Monday, June 18, 2012

साथन चाल पड़ी हे मेरे ढब-ढब भर आये नैन ..


कल सुबह मानसून से पहले की बौछारों से तापमान में डिग्री तक की कमी गई गरमी से कुछ राहत मीली ...बरसात के बाद  भिवानी जाना हुआ बजे तक वापिस दोपहर का खाना खा सो गई ..फिर बजे पार्क की तरफ गई वहां बैठी औरतों से बातचीत के दौरान पता चला की उनमें से एक मेरे गाँव की है सो उसे मैं मम्मी से मिलाने घर ले आई .
मम्मी बहुत खुश हुई
बुआ और मम्मी बतियाते हुए

बुआ ने बताया ..सारे गाँव का निकाल(बाहर निकलने का रास्ता)   एक ही था ..सिमाने में कितने बेर होते थे बेर तोड़ने टिंट तोड़ने और खोखे लेने जाया करते ......शाम को खेत से वापिस आते समय साब औरतें, लडकियां 

डाक्टर मल्होत्रा बतियाते हुए 
गीत गाया करतीं होली वाले टिब्बे पर आते ही गाँव में हमारे गीत सुनाई दे जाते थे और लोगों को पता चल जाता था कि हम खेत से वापिस  रहे हैं.
बुआ और मम्मी बतियाते हुए

चाय पीते हुए

बुआ ने बताया कि जब कोई लड़की ससुराल जाती हमारे घर के आगे से गीत गाते हुए औरतें जब उसे विदा करने के लिए विदाई गीत "साथन चाल पड़ी हे मेरे ढब-ढब भर आये नैन " तब मेरे पिटा को बहुत रोना आता और वे हमें मना करते कि ......"बेटा  गुड़  की डली दे दूंगा यो गीत ना गाइयो..."

बुआ और मम्मी  चाय पीते हुए
उधर डा कौशल्या मल्होत्रा ने अपने पाकिस्तान के गाँव महता ...के बारे में बताया की हमारा गाँव रवि नदी के पास था ...उन्होंने त्रिपोली,  लीबिया रहते समय अपनी   अपने डाक्टरी के बारें में भी बताया...

 आज सुबह कल बरसात में नहाये पेड़ पौधे प्रफ्फुलित


पार्क  के कोने में ओलिएन्देर 

ओलिएन्देर 


जटरोपा की झाडी पर टिंडे 

सूर्य देवता 
 हमारे सामने बालकनी का सुहावना द्रश्य सुबह ६:१५ बजे
डाक्टर मल्होत्रा आज सुबह सैर से वापिस आते हुए 

मम्मी दरवाजा खोल वहीं खडी हैं




डाक्टर मल्होत्रा 





जटरोपा फूल 

जटरोपा फूल 
 तो यह रहा कल से आज का आन्नंदित  नज़ारा ..मेरा मानना है कि आज जो तुम्हारे हाथ में है उसे अच्छी तरह आन्नंदित हो बिता लो
शब्बा खैर!

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