Monday, May 13, 2019

Read a Book Day , DAY FIRST......उत्तर योगी श्री अरविंद....


मुझे बचपन से ही पढ़ने का बड़ा शौक रहा है। रात को सोने से पहले मैं हमेशा कुछ न कुछ पढ़ती थी. जब मैं छोटी थी तब कागज़ /अखबार /किताबों के पन्नों के लिफ़ाफ़े होते थे जिनमें हम बाजार से सामान लाया करते थे मैं सामान निकालने के बाद उन कागज़ के लिफाफों को फाड़ कर उन्हें पढ़ती थी.
अब मेरी बेटी राइटर है घर में ढ़ेरों किताबें और  मैग्जीनें आती रहती हैं। आज से मैंने बिना नागा पढ़ने का संकल्प लिया है. आज मेरी पहली पुस्तक है उत्तर योगी श्री अरविंद इन्हें मैंने हमारे कॉलेज की लाइब्रेरी में खूब पढ़ा है। यह किताब मैंने वर्ल्ड बुक फारे में पिछली साल खरीदी थी. 

किताब के कुछ अंश ....... 
 उत्तरयोगी अरविन्द अरविन्द बंगाल की धरती की उपज थे, पर विचारधारा में वे तिलक, दयानन्द आदि के अधिक निकट प्रतीत होते हैं। बंगाल के विषय में स्वभावतः उनके मन में अनुराग था, पर वे जिस प्रकार का ‘मिशन’ लेकर आए थे, उसकी संसिद्धि शायद बंगाल में रहकर नहीं हो सकती थी। वे अनेक रूपों में बंगाली व्यक्तित्व के अतिरेकों से, अर्थात् स्वप्निल भावुकता आदि से बिलकुल अछूते थे। श्री अरविन्द का पाण्डिचेरी-गमन क्षेत्रीयता की संकुचित सीमाओं के ध्वंस का प्रतीक है। वे देशकाल में बँधी खंडशः विभक्त मानवता के प्रतिनिधि बनने नहीं, बल्कि परस्पर सहयोग से पृथ्वी पर अवतरित होनेवाले दिव्य जीवन के निदेशक थे, इसलिए उनका प्रत्येक कार्य मनुष्य को विभाजित करनेवाली आसुरी शक्तियों के षड्यंत्र को असफल बनाने के उद्देश्य से परिचालित रहा। श्री अरविन्द ने राजनेता के रूप में ‘पूर्ण स्वराज्य’ की माँग की। श्री गाँधी के दक्षिण अफ्रीका से भारत आगमन के काफी पहले ‘असहयोग आन्दोलन’ का सूत्रपात किया। कलकत्ते के नेशनल कॉलेज के प्रिंसिपल के रूप में एक नयी शिक्षा-पद्धति की बात कही। ‘वन्देमातरम्’ और ‘कर्मयोगी’ के संपादक के रूप में भारतीय आत्मा को स्पष्ट करनेवाली नयी पत्रकारिता का सूत्रपात किया। उग्रपंथी विचारधारा को स्वीकार करते हुए भी विरोधी के प्रति सदाशय रहने का आग्रह किया। सत्य तो यह है कि स्वतन्त्रता-पूर्व भारतीय राजनीति के सभी मूलभूत आदर्श, राष्ट्रीयता, स्वदेशी प्रेम, विदेशी वस्तुओं का बहिष्कार, जनसंगठन और राष्ट्रीय शिक्षा-प्रणाली का आग्रह जैसे तत्त्व, जो बाद में गाँधीजी के नेतृत्व में कांग्रेस के प्रेरणास्रोत बने, श्री अरविन्द के महान् व्यक्तित्व की देन हैं। जवाहरलाल नेहरू ने ठीक ही लिखा है - ‘‘बंग-भंग के विरुद्ध उत्पन्न आन्दोलन ने अपने सभी सिद्धान्त और उद्देश्य श्री अरविन्द से प्राप्त किए और इसने महात्मा गाँधी के नेतृत्व में होनेवाले महान आन्दोलनों के लिए आधार तैयार किया।’’

xoxo

No comments:

Post a Comment