Thursday, April 2, 2020

nostalgia

आज मुझे बचपन के दिन याद आ गए हम पास के गांव  कुछ काम से गए थे तब उनके यहां लकड़ी का दरवाजा लगा हारा देखा. इस लकड़ी का दरवाजा बने हारे में  अक्सर दूध ही गर्म किया जाता है. जब मैं छोटी थी तब मेरी दादी ऐसे हारे में दूध गर्म करती थी।  इस हारे में छह- सात इंच गहरा और १८-२० इंच डायमीटर का गड्ढा खोद कर उसे गोबर-मिटटी का लेप लगा देते हैं। फिर उसके ऊपर चार दीवारी खिंच कर छत  भी बनादी जाती है,और फिर उसके सामने लकड़ी की छोटी खिड़की लगा दी जाती  है।
हमारी हवेली में तीन परिवार रहते थे. हमारे घर में  ऊँट  होते थे उनके मिंगने  ( डंग )  हारे में  ईंधन के रूप में प्रयोग किये जाते थे. 
इसके लिए हारे के गड्ढे में कुछ सूखे मींगने डाल दिए जाते थे फिर उस पर चूल्हे की आग अथवा जलावन डाल कर ऊपर से फिर सूखे मींगने डाल दिए जाते थे धीरे-धीरे आग सुलग जाती थी ,फिर उसके ऊपर दूध  भरी कढावणी(टेराकोटा बिन)रख दी जाती थी मेरी दादी जब हवेली से बाहर जाती थी तब हारे की खिड़की पर ताला लगा कर जाती थी।  
खाने के समय हमें मिलता था गुलाबी रंग का स्वदिष्ट दूधः और उसकी मलाई तो लाजवाब होती थी. 


In museum, This is a milk cooking device with wooden door  at the back of my g-daughter



इस चित्र में मेरे साथ मेरी पोती रेहाना खड़ी है उसके ठीक पीछे खिड़की वाला हारा फिर उठाऊ हारा और उसके साथ  उठाऊ चूल्हा(पोर्टेबल-हेअरथ) दिखाई दे रहा है.
पिछले साल जब हम लाइब्रेरी की प्रदर्शनी में गए थे तब हमने धरोहर में यह सब चीजें देख थी 


XOXO

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