Thursday, June 7, 2012

Vipin's poems and links

अब  क्या  हो

एक तिलस्मी पल  की नोक पर
मेरा आमना-सामना प्रेम से हुआ
उजला -सफ़ेद- मृदुल प्रेम-चिरपरिचित प्रेम 

मेरी नज़र पड़ते ही   
वह शरमा दिया
ओह

मैं प्रेम की रुपहली आँखों में
रुस्तमी ख्वाबों  के बेल - बूटे टांक देना चाहती हूँ 
पर प्रेम ने  अपनी आंखें अधखुली रख छोड़ी हैं

मैं उसे आवाज देना चाहती हूँ तो वह
गली के उस पार जा चुका होता हैं

मैं उसके छूना चाहती हूँ
तो वह हवा होता है

उसे
अपने  भीतर समेटना चाहती हूँ  
तो वह शिला होता है

अब
मैं अपनी भाषा में गुम
और प्रेम अपनी लिपि में लोप 

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