Thursday, January 12, 2012

बोक्स कवर........

पिछले हफ्ते मैंने एक मशीन के कार्टन पर काम किया था और उसे उपयोगी बनाया था ...
अब उस पर कवर और जिप लगा कर इसकी उपयोगिता और बढ़ा दी है...

जी हाँ... मैंने सोचा कि इसमें रखी चीजें सुरक्षित रखने के लिये क्यों न इसका कवर यानि कि ढक्कन बना दिया जाय ..
मैंने बचे कपडे में से ऊपर के साइज का काट इसमें वही प्लास्टिक का बुना कपड़ा दबा के इसके तीन तरफ जिप सिल डी और इसे बाक्स की लाइनिंग पर टांक दिया....अब इसमें रखी चीजें सुरक्षित रहेंगी और धुल-मिटटी से भी बची रहेंगी...
और यह एक पुराना क्रोशिये से बना कम्बल....इन सर्दियों में गर्माहट पहुंचाने के लिये..कितना सुकून मिलता है ज़ब आप अपनी बनाई चीज लपेट कर बैठ इत्मीनान से चाय पीते हूए टीवी का अवलोकन करती हैं और अपनी कार्यकुशलता पर गर्व महसूस करती है....॥

करीब ७८० गज ऊन, नौ रंग, ९० दिन, कितने ही टूअर का सफ़र, पार्क की बैच, सोफा, सहेलियों के संग बतियाते, टीवी देखते वक्त और पता नहीं किस-किस समय, दिन, दोपहर,अप्राहन , शाम, रात, देर रात,कब-कब इन फूलों को बुना है.... फ़िर कहीं यह कम्बल तैयार हुआ था इसमें कुल १८० फुल गुंथे हैं ...फूलों की फुलवारी है .यह कम्बल ॥
फिर छिड़ी रात बात फूलों की
रात हैं या बरात फूलों की फुल के हार,
फुल के गजरे शाम फूलों की,
रात फूलों की आप का साथ,
साथ फूलों का आप की बात,
बात फूलों की फुल खिलते रहेंगे दुनियाँ
में रोज निकलेगी,
बात फूलों की नज़ारे मिलती है,
जाम मिलते है मिल रही है,
हयात फूलों की
ये महकती हुयी गज़ल मखदूम
जैसे सेहरा में, रात फूलों की

Bazaar - Phir Chhidi Raat Baat Phoolon Ki Raat Hai - Talat Aziz - Lata Mangeshkar


शब्बा खैर!!!

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