Thursday, December 20, 2012

हरियाणवी कविता ....

डाभ /कुश / काँस (An evergreen wild weed which has deep roots going down to water level)


हमारे खेत में इतनी थी की जितनी काटो उतनी और उपज आती थी....अब उस टिब्बे को सीधा कर दिया था पर डाभ अब भी बहुतायत में है....

प्रस्तुत है॥कविता:



डाभ कै म्हारे खेत मैं

मूँग, मोठ लहरावे रे

काचर, सिरटे और मतीरे

धापली कै मन भावै रे

रे देखो टिब्बे तलै कुयकर झूमी बाजरी रे।

बरसे सामण अर भादों

मुल्की बालू रेत रे,

बणठण चाली तीज मनावण

टिब्बे भाजी लाल तीज रे

रे देखो पींग चढ़ावै बिंदणी रे।

होली आई धूम मचान्दी

गूँजें फाग धमाल रे,

भे – भे कीं मारे कोरड़े

देवर करे बेहाल रे,

रे देखो होली में नाच रही क्यूकर गोरी बेलहाज रे।

जोहड़ी में बोले तोते

बागां बोलै मोर रे,

पनघट चाली बिंदणी

कर सोलह सिंणगार रे,

रे देखो पणघट पर बाज रही है रमझोल रे।

खावंद कई आवण की बेल्या

चिड़ी नहावै रेत रे,

आज बटेऊ आवैगा

संदेश देव काग रे

रे देखो डोली पर बोल रहया कागला रे

डाभ कै म्हारे खेत मैं

मूँग, मोठ लहरावे रे

XOXO

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