मुझे किसी भी चीज़ को बेकार करना कत्तई पसंद नहीं, किसी चीज़ को बेकार समझ कर फैकने से पहले मैं दसियों बार सोचती हूँ