Have nothing in your house that you do not know to be useful, or believe to be beautiful. - William Morris
Friday, September 23, 2022
डायरी के पन्नों से
सेठ छ्जुराम का गाँव मेरे नानू के गाव पपोसा के पास है...
उनकी जयंती पर कुछ यादें....
मेरे पिताजी बताते थे "एक बार मैं हांसी नाना(मेरे नानू) के यहाँ उनकी (नानू) की आड़त की दूकान में था तब सेठ छाजूराम की पत्नी मेरे नानू के पास आई हुई थी,किसी पारिवारिक मसले के बारे में,मेरे नानू ने मेरे मामा दिवंगत ओम प्रकाश की पत्नी जो अब अमेरिका में हैं को छोड़ दिया था, तब वे कहने आई थी कि तुम मेजर महा सिंह की लड़की को ले आओ, उन्होंने सोपली(सर्दियों मैं फुलकारी से काढ़ा खादी का शाल) ले रखी थी, कितना सादा जीवन था उनका।"
आतीत की कुछ यादें....
मेरे पिताजी की बुआ भुलाँ सेठ छाजूराम के परिवार में विवाहित थीं, शादी में ससुराल से उन्हें 150 तोले के जेवर चढ़ाये गये थे। सेठ छाजुराम ज़ब मेरी बड़ी बुआ जी की शादी में हमारे गावं खरकड़ी-माखवान गये थे तब उन्होंने मेरे बड़े दादा(चौधरी केहर सिह साहूकार थे) जी से गाँव के लिये कोई सेवा के लिये पूछा तब उनहोंने गावं में रामसिह नाम का लडका जो कि गरीब परिवार से था और कुबड़ा था, उसको पढाने के लिये निवेदन किया।
उनके कहने पर सर छाजुराम ने रामसिह को पीलानी(Pilani )में, जो बाद में हिसार के छजूराम जाट कालेज (CHHAJU RAM कॉलेज) में कर्मचारी रहे.
मेरे पिताजी एयरफोर्स पुलिस की यूनिफार्म में, साथ में खड़े हैं संदीप पाटिल....दिल्ली में क्रिकेट मैच के अवसर पर...
मेरे नानू दुल्हे के दाईं तरफ खड़े हैं उनके दायें मेरे पिताजी खड़े हैं ....यह मेरी मम्मी के चचेरे भाई गजेंदर के बेटे पप्पू की शादी का फोटो है....
तो यह थी कुछ भूली-बिसरी यादें....सेठ छाजूराम जी के सम्बन्ध में...
चौधरी छाजूराम के बारे में ....
जन्म व् बचपन:
सेठछाज्जूराम का जन्म 27 नवंबर 1865 (अधिकतर जगह 1861 लिखा हुआ है, जबकि हमारे विश्वसनीय शोधकर्ता 1865 बताते हैं) को आधुनिक जिलाभिवानी, तहसीलबवानीखेड़ा के अलखपुरा गाँव में लाम्बा गोत्र के जाट कुल परिवार में चौधरीसालिगराम जी के यहां हुआ| इनकाबचपन अभावों, संघर्षों, और विपत्तियों में व्यतीत हुआ, लेकिन अपनी लगन, परिश्रम और दृढ़ निश्चय सेसफलता के शिखर तक पहुंचे| इनकेपिता सालिगराम जी एक साधारण किसान थे| चौधरी छाज्जूराम के पूर्वजझुंझनू (राजस्थान) के निकटवर्ती गाँव लाम्बा गोठड़ा से आकर भिवानी जिले के ढाणीमाहू गाँव में बस थे| इनकेदादा मनीराम ढाणी माहू को छोड़ कर सिरसा जा बसे| लेकिन कुछ दिनों के बाद इनकेपिता जी चौधरी सालिगराम अलखपुरा आकर बस गए (याद रहे इस समय गाँव अलखपुरा, हांसी जागीर में आता था और इससमय हांसी जागीर जेम्स स्किनर के बेटे अलेक्जेंडर को दे दी गयी थी| इसी के नाम पर गाँव का नामअलेक्सपुरा पड़ा, गाँववालों ने मौखिक रूप में फिर इसको अलखपुरा कहा तो, गाँव का नाम अलखपुरा पड़ा)|
