वैशाख पूर्णिमा के उपलक्ष्य में कूर्म अवतार जयंती पर्व मनाया जाएगा। पद्म पुराण व नृसिंह पुराण के अनुसार कूर्म अर्थात कच्छप यानि कछुए को विष्णु का द्वितीय अवतार माना जाता है। शास्त्र भागवत पुराण, शतपथ ब्राह्मण, महाभारत व पद्मपुराण में उल्लेख है कि संतति प्रजनन के लिए प्रजापति ने कच्छप रूप धारण कर पानी में संचरण किया था। लिंग पुराण के अनुसार जब पृथ्वी रसातल को जा रही थी, तब विष्णु ने कच्छप रूप में अवतार लिया। उक्त कच्छप की पीठ का घेरा एक लाख योजन था। पद्मपुराण में वर्णन हैं कि इंद्र ने अहंकारवश ऋषि दुर्वासा द्वारा दी गई बहुमूल्य माला का निरादर कर दिया था। कुपित ऋषि दुर्वासा ने देवगणों को बलहीन, तेजहीन व ऐश्वर्यहीन कर दिया, जिससे देवगण अत्यंत निर्बल हो गए। मौका देखकर दैत्यराज बलि ने असुरों के साथ देवों पर आक्रमण कर स्वर्ग पर अपना आधिपत्य जमा लिया। सभी देवगण श्रीहरि के पास पहुंचे।
श्रीहरि ने उन्हें समुद्र-मंथन कर अमृत प्राप्त कर उसका पान करने को कहा। अमृत के लालच में असुरों ने देवताओं के साथ मिलकर समुद्र मंथन किया। क्षीर सागर में मंद्राचल पर्वत को मंथनी, वासुकि नाग को रस्सी बनाया। श्रीहरि ने कच्छप अवतार धारण कर मंद्राचल को अपनी पीठ पर स्थापित कर समुद्र मंथन आरम्भ किया। कूर्म अवतार के कारण ही समुद्र मंथन संभव हो पाया, जिसके फलस्वरूप निधियों व लक्ष्मी की उत्पत्ति हुई व देवताओं को अमृत की प्राप्ति हुई। कूर्मावतार जयंती के विशेष पूजन उपाय व व्रत से शारीरिक बल में वृद्धि होती है, जीवन ऐश्वर्यवान बनता है तथा सामाजिक पराक्रम बढ़ता है।
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