो गई थी ।मुम्बई का वीटी स्टेशन, जो अब सीएसटी हो गया है, और जहां पर हमारी बोगी ५-६ दिन(किसी वजह से) खड़ी रही थी, के सामने से एक सड़क बॉम्बे जिमखाना की ओर जाती है। उसके नुक्कड़ पर रोज एक नई पेंटिंग बनी दिखती थी। कभी सुनील गावस्कर की, तो कभी राजीव गांधी की। कभी मदर टेरेसा की, तो कभी साई बाबा की। इसके बाद तो मुझे us स्ट्रीट आर्ट देखने का क्रेज ही हो गई ।और मैं रोजाना (जब तकहम वहांरही) मुझे
लक्ष्मीजी के पग |
कमल के फूल |
इस तरह की कलाकर्तियाँ बनाने वाले दो तरह के होते हैं - शौकिया और पेशेवर। शौकिया कलाकार किसी उत्सव या विशेष अवसर पर महज सजावट के लिए ऐसे चित्र बनाते हैं। वे त्यौहारों, जन्मदिन, शादी, बिल्डिंग के वार्षिक कार्यक्रम, स्कूलों-कॉलेजों के समारोहों और विशिष्ट अवसरों पर ऐसे चित्र बनाकर अपनी कला का प्रदर्शन करते हैं। इसे ही 'रंगोली बनाना ' कहते हैं। इसकी स्पर्धाएं भी होती हैं हमारे काले जा में हमेशा यह स्पर्धाएं होती रहती हैं। शौकिया कलाकार केवल अपनी कला को दिखाने के लिए रंगोली के चित्र बनाते हैं। उन्हें किसी पुरस्कार या बख्शीश की अपेक्षा नहीं होती। पेशेवर कलाकार फुटपाथों पर रंगोली बनाते हैं। दरअसल, ये मामूली कलाकार होते हैं। एकदम गरीब। उन्हें भिखारी कलाकार भी कह सकते हैं। फुटपाथ पर रंगोली बनाकर ये वहीं अपने चित्र के पास बैठ जाते हैं। इनमें से कुछ विकलांग भी होते हैं। वे रंगोली के बीच में एक कटोरा या कपड़ा रख देते हैं। यह एक तरह से भीख मांगने का ही कलात्मक तरीका है। वहां से गुजरते लोग रुककर कुछ पल चित्र देखते हैं, फिर उस पर कुछ सिक्के डालकर आगे बढ़ जाते हैं। कलाकार कई घंटे वहीं बैठा रहता है। आने-जाने वाले लोगों की भीड़ कम होने पर वह जमा हुए सिक्के उठाकर चला जाता है।और अगले दिन फिर आकर कोई और चित्र बनाता है यही उसकी रोजी है .
स्वस्तिक, |
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मुझे इस कला को देखने का जैसे क्रेज हो गया, अपने प्रोजेक्ट के दौरान जब बभी मैं कहीं गई वहां पर इस तरह की कला के बारे में पुचा और उसे जरुर देखा. मैंने ऐसे कई कलाकारों से पूछा कि वे कैनवस पर पेंटिंग क्यों नहीं बनाते। सबका यही जवाब था कि पेटिंग बनाने में होने वाला खर्च वे उठा नहीं सकते। वे तो रोज रंगोली बनाकर रोज कमाने वाले लोग हैं। कैनवस और रंगों पर पैसा खर्च करके, फिर पेंटिंग बनाकर अपने पास आखिर रखें कहां बेचारे? इनमें से ज्यादातर तो झोपड़ियों में रहते हैं। इसलिए उनकी कला महज फुटपाथी कला बनकर रह गई है।
एडगर म्यूलर, जूलियन बीवर व मैनफ्रेड स्टैडर, अमेरिका के कर्ट बेनर,और अर्जेंटीना के एडवर्डो रेलोरो, में क्या समानता हो सकती है?
ये पांचों 3डी पेवमेंट आर्ट की दुनिया के पांच आला कलाकार हैं। कला की यह नई विधा पूरी दुनिया में तेजी से लोकप्रिय होती जा रही है।
इसी कला का उन्नत स्वरूप 3डी पेवमेंटआर्ट है। इसमें किसी फुटपाथ, चौक या सार्वजनिक स्थान पर 3डी सीनरी या ऑब्जेक्ट बनाए जाते हैं। वे इतने जीवंत लगते हैं कि अक्सर लोग उन्हें असली समझ बैठते हैं। एनामर्कोसिस (Anamorphosis ) नामक प्रॉजेक्शन के इस्तेमाल से ये कलाकार अपनी कला में 3डी लुक पैदा करते हैं। इस काम का तरीका अलग है। उसमें तरकीब (ट्रिक) भी जुड़ी होती है। पहले किसी ऑब्जेक्ट या सेटिंग का फोटो लिया जाता है। यह फोटो शार्प ऐंगल का होता है। फिर उस फोटो पर एक ग्रिड लगाई जाती है। एक ग्रिड फुटपाथ पर लगाई जाती है। फुटपाथ की ग्रिड में फोटो के एलीमेंट रचकर 3डी प्रभाव बना दिया जाता है। उदाहरण के लिए, एडगर ने फुटपाथ पर झरना बनाया। उसे देखकर लोगों को प्राकृतिक झरने जैसा ही अहसास हुआ। कुछ लोग तो उसमें नहाने को मचल उठे, कुछ हड़बड़ाकर पीछे हट गए। जूलियन बर्फ और बॉटल का इफेक्ट देने में माहिर हैं। उनका रिवर राफ्टिंग का काम भी खूब लोकप्रिय हुआ। कर्ट वेनर की विशालकाय आकृतियों की भी खूब चर्चा हो रही है।
इसी कड़ी में पिछले कुछ वर्षों में स्ट्रीट-आर्ट
भी भित्तिचित्रों के रूप में लोकप्रयता पा रहा है कलाकार जुलियाना सांताक्रूज हेरेरा ने पेरिस की सड़कों पर अपनी कपडे से गुँथी हुई चोटियों से रंगीन बना दिया था.
रंगीन कपड़ों की पट्टियां बना कर शहर की सड़कों के गड्ढों को उसने अपनी कलाक्र्तियों से इस प्रकार भर दिया था कि वह स्ट्रीट-आर्ट
का नायाब नजारा प्रस्तुत कर रहा था.
XOXO
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