ब्याह व् परिवार:
चौधरीछोटूराम का पहला विवाह बचपन में सांगवान खाप के हरिया डोहका गाँव में कड़वासराखंडन की दाखा देवी के साथ हुआ था| लेकिन विवाह के कुछ समय बाद ही इनकी पत्नी का हैजे की बीमारीसे देहांत हो गया| उनका दूसरा विवाह वर्ष 1890 (कुछ प्रारूपों में यह वर्ष 1900 भी बताया गया है|) में भिवानी जिले के ही बिलावलगाँव में रांगी गोत्र की दाखांदेवी नाम की ही लड़की से हुआ| लेकिन बाद में उनका नाम बदलकरलक्ष्मीदेवी रख दिया गया| मातालक्ष्मी देवी एक नेक, पतिव्रताव् संस्कारित स्त्री थी| कालांतरमें उन्होंने आठ संतानों को जन्म दिया, जिनमें पांच पुत्र व् तीनपुत्रियां हुई, लेकिनचार संतानें बाल्यावस्था में ही ईश्वर को प्यारी हो गई| बड़े बेटे सज्जन कुमार कायुवावस्था में ही स्वर्गवास हो गया| अन्य दो बेटे महेंद्र कुमार व्प्रद्युमन थे| इनकीबेटी सावित्री देवी थी जो मेरठ निवासी डॉ. नौनिहाल से ब्याही गई थी|
शिक्षा, कलकत्ता में संघर्ष, व्यापार व् धनसम्पत्ति:
छाज्जूरामकी शिक्षा में बचपन से ही रूचि रही इसी रूचि को लेकर आर्थिक स्थिति अच्छी न रहनेके बावजूद भी उन्होंने अपनी प्रारम्भिक शिक्षा (1877) बवानीखेड़ा के स्कूल से प्राप्तकी| चौधरीसाहब गाँव से ग्यारह किलोमीटर दूर बवानीखेड़ा के प्राइमरी स्कूल में पैदल पढ़नेजाते थे| परन्तुजैसा कि होनहार बिरवान के होत चिकने पात, ऐसे ही आपने रोज की इतना पैदलचलने की चुनौती को पार किया अपितु जब पांचवीं कक्षा का बोर्ड का परिणाम आया तो नकेवल अपनी परीक्षा में प्रथम अपितु प्रथम श्रेणी से उत्तीर्ण हुए| मिडल शिक्षा (1880) भिवानी से पास करने के बादउन्होंने रेवाड़ी से मैट्रिक की परीक्षा (1882) में पास की| मेधावी छात्र होने के कारण इनकोछात्रवृतियां भी मिलती रही लेकिन परिवार की स्थिति अच्छी न होने के कारण आगे कीपढ़ाई न कर पाये|आपने मैट्रिकसंस्कृत, अंग्रेजी, महाजनी, हिंदी, उर्दू और गणित विषयों से प्रथमश्रेणी में उत्तीर्ण की थी| इस दौरानअपनी पढ़ाई और स्वंय का खर्च चलाने हेतु आप दूसरे बच्चों को ट्यूशन भी देते रहे| इसी सिलसिले में एक बंगाली इंजीनियरएस. अन. रॉय के बच्चों को एक रूपये प्रति माह के हिसाब से ट्यूशन पढ़ाने लग गए| जब रॉय साहब कलकत्ता चले गए तोछाज्जूराम को भी उन्होंने कलकत्ता बुला लिया| पैसे के अभाव में वो कलकत्तानहीं