अब जेठ का महीना है नवतपा25 मई को सुबह 10.33 बजे सूर्य के रोहिणी नक्षत्र में प्रवेश करने के साथ शुरू होगया है और 3 जून को नवतपा का आखिरी दिन होगा। 15 जून को निर्जला एकादशी है देखें वर्षा कब होगी और कब खरीफ की बुआई होगी।
वर्षा के सम्बंध में घाघ और भड्डरी का अनुभव बड़े काम का है,और उनका प्रकृति निरीक्षण तो और अद्भुत है। गौरैया, गिरगिट, बकरी, साँप ,मेंढक, चींटी, आकाश , बादल और हवा के क्रियाकलापों का निरीक्षण करके मौसम का सटीक अनुमान लगाया है।
सबसे विलक्षण यह बात है,कि , माघ और पौष का वातावरण देख कर सावन और भाद्रपद में वृष्टि का अनुमान लगाया जाता है जो विज्ञान भी नही बता सकता।
पौष और माघ वर्षा के गर्भाधान का समय है। इस समय हवा का घुमाव और बिजली, बादल देख कर सावन और भादो में कितनी वर्षा होगी ये सटीक अनुमान लगता है।
ज्येष्ठ वर्षा के गर्भस्राव का समय है यदि जेठ बिना बरसे बीत गया तो आशा की जाती है कि सावन और भादो में अच्छी वर्षा होगी।
वर्षा का गर्भ 196 दिनों में पकता है या ये कहें इन्ही दिनों में सारें अनुमान तय होते है।
12 राशियां और 27 नक्षत्र होतें है, और ऐसा माना जाता है कि सूर्य प्रत्येक चौदह दिन पर दूसरे नक्षत्र में प्रवेश करता है, एक अपवाद को छोड़ कर! हस्त नक्षत्र को माना जाता है कि ये सोलह दिनों का होता है, ये अपने पहले वाले को दबा कर एक दिन पहले चढ़ता है और एक दिन बाद उतरता है।
हस्त को चार भागों में चार - चार दिनों में विभक्त किया गया है जिसे सोना, चांदी , तांबा और लौह का नाम दिया गया है ।
कहा जाता है कि जिस भाग में वर्षा होती है उसी अयस्क के मूल्य के अनुसार पैदावार होती हैं।
नीचे वाली तस्वीर देख कर मुझे म्हारा टिब्बे का खेत याद आ रहा है, इसमें बहुत ही पते की बातें भी बताई गई हैं।
फतेहाबाद (प्रदीप जांगड़ा)। हरियाणा में फतेहाबाद के कई गांवों के किसानोें ने अपनी मेहनत से हालात बदलने वाला काम किया है। झलनियां गांव के किसान राधेश्याम के पास तीन एकड़ जमीन है। डेढ़ दशक पहले इस जमीन में कोई पैदावार नहीं होती थी। हर साल खेत खाली रह जाता था। ऊंचा टीला और रेतीली मिट्टी होने के कारण सिंचाई संभव नहीं थी। बारिश आ जाती तो बाजरा के बीज बो दिया करते थे। इसके अलावा कृषि उत्पादन का कोई उपाय नहीं होता था, मगर आज यहां की तस्वीर ही कुछ और है।
इस जमीन पर धान की फसल लहलहा रही है। उन जैसे सैकड़ों किसानों ने रेत में खुशहाली लहलहा दी है। यह कोई प्राकृतिक बदलाव या सरकारी योजना का परिणाम नहीं। हाथ से हाथ मिलने का नतीजा है। किसानों ने खुद अपने हाथों जमीन तैयार कर ली। उन्होंने ट्रैक्टरट्रालियों से मिट्टी को इस तरह से ट्रांसफर किया कि जहां कभी बहुत चिकनी मिट्टी थी वहां रेतीली मिट्टी डलवाई और जहां रेतीली जमीन थी वहां चिकनी मिट्टी डाली गई। किसानों की मेहनत रंग लाई और इन गांवों की जमीन सोना पैदा कर रही है। कृषि विभाग के अधिकारियों के अनुसार, जिले में पिछले एक दशक में लगभग 10 हजार हेक्टेयर बंजर भूमि उपजाऊ भूमि में तब्दील हो गई।
खत्म हो गए रेत के टीले: गांव चंदोकलां के किसान हरजेंद्र सिंह बताते हैं कि करीब दो दशक पहले कई गांवों में रेत के बड़े- बड़े टीले हुआ करते थे। बरसात होती तो किसान बाजरा, सरसों व चना जैसी फसल बो दिया करते थे। इसके बाद किसानों ने लोगों को टीलों से रेत-मिट्टी भरने दिया। इस तरह तमाम गांवों में रेत के टीले खत्म हो गए। उस जगह दूसरे गांवों से लाकर मिट्टी डलवाई।
ऐसे बदला जमीन का मिजाज : मिट्टी और रेत की अदलाबदली से किसानों की परेशानी दूर हुई। फतेहाबाद में रतिया और जाखल बाढ़ संभावित क्षेत्र माने जाते हैं। यहां की मिट्टी चिकनी और सख्त है। इसलिए यहां के किसानों ने अपनी जमीन में रेत डालनी शुरू की। रेत वाले एरिया में चिकनी मिट्टी की जरूरत रहती है। इसलिए यहां के किसानों ने बाढ़ संभावित क्षेत्रों की मिट्टी मंगवाई।
