आषाढ़ के महीने में बादल देख कालिदास की 'मेघदूत'(meghdut) की याद आ गई.वैसे हमारे बारानी ईलाके में जेठ के महीने में भी खरीफ की फसल की बिजाई कर देते हैं 'मेघदूत' कालीदास की सुविख्यात काव्य कृति है। यह एक लिरिकल पोएम है जिसका ना केवल साहित्यिक दृष्टि से महत्व है, बल्कि वैज्ञानिक दृष्टि से भी बेहद महत्व रखता है। इसमें मानसून का वर्णन मिलता है और मध्य भारत में मानसून के गति पथ और दिशाओं का भी उल्लेख मिलता है जो आज के वैज्ञानिकों के शोध कार्य के लिए महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है। कालीदास के अन्य महत्वपूर्ण कृतियों में शामिल हैं 'शकुंतला', 'विक्रम-उर्वषी', 'कुमारसंभवा', 'रघुवंशम' आदि। इन सभी पर फ़िल्में बन चुकी हैं। 'मेघदूत' पर सन् १९४५ में देबकी बोस ने इसी शीर्षक से फ़िल्म निर्देशित की जिसका निर्माण कीर्ति पिक्चर्स के बैनर तले हुआ था। .
मेरे खेत में ऊँट...........
इस तरह की
तस्वीरें देख् कर
मुझे हमारे घर
के ऊँट की
याद आ जाती
है ..यह नज़ारे
दुर्लभ दिखते हैं जब
ऊँट पर पिलान
रख कर मेरे
दादा मुझे बैठते
थे तो बड़ा
आनंद आता था...बिना पिलान
के बैठना बड़ा
कष्टकारी होता था...
अब तो नये ज़माने के पिलान भी मिलने लगे हैं
पिलान ना भी हो तो बोरे लदे ऊंट पर बैठना बड़ा सुखद है. चाहे आप बोरों पर सो जाएँ.
जब मैं कुछ दिन तोशाम स्कूल में पढ़ी थी तब मेरे चाचा जब हफ्ते में एक बार ऊंट पर सामान लेने आते थे तब मुझे स्कूल से घर के लिए ऊंट पर बैठा कर ले जाते थे बड़ा सुखद लगता था मैं तो बोरों पर सो जाती थी
शब्बा खैर!
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