जा सकते थे, लेकिनफिर भी जैसे-तैसे करके उन्होंने किराये का जुगाड़ किया और कलकत्ता चले गए| उन्होंने वहां भी उसी प्रकारबच्चों को पढ़ाना शुरू कर दिया| यहाँ पर उनको छ: रु. प्रति माह मिलते थे| लेकिन यहां कड़ा संघर्ष उनका इंतज़ार कर रहा था| नए लोग, नए-नए काम, न रहने का ठिकाना, न खाने का पता| तंग आकर घर वापिस जाने का फैसलाकिया, लेकिनफिर किराए की समस्या सामने आ गई| व् फूट-फूट कर रो पड़े और मन को मारकर मूलरूप से भिवानीनिवासी रायबहादुर नरसिंह दास से मुलाकात की तथा घर जाने के लिए किराया उधार माँगा| नरसिंह दास ने उन्हें हौंसलादिया और कलकत्ता में ही रहकर संघर्ष करने की प्रेरणा देते हुए कहा कि कलकत्ता ऐसाशहर है, जहाँ नजाने कितने ही लोग खाली हाथ आये और अपनी मेहनत और संघर्ष की बदौलत बादशाह बन गए| और इस तरह शुरू हुआ सफर उनकोउनके जमाने के देश के सबसे बड़े रहीशों में शुमार कर गया|
अब आपका सम्पर्क मारवाड़ी सेठों से हुआ, जिन्हें अंग्रेजी भाषा का ज्ञान कम था लेकिन छाज्जूराम को अँग्रेजी भाषा का व्यापक ज्ञान था तो आपने पत्र लिखने और भेजने का काम छाज्जूराम ने शुरू कर दिया, जिस पर सेठों ने इनको मेहनताना देना शुरू कर दिया| इसी दौरान देखते ही देखते व्यापारी-पत्र-व्यवहार के कारण इनको व्यापार का ज्ञान हो गया एवं व्यापार सम्बन्धी कुछ गुर भी सीख लिए जिसके कारण उनको इन्हीं गुरो ने महान व्यापारी बना दिया| कुछ समय बाद आपनेे बारदाना (पुरानी बोरियों) का व्यापार शुरू कर दिया| यही व्यापार उनके लिए वरदान साबित हुआ और उनको "जूट-किंग" (हेसियन का राजा) बना दिया| धीरे-धीरे कलकत्ता में उन्होंने शेयर भी खरीदने शुरू कर दिए| एक समय आया जब वो कलकत्ता की 24 बड़ी विदेशी कम्पनियो के शेयरहोल्डर थे और कुछ समय बाद 12 कम्पनियो के निदेशक भी बन गए, उस समय इन कम्पनियो से 16 लाख रूपये प्रति माह लाभांश प्राप्त हो रहा था| और सेठ जी उस जमाने के कलकत्ता के सबसे बड़े शेयरहोल्डर थे|
इसीलिए पंजाब नेशनल बैंक ने उनको अपना निदेशक रख लिया लेकिन काम की अधिकता होने के कारण उन्होंने त्याग पत्र दे दिया| एक समय आया जब उनकी सम्पति 40 मिलियन को पार कर गयी थी| एक समय था जब छाज्जूराम के पास एक छतरी को ख़रीदने के लिए पैसे नहीं थे परन्तु अब उनकी गिनती देश के शिखर के सेठो में की जाने लगी थी| आपने 21 कोठी कलकत्ता में (14 अलीपुर, 7 बारा बाजार) में बनवायी| जी. डी. बिरला व् पंजाब केशरी लाला लाजपतराय भी चौधरी छाज्जूराम जी के किरायेदार रहे| आपने एक महलनुमा कोठी अलखपुरा में व् एक शेखपुरा (हांसी) में बनवायी| आपने हरियाणा के पांच गाँव भी खरीदे तथा भिवानी, हिसार और बवानीखेड़ा के शेखपुरा, अलीपुरा, अलखपुरा, कुम्हारों की ढाणी, कागसर, जामणी, खांडाखेड़ी व् मोठ आदि गाँवों 1600 बीघा ज़मीन भी खरीदी| आपके पंजाब के खन्ना में रुई तथा मुगफली के तेल निकलवाने के कारखाने भी थे| उस जमाने में रोल्स-रॉयस कार केवल कुछ राजाओं के पास होती थी, लेकिन यह कार आपके बड़े बेटे सज्जन कुमार के पास भी थी|
