Thursday, August 2, 2012

कील

   
       कील  ( nail/keel)
कील   

   
माकूल जगह ढूँढ कर हमें 
ठीक बीचों बीच ठोक दिया गया      
पहले पहल किसी ने इस ठोक-पीट का बुरा नहीं मनाया 
जब कंधों में दर्द की परतें धीरे- धीरे जमती चली गई
जुबानें पहले कंपकपाई
फिर बंद होने के कागार तक पहुँच गई
बहुत बाद में  काली आँखों वाला डर हमारा हमदम बन गया
उसके बाद से ही
कील का नुकीला सिरा
बार- बार अपने होने का  अहसास करवाने लगा 

टाँग दिया गया हम पर
दुत्कार, अपमान, लांछनाओं  का भार  
हमारे दामन को कभी सफेद नहीं रहने दिया 
घाट पर घिस-घिस के धोया हमने खुद को
पर हर बार कालिख बची ही रह गई

हमारी  फटी एडि़याँ देखी तुमने ?
ज़रा मिलाना इन्हें अपने  पावों  से
जो  चकाचक सफ़ेद बने रहते हैं कड़कड़ाते जूतों के भीतर  

अपने जंग खाए हुये जीवन से ही
मालूमात हुआ कि स्कैप से ज्यादा
कुछ नहीं समझा गया हमें
जो धोने, बिछाने, माँजने और प्रतीक्षा का  काम हम करती रही हैं उसे
शून्य जान कर खारिज़ किया जाता रहा 
 
वह  तो रुखसत होता समय  कई बातें चुपके से हमारे कानों  में कह गया
नहीं तो हम में से कई
जान ही नहीं पाती अपने ही बगलगीरों की मक्कारियाँ
कुछ चीजें
यहाँ तक कि आईना भी
हमारे शक का कारण बना    

चक्रवात के आमने सामने बैठ कर जीवन का जो  मुहावरा हमने गढ़ा
उसे  हमने सीधे सीधे बाँच लिया
तुम्हारी नजरों से बचा कर

हमारी पूरी जमात ने हर बार तुम्हारे ही सपने  देखे
यकीन मानो तुम्हारे सपने ही हसीन थे,
तुम नहीं

जो पाठ हमारी दादी- पड़दादियों ने हमें सिखाया
तमाम उलटबासियों और खीँच- तान के बाद भी वह अपनी पकड़ बनाये रहा,
एक मजबूत खूंटे से बंधा रहना हमें सदा रास आता रहा  
जाने हमारी तासीर कैसी थी
हम लात-घूसें भी  खाती रही और
खिलखिलाती भी रही.

हमारे नौनिहास आश्चर्य से हमें ताकते
और हम जैसा बनने का प्रण लेते
इधर हमारी कील का लोहा अपनी धार तेज़ करता रहा
भरभराई दीवार पर और मुस्तैदी से चस्पा होने के लिये
 ---------vipin choudhary


Happy writing!!

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