खुद की मेहनत ही काम आई : भिरडाना के किसान रामनिवास डेलू बताते हैं कि उनकी जमीन पहले रेतीली थी। काफी मशक्कत के बाद टीले को समतल किया। इसके बाद दूसरी जगहों से लाकर चिकनी मिट्टी डाली गई। पहले जमीन उपजाऊ भी कम थी। अब हम अच्छी खासी पैदावार ले रहे हैं। इसके लिए उनको खुद की मेहनत के साथ अपनी जेब से मिट्टी डलवानी पड़ी। किसी तरह की सहायता कहीं से नहीं मिली।
जिले में धान का रकबा लगातार बढ़ रहा है। किसान धान के लिए जमीनों को समतल करने में लगे हुए हैं। जमीन समतल करने के लिए लेजर लैंड लेवलर आ चुके हैं। जहां कभी टीले थे वहां भी अब किसान पैदावार ले रहे हैं। वाकई किसान उन्नत हुए हैं।
-बलवंत सहारण, कृषि उप निदेशक
-बलवंत सहारण, कृषि उप निदेशक
Increased participation of women in workforce will lead to better outcomes: ILO report
The International Labour Organization (ILO) recently released its second global report, titled Women in Business and Management: The business case for change. After surveying around 13,000 enterprises in 70 countries, the report says that “a critical mass of 30 per cent women” is need by the enterprises “in order to reap the benefits of gender diversity”.
The report highlights that almost half of the surveyed enterprises reported women holding less than 30 per cent of entry-level management positions. “Given these figures, it comes as no surprise that in 60 per cent of companies, fewer than 30 per cent of senior managers and top executives are women,” it says.
“We expected to see a positive correlation between gender diversity and business success, but these results are eye-opening,” Deborah France-Massin, Director of the ILO Bureau for Employers’ Activities, was quoted as saying. “When you consider the efforts companies make in other areas to get just an extra two or three per cent in profits, the significance is clear. Companies should look at gender balance as a bottom line issue, not just a human resource issue.”
The paper says that enterprises with gender-inclusive cultures “are over 60 per cent more likely to have improved profits and productivity”. They further write that such businesses are “9 per cent more likely to have improved business performance”.
Highlighting the gaps in the labour market, the report says that, across the world, men are still more likely to participate in the labour market than women. “The average global labour force participation rate of women in 2018 stood at 48.5 per cent, while that of men was 75 per cent. This equates to a 26.5 percentage point gender gap in labour force participation,” says the report.
Just for Asia and the Pacific, the average female labour force participation rate has declined from 52.9 in 1991 to 45.3 per cent in 2018, dropping by 7.6 percentage points.
To further strengthen the case for improved gender-balance at enterprises, the ILO analysis pointed to a study by the World Economic Forum, which predicted that “if the global gender gap in labour market participation is closed by 25 per cent by 2025, an additional $5.3 trillion would be added to GDP globally”.
“In an era of skill shortages, women represent a formidable talent pool that companies aren’t making enough of. Smart companies who want to be successful in the global economy should make genuine gender diversity a key ingredient of their business strategy. Representative business organizations and employer and business membership organizations must take a lead, promoting both effective policies and genuine implementation,” added France-Massin.
xoxo
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