Saturday, October 16, 2021

Nostalgia with a pious tree(जांडी का पेड़ ) of our farm


बच्चे कहते रहते हैं हैं मम्मीअपने बचपन की गाँव की बातें बताओ
आज दशहरा है दशहरे के दिन बहुत से लोग ह्मारे सामने के पार्क में लगे जांडी के पेड़ की पूजा कर रहे थे.मुझे हमारे खेत में लगे जांडी के पेड़ की याद आ गई। ........ मैंने उन्हें बताया  आज मैंने बताया हमारेखेत में बहुत से जांडी के (खेजड़ी,Prosopis cineraria) के  पेड़ थे.   खेत में काम करते समय विश्राम करने के लिए हमपास वाली जांडी के नीचे ही बैठते थे। खेत में  खाना  भी इसी के नीचे बैठ कर खाते थे, सुबह घर से जब हम खाना लाते थे तब उसे कपड़े में बाँध कर जांडी (खेजड़ी) के पेड़ पर लटका देते थे ताकि चींटियों और जानवरों से हमारेखाने का बचाव हो सके.जांडी का पेड़  जेठ के महीने में भी हरा रहता है। हमारा इलाका बारानी पड़ता था अब तो खैर नहर भी आ गई है। 

लेकिन उन दिनों हमारे उस खेत में बड़े-बड़े टिब्बे (sand dunes) हम जेठ/ज्येष्ठा (In lunar religious calendars, Jyēṣṭha begins on the new moon and is the third month of the year.Traditionally, Jyēṣṭha is associated with high summer, and corresponds to May–June in the Gregorian calendar. In Tamil, the month is known as Aani, the third month of the solar calendar that begins in mid-June.) के महीने में जब सावनी की बिजाई करने के लिए खेत का सूड़(prepration of land before sowing) काटते थे, तब  इसके पेड़ के नीचे ही विश्राम करते थे बड़ी ठंडी हवा देता था यह पेड़। 






कई जगह जांडी को 'सफ़ेद कीकर' के नाम से भी जाना जाता है दिखने में ये बबूल के वृक्ष जैसा होता है और ज्यादातर शुष्क और रेतीली भूमि पर उगता है इस पर पीले और गुलाबी फूल मार्च से मई के बीच उगते है ये मटर प्रजाति का पेड़ है जिस पर फलियां आती है जिसे खाया भी जाता है जांडी की सबसे बड़ी विशेषता है की पानी की बेहद कमी हो जाने पर भी इस की पत्तियां हरी ही रहती है और जानवरो को अकाल में भी भरपूर चारा मिलता रहता है दीपावली के त्यौहार केबाद इस पेड़ की छंगाई (pruning)कर  देते थे।  तब इसके पत्तों को झाड़ लेते थे इसके पत्तों कोलूंगा कहते है। लूंगा हमारी गाय भैंसों को डाल देते थे और उसकी लकड़ी कोजलावन(fuelwood) के रूप में काम लाते थे। 

इसकी लकड़ी बहुत अच्छी जलती हैं वे कम धुंआ देती है और उनकी क्लोरीफिक वेल्यू(clorific value)  भी ज्यादा होती है. जांडी के सभी पेड़ों की छंगाई करके उन्हें एक जगह इकट्ठा कर ढेर लगाएदिया जाता था जिसे मरीड़ा (stackedwood) कहते हैं।  मरीड़े की लकड़ियां साल भर ईंधन (fuelwood)के रूप में घर पर खाना पकाने के काम लाई जातीथी. हम लोग खेत में जांडी की लकड़ियों के आसपास घीया, तोरी और पेठे की बेलें लगा दिया करते थे जो मरीड़े पर चढ़ जाती थी और उसके आस-पास पुरानी लकड़ियों कीखाद से बेलें(creepers) खूब फलती-फूलती थी और उनमें खूब सब्जियां लगती थी.





 इसके फूल को मिझर और फलको सांगरी कहते हैं इसकी सब्जी बनती है हरी  सांगरी की सब्जी बनती है  फिर इसे तोड़ कर सूखा लिया जाता है जिससे साल भर सब्जी बनाई जाती है.




पेड़ पर सांगरी के पक जाने पर उसका फल खोखा कहलाता है।  खोखा खाने में स्वादिष्ट होता है हम जब बच्चे थे तब खूब खोखे खाया करते थे। 
जांडी  की पकी हुई सांगरियों में औसतन 8-15 प्रतिशत   प्रोटीन पाया जाता,40-50 प्रतिशत कार्बोहाइड्रेट और 8-15 प्रतिशतशर्करा पाई जाती है,8से 12 प्रतिशत फाइबर( रेशा) 2 से 3 प्रतिशत वसा(फैट )04 से 05 प्रतिशत कैल्शियम  और 02 से 03 प्रतिशत आयरन  पाया जाता है  तथा अन्य सूक्ष्म तत्व पाए जाते है यह स्वास्थ्यवर्धक और गुणकारी है.

A story behind Iandi:khejri tree  (खेजड़ी,Prosopis cineraria) 


 जांडी के पेड़ के पीछे एक कहानी  यह है कि  1730-AD में राजस्थान के जोधपुर के पास के गाँवखजराला में अमरता देवी ने अपनी तीन बेटियों के साथ पर्यावरण को बचाने का अभियानचलाया था और इन पेड़ों को बचाने के लिए 363 (71 महिलाएं और 272 पुरुष)लोगों के साथअपनी कुर्बानी दी थी। मारवाड़ के राजा अभयसिंह खेजड़ी के पेड़ों को कटवा कर वहां परअपना महल बनवाना चाहते थे तब लोगों ने इसका विरोध किया था और राजा केलोगों द्वारा इन वृक्षों को काटते समय वे खेजड़ी के पेड़ों से  चिपक गये थे और उन्हें भी पेड़ों के साथ काट डालागया था चिपको आंदोलन भी इसी का स्वरूप था. 

 


शास्त्रों में जांडी का पेड 
शास्त्रों में कहा गया है कि एक पेड़ दस पुत्रों के समान होता है। पेड़-पौधे घर की सुंदरता के साथ-साथ घर की सुख-शांति के द्योतक भी माने जाते हैं। हिंदू सभ्यता में मान्यता है कि कुछ पेड़-पौधों को घर में लगाने या उनकी उपासना करने से घर में सदा खुशहाली रहती है और घर में सदैव लक्ष्मी का वास रहता है। पीपल, केला और जांडी का वृक्ष आदि ऐसे पेड़ हैं जो घर में  समृद्धि प्रदान करते हैं। मान्यता है कि जांडी  का पेड़ घर में लगाने से देवी-देवताओं की कृपा बनी रहती है। पीपल और जांडी दो ऐसे वृक्ष हैं जिन पर शनि का प्रभाव होता है। इसलिए लोग इन्हे घर में लगाने से भी डरते है पीपल का वृक्ष बहुत बड़ा होता है इसलिए इसे घर में लगाना संभव नहीं हो पाता। लेकिन जांडी का पौधा आप गमले में भी लगा सकते है बिहार और झारखंड में यह वृक्ष अधिकतर घरों के दरवाजे के बाहर लगा हुआ मिलता है।


जांडी वृक्ष की धार्मिक महत्त्व और पौराणिक मान्यताये

शमी शमयते पापम् शमी शत्रुविनाशिनी ।
अर्जुनस्य धनुर्धारी रामस्य प्रियदर्शिनी ॥
करिष्यमाणयात्राया यथाकालम् सुखम् मया ।
तत्रनिर्विघ्नकर्त्रीत्वं भव श्रीरामपूजिता ॥

धार्मिक मान्यताओं में जांडी का वृक्ष बड़ा ही मंगलकारी माना गया है जांडी के वृक्ष पर कई देवताओं का वास माना गया है दशहरे पर जांडी के वृक्ष के पूजन का विशेष महत्व है ऐसी मान्यता है कि मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम ने लंका पर आक्रमण करने से पहले जांडी के वृक्ष के सम्मुख अपनी विजय के लिए प्रार्थना की थी रावण दहन के बाद घर लौटते समय जांडी के पत्ते लूट कर लाने की प्रथा आज भी है इसकी पत्तियां 'स्वर्ण 'का प्रतीक मानी जाती है नवरात्र के दिनों में मां दुर्गा का पूजन जांडी वृक्ष के पत्तों से करने का शास्त्रों में विधान है नवरात्र के नौ दिनों में प्रतिदिन शाम के समय वृक्ष का पूजन करने से धन की प्राप्ति होती है महाभारत में पांडवों द्वारा अज्ञातवास के अंतिम वर्ष में गांडीव धनुष इसी पेड़ में छुपाए जाने के उल्लेख मिलते हैं गणेश जी और शनिदेव दोनों को ही जांडी बहुत प्रिय है। जांडी के पेड़ की पूजा करने से शनि देव और भगवान गणेश दोनों की ही कृपा प्राप्त की जा सकती है एक मान्यता के अनुसार कवि कालिदास को जांडी के वृक्ष के नीचे बैठकर तपस्या करने से ही ज्ञान की प्राप्ति हुई थी इस पौधे में भगवान शिव स्वयं वास करते हैं जो गणेश जी के पिता और शनिदेव के गुरू हैं इसलिए भगवान गणेश की आराधना में जांडी के वृक्ष की पत्तियों को अर्पित किया जाता है जांडी पत्र के उपाय करने से घर-परिवार से अशांति को दूर भगाया जा सकता है ऋग्वेद के अनुसार जांडी के पेड़ में आग पैदा करने कि क्षमता होती है ऋग्वेद की ही एक कथा के अनुसार आदिम काल में सबसे पहली बार मनुष्य ने जांडी और पीपल की टहनियों को रगड़ कर ही आग पैदा की थी क्योंकि जांडी में प्राकृतिक तौर पर अग्नि तत्व की प्रचुरता होती है इसलिए यज्ञ में अग्नि को प्रज्जवलित करने हेतु जांडी की लकड़ी के विभिन्न उपकरणों का निर्माण किया जाता है जांडी वृक्ष की लकड़ी को यज्ञ की वेदी के लिए पवित्र माना जाता है शनिवार को करने वाले यज्ञ में जांडी की लकड़ी से बनी वेदी का विशेष महत्व है जांडी या खेजड़ी के वृक्ष की लकड़ी यज्ञ की समिधा के लिए पवित्र मानी जाती है वसन्त ऋतु में समिधा के लिए जांडी की लकड़ी का प्रावधान किया गया है जांडी के पेड़ को शास्त्रों में 'वह्निवृक्ष' भी कहा जाता है 


xoxo

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