नश्लवाद का कड़वा अनुभव:
जूट किंग बनने एक बाद तो चौधरी साहब की हर जगह धूम मची, वो जिस भी कारोबार में हाथ डालते, वही चल निकलता| लेकिन इस सफलता दरम्यान आपने जिंदगी का जातिपाती और नश्लभेद का भी दंश झेलना पड़ा| क्योंकि अनेक व्यापारी उनकी जाति के कारण उनसे दोयम दर्जे का व्यवहार करते थे| एक ब्राह्मण ने तो उन्हें अपने ढाबे पे खाना खिलाने से ही इंकार कर दिया| वे समझते थे कि व्यापार पर महाजनों का अधिकार है| एक जाट क्षत्री युवक व्यापार पर कब्ज़ा करे, यह उनसे सहन नहीं होता था| उन्होंने चौधरी छाजूराम को असफल करने के अनेक कुचक्र रचे, लेकिन असफल रहे|
उदारता और मृदुलता की मूर्त:
इतना बड़ा कारोबार और धन-धान्य का साम्राज्य खड़ा होने पर भी, क्या मजाल जो चौधरी साहब को घमंड छू के भी निकल सका हो| उन्होंने इस धन से जनकल्याण के काम करवाने शुरू कर दिए| उन्होंने जगह-जगह शिक्षण संस्थाएं खुलवाई, पानी के लिए कुँए और बावड़ियां खुलवाई, पथिकों और यात्रियों के लिए धर्मशालाओं आदि का निर्माण करवाया| उनका कहना था: मैं जितना दान देता हूँ, ईश्वर मुझे ब्याज सहित लौटा देता है| उनके दान की राशि और लिस्ट बहुत लम्बी है| देश की अधिकांश शिक्षण संस्थाओं को उन्होंने जहाँ जी खोलकर दान दिया, वहीं उन द्वारा बनाई गई अनेक इमारतें और भवन आज भी उनकी दानवीरता के स्तंभ बने खड़े हैं|
दानवीरता व् परोपकारिता:
रहबरे-आज़म चौधरी छोटूराम के वो धर्म-पिता थे| आपने रोहतक में चौ. छोटूराम के लिए नीली कोठी का निर्माण भी करवाया (याद रहे चौ. छोटूराम जी को उच्च शिक्षा का खर्च वहन करने वाले चौ. छाज्जूराम ही थे)| कहा जाता है कि अगर चौ. छाज्जूराम जी नहीं होते तो चौ. छोटूराम जी भी नहीं होते और अगर चौ. छोटूराम नहीं होते तो किसानो के पास आज भूमि नहीं होती|
सेठ छाज्जूराम की दानदक्षता उस समय भारत में अग्रणीय थी| कलकत्ता में रविंद्रनाथ टैगोर के शांति निकेतन से लेकर लाहौर के डी. ए. वी. कॉलेज तक कोई ऐसी संस्था नहीं थी, जहाँ पर उन्होंने दान न दिया हो| सेठ साहब ने शिक्षा के लिए लाखों रूपये के दान दिए, फिर वह चाहे हिन्दू विश्वविधालय बनारस हो, गुरुकुल कांगड़ी हो, हिसार-रोहतक (हरियाणा) व् संगरिया (राजस्थान) की जाट संस्थाए हों, हिसार और कलकत्ता की आर्य कन्या पाठशालाएं हों, हिसार का डी ए वी स्कूल हो अथवा अलखपुरा और खांडा खेड़ी के ग्रामीण स्कूल, हर जगह अपार दान दिया| इसके अलावा इंद्रप्रस्थ महिला महाविद्यालय दिल्ली, डी ए वी कॉलेज लाहौर, शांति निकेतन, विश्व भारती में भी बार-बार दान दिए| आपने गरीब, असमर्थ व् होनहार बच्चों के लिए स्कालरशिप प्लान निकाले, जिसके तहत वो सैंकड़ों बच्चों की शिक्षा स्पांसर करते थे|
सन 1928-29 के अकालों में, 1908/09 में प्लेग और 1918 के इन्फ्लुएन्जा की महामारियों में, 1914 की दामोदर घाटी की भयंकर बाढ़ में दोनों हाथों से धन लुटाकर मानवता को महाविनाश बचाया| उन्होंने भिवानी में अनेक परोपकारी कार्य किये उन्होंने "लेडी-हेली" नामक हस्पताल का निर्माण पांच लाख रूपये से अपनी बेटी कमला की याद में (1928) करवाय (आज उसी जगह पर आज चौ. बंसीलाल हस्पताल है)| भिवानी में उन्होंने एक अनाथालय बनवाया, यहीं पर उन्होंने एक गौशाला का निर्माण भी करवाया| अलखपुरा में उन्होंने कुए एवं धर्मशाला भी बनवाई| वे विशुद्ध आर्य समाजी थे इसलिए उन्होंने आर्य समाज मंदिर कलकत्ता के बनवाने में महत्वपूर्ण योगदान दिया|
चौधरी छाजूराम ने जाट इतिहास के विख्यात लेखक कलिका रंजन कानूनगो द्वारा 1925 में लिखे गए जाट इतिहास की खोज व् लेखन का खर्च भी खुद वहन किया| जिससे उनका अपनी कौम के प्रति फर्ज, जागरूकता और दूरदर्शिता भरा प्रेम भी जाहिर होता है|
देशप्रेम व् सरदार भगत सिंह को पनाह:
सेठ छाज्जूराम दान-दाता ही नहीं थे बल्कि वो उच्चकोटि के देशभक्त भी थे| उनकी आँखों में भी भारत की आज़ादी का सपना था| वो भी भारत को आजाद देखना चाहते थे| जब 17 दिसम्बर, 1928 को सरदार भगतसिंह ने अंग्रेज अधिकारी सांडर्स की गोली मारकर हत्या कर दी तो वो भाभी दुर्गा व् उनके पुत्र को साथ लेकर पुलिस की आँखों में धूल झोंकते हुए रेलगाड़ी से लाहौर से कलकत्ता पहुंचे, और कलकत्ता में वे सेठ छाज्जूराम की कोठी पर पहुंचे और सेठ साहिब की धर्मपत्नी वीरांगना लक्ष्मी देवी जी ने उनका स्वागत किया| यहाँ भगत सिंह लगभग ढ़ाई महीने तक रहे, जिसकी कि उस समय कल्पना करना भी संभव नहीं था, लेकिन सेठ जी के देशप्रेम के कारण यह सम्भव हो पाया| उन्होंने देश की आज़ादी में सबसे भारी आर्थिक सहयोग दिया| वे कहा करते थे कि देश को आज़ाद करवाने में चाहे उनकी पूरी सम्पति लग जाए, लेकिन देश आज़ाद होना चाहिए| पंडित मोतीलाल नेहरू, नेताजी सुभाषचन्द्र बोस, लाला लाजपत राय, महात्मा गांधी द्वारा मनोनीत कांग्रेस अध्यक्ष सीताभिपट्टाभिमैया सहित न जाने कितने ही नेताओं और क्रांतिकारियों को देश की आज़ादी के लिए भरी चंदा दिया| नेता जी सुभाष चन्द्र बोस जब जर्मनी जा रहे थे तो उन्होंने भी चौधरी छाजूराम जी से आर्थिक सहायता ली थी| सामाजिक बुराइयों के खिलाफ भी चौधरी छाजूराम जी ने एक लम्बी लड़ाई लड़ी| बाल-विवाह व् अशिक्षा के वो घोर विरोधी थे|
उनका मन कभी भी राजनीति में नहीं लगा, लेकिन फिर भी चौ. छोटूराम के कहने पर संयुक्त पंजाब में सं 1927 में एम. अल. सी. भी रहे|
विशाल व्यापारिक विरासत और वारिस:
चौधरी छाजूराम के बड़े पुत्र सज्जन कुमार बहुत ही होनहार व् व्यवहार कुशल थे| वहीं वो चौधरी साहब का व्यापार संभालने में भी माहिर थे, लेकिन 27 सितंबर 1937 को जब उनकी अकस्मात मौत हुई तो इस हादसे ने चौधरी साहब को अंदर से तोड़ दिया| लगता था कि वो वक्त से पहले ही बूढ़े हो गए थे| और फिर 7 अप्रैल 1943 को वह महान आत्मा संसार को छोड़, भगवान के दरबार को प्रस्थान कर ई | माना जाता है कि सेठ जी और उनके पुत्र सज्जन की मृत्यु के पश्चात इतनी विशाल विरासत को कोई नहीं संभाल पाया| जिस मृत्यु और सम्मान के वे मरणोपरांत हक़दार थे, वह उन्हें नहीं मिल पाया|
चौधरी छोटूराम की सेठ जी को श्रद्धांजलि:
ऎसे महान पुरुष, सेठों के सेठ, सर्वश्रेष्ठ दानवीर, गरीब नवाज और पतितो-उद्दारक सेठ छाजूराम जी के महाप्रयाण (1943) के अवसर पर दीनबंधु चौ. छोटूराम जी ने कहा था "भारत का महान दानवीर, गरीबों व अनाथों का धनवान पिता, तथा मेरे धर्म पिता सेठ छाजूराम जी अमर होकर हम सबके लिए प्रेरणा का स्रोत बन गए| उनके लिए सच्ची श्रृद्धांजलि यही होगी कि हम सभी उनकी इच्छाओं, आकांक्षाओ के अनुसार दिखाए गए मार्ग पर चलते रहें| इस महान विभूति को हम सदैव याद रखेंगे| चौ. छाजूराम द्वारा किये परोपकारी कार्य, उनके द्वारा बनाई गयी संस्थाएँ वैसे ही खड़ी हैं और उनके सपने को पूरा कर रही हैं| उनका आज के समाज में बहुमुखी योगदान है| जैसे-जैसे समय बीतता जायेगा वैसे-वैसे उनको मानवतावादी युगपुरुष के रूप में याद किया जायेगा"|
सेठ साहब के जीवन से सीख:
उनके जीवन चरित्र से सबसे बड़ी सीख तो यही मिलती है कि जीरो से हीरो कैसे बना जा सकता है| खाली जेब होते हुए भी अमीरी का इतिहास कैसे लिखा जा सकता है| अपने दौर में नंबर वन होते हुए भी अपनी दौलत देश सेवा व् जनसेवा में कैसे अर्पित की जा सकती है और दिन-दुखियों के आंसू पोंछकर उनके जख्मों पर मरहम कैसे लगाया जाता है|
कुल मिलाकर व्यापारिक बुद्धि, संपन्नता पाने, के बाद समत्व भाव कैसे रह सकता है| एक व्यापारी होते हुए भी भामाशाहों का भामाशाह कैसे कहलाया जा सकता है| देशभक्त और समाजसेवी कैसे कहलाया जा सकता है|
XOXO
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