औषधीय गुण भी हैं इन अनाजों में
यदि सभी अनाज मिला कर रोटियाँ पकाई जाएँ, और गेहूँ की रोटियों को छोड़ इन्हें खाया जय, तो शायद आप के परिवार का स्वास्थ्य अच्छा रहेगा
गेहूँ...........
सामान्यतः लोग गेहूँ को सिर्फ शक्तिदायक खाद्य पदार्थ समझते हैं। बहुत कम लोग जानते हैं कि गेहूँ औषधीय गुणों से भी भरपूर है।
खाँसी होंने पर ... 20 ग्राम गेहूँ के दानों में नमक मिलाकर 250 ग्राम पानी में उबाल लें। जब तक की पानी की मात्रा एक तिहाई न रह जाए। इसे गरम-गरम पी लें। लगातार एक हफ्ते तक यह प्रयोग दोहराने से खाँसी जल्दी चली जाती है।
दाहकता...यानि की छति में जलन....के लिए 80 ग्राम गेहूँ को रात में पानी में भिगो दें। सुबह उन्हें अच्छी तरह पीसकर छान लें। यदि चाहें तो स्वाद के लिए उसमें थोड़ी सी मिश्री मिला लें। गेहूँ के इस रस को पीने से शरीर में उत्पन्न दाहकता (गर्मी) शांत होती है। इससे मूत्र संबंधी रोगों में भी फायदा मिलता है।
अस्थि भंग यानी कि अस्थि का भुर-भुरा होना ...इके लिए ...स्ज एक मुठ्ठी गेहूँ को तवे पर भूनकर पीस लें। इस चूर्ण को शहद के साथ चाटने से अस्थि भंग रोग दूर होता है। स्मरण शक्ति- गेहूँ से बने हरीरा में शक्कर और बादाम मिलाकर पीने से स्मरण शक्ति बढ़ती है।
ज्वार...
ज्वार को कई रोगों के इलाज में प्रयोग में लाया जाता है और कुछ का विवरण नीचे दिया गया है -
आमातिसार में ज्वार के आटे की गर्म-गर्म रोटी बनाकर दही से बारीक करके भिगोकर रख दें और कुछ समय के बाद ही रोगी को खिलाने से आमातिसार जाता रहेगा।
लकवा (पक्षाघात) जोड़ो में वायु का दर्द या सन्धिवात होने पर...उबले हुए ज्वार के दोनो को पीसकर कपड़छन करके रस निकाल ले। तत्पश्चात् उसमें समान मात्रा में रैण्डी का तेल मिलाकर, गर्मकर व्याधि ग्रस्त स्थान पर लेप कर उपर से पुरानी रूई बांधकर सैंक करनी चाहिये। ऐसा रोग की स्थिति के अनुसार कई दिनों तक करने से अनिवार्यतः लाभ होता है।
दंत रोग में .... ज्वार के दानों की राख बनाकर मंजन करने से दांतो का हिलना, उनमें दर्द होना बंद हो जाता है तथा मसूढ़ो की सूजन भी समाप्त हो जाती है।
प्रश्वेद के लिए ज्वार के सूखे हुए दानों को भाड़ में भुनवाकर लाही का काढ़ बनाकर पिलाने से शरीर से पसीने आने लगते है। जिसके कारण अनेक विकार दूर हो जाते है।
पेट में जलन होने पर....भुनी ज्वार बताशो के साथ खाने से पेट की जलन, अधिक प्यास लगना बंद हो जाते है।
आधा सीसी का दर्द हो तो....मस्तिष्क के जिस आधे भाग में दर्द हो, उसी ओर के नासा रन्ध्र में ज्वार के पौधे के हर पत्तो के रस में थोड़ा सा सरसों का तेल मिलाकर टनकाना चाहिए।
अन्तर्दाहकी अवस्था में...ज्वार के बारीक पिसे आटे की रबड़ी रात में बनाकर प्रातः उसमे भुना सफेद जीरा डालकर मट्ठे (छाछ) के साथ पिलाना चाहिये।
खुजली होने पर.... ज्वार के हरे पत्तों को पीसकर उसमें बकरी का मेंगनी की अधजली राख व रैण्डी का तेल समान मात्रा में मिलाकर लगाने से खुजली समाप्त हो जाती है।
कैंसर, भगंदर (व भयंकर व्रण (घाव) में... ज्वार के ताजा, हरे कच्चे भुट्टे का दूधिया रस लगाने तथा उसकी बत्ती बनाकर घावों में भर देने से उक्त भयंकर महाव्याधियों से छूटकारा पाया जा सकता है।
धतूरे का विष यदि किसी वजह से ले लिया गाया हो तब..... ज्वार कांड के रस में दूध व शक्कर सम मात्रानुसार पिलाते रहने से धतूरे का विष शांत हो जाता है।
गुर्दे एवं मूत्र विण्डो के विकार में.... ज्वार का काढ़ा बनाकर पीने से लाभ होता है।
शरीर में जलन हो तब..... ज्वार का आटा पानी में घोल लें, फिर उसका शरीर पर लेप करे।
मुहासे एवं कील होन तब........ ज्वार के कच्चे दाने पीसकर उसमें थोड़ा कत्था व चूना मिलाकर लगाने से जवानी में चेहरे पर निकलने वाली कीलें व मुहासे ठीक हो जाते है।
बाज़रा ..........
बाजरा उन रोगियों के लिए लाभ्दायक है जिन्हें गेहूँ नहीं पचता यह ग्लुटन रहित होता है और बाजरा मेंन फास्फोरस बहुत होता है..जो चमचमाती त्व्चा के लिए आव्श्यक है ...
बाकी के आनाजों का विवरण फिर कभी
शब्बा खैर!!!
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