किसी भी चर्चित व्यक्ति खासतौर पर एक चर्चित स्त्री का जीवन एकरेखीय नहीं होता. उनका भी नहीं था.
रमणिका गुप्ता मेरे लिए एक सकारात्मक ऊर्जा का नाम है. ऐसी ऊर्जा जो अंत तक अपने होने का भरपूर उत्सव मनाती हैं. इस बात को सिरे से नज़रअंदाज़ करते हुए कि कोई दूसरा उनके उस उत्सव में शामिल है या नहीं. उनके यहां भाग्यवाद को एक तिनके भर की जगह नहीं थी. जीवन के विद्यार्थी के रूप में उनके करीब से मैंने जो चीज़ें सीखीं उनमें सकारात्मकता का साथ और भाग्यवाद से दूरी बनाए रखने की प्राथमिक सबसे अहम थी.
उनके साथ से ही यह भी समझा कि यदि आपको किसी जीवन से प्रेरणा ग्रहण करनी हो तो अपनी प्रत्यक्ष सूझ-बूझ पर ही भरोसा करनी चाहिए, सुनी-सुनाई कहानियों पर नहीं.
आदिवासी साहित्य में रमणिका गुप्ता का योगदान अद्वितीय है
अपने लंबे जीवन में उन्होंने कभी हार नहीं मानी, जीवन को जीवन की तरह जिया, किसी मरीचिका या सपने की तरह नहीं. बरसों तक देर रात काम करते-करते सोने के बाद सुबह नहा-धो कर वो ठस के साथ अपनी घड़ी का फीता बांधती थीं. देखकर लगता था कि आज भी उन्हें किसी मिशन पर ठीक उसी तरह निकलना है जैसे वो अपने ट्रेड यूनियन के समय या विधायकी के समय निकलती थी.
ग्रहण करने का ज़ज़्बा रखने वाले रमणिका जी की सक्रियता से काफी कुछ ग्रहण कर सकते थे, नहीं कर पाने वालों के हाथ केवल नाकारत्मकता ही लगती थी.
उनकी बेहद सक्रिय जीवनचर्या से रूबरू होने के बाद यह समझना मुश्किल नहीं था कि एक स्वावलंबी जीवन अपने लिए बेहद आरामतलबी की मांग नहीं करता बल्कि उस जीवन की कमर सीधी रखने के लिए बहुत कठिन अभ्यास करता पड़ता है. उनके विस्तृत कार्यक्षेत्र में एक संपादिका, लेखिका, राजनेत्री के तौर पर उनकी सक्रियता को देखते हुए उनसे काफी कुछ सीखा मैंने.
चाहे वह लेखक संगठनों के आपसी झगड़ों पर उनका टेक हो या फिर हालिया राजनीति की उठा-पटक पर. यह उनके व्यक्तित्व की साफगोई ही थी कि उन्होंने रिश्तों की पाखंडता में कभी विश्वास नहीं किया. जब तक किसी रिश्ते में रही उसे जीया और उसकी ऊष्मा खत्म होने के बाद कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा.
किसी भी चर्चित व्यक्ति खासतौर पर एक चर्चित स्त्री का जीवन एकरेखीय नहीं होता. उनका भी नहीं था. कई बार उनसे विचारों से इत्तेफाक न रखने के बाद भी कभी किसी भी बात पर उनसे मन खट्टा नहीं हुआ. कई बार आवेश में कहे गए मेरे वाक्यों का भी उन्होंने कभी बुरा नहीं माना.
उनसे ग्यारह साल का परिचय था मगर लगता है कि सदियों से उनका संग-साथ रहा है . अपनी राजनीतिक सक्रियता से जुडी न जाने कितनी ही बातें सुनाते समय उनकी आंखों में चमक साफ़ तौर पर दिखाई देती थी. आज भी बरसों पहले कोयला-खादानों में काम करने वाले मजदूर उन्हें शिद्दत से याद करते हुए फ़ोन करते थे. फिर रमणिका जी बताती थीं ये फलां था हमारे साथ फलां आंदोलन में.
उनकी पैनी याददाश्त मुझे हमेशा चमत्कृत करती. अपनी जिद पर अड़े रहना उनके व्यक्तित्व का बड़ा हिस्सा था, मुझे हमेशा ऐसा लगा है कि इस बड़ी जिद ने ही उन्हें वे मजबूत पांव दिए. उसके बूते वे अपनी पसंद की जीवन-राह पर चलती रहीं ताउम्र. कभी शांत न होने वाली बेचैनी उनमे अक्सर ही दिखाई देती. हर पल उनके भीतर कोई योजना आकार ले रही होती. उसी योजना के सिलसिले में अपने सहयोगियों को योजना से संबंधित लोगों से फ़ोन लगाने को कहती.
दक्षिण दिल्ली की डिफेंस कॉलोनी में उनका निवास मेरे लिए दूसरे घर जैसा था. इन ग्यारह सालों में कितने ही लोग जरुरत के समय उनके घर शरण लेते रहे. वे कहा भी करती थी मेरा घर एक कम्यून है.
अब वह बेचैन जीवन अपनी पूरी परिक्रमा कर गया है लेकिन उनकी ऊर्जा ब्रह्मांड में अब भी मौजूद है अपनी पूरी सकारात्मकता के साथ.
(लेखिका साहित्यकार-कलाकार हैं)
No comments:
Post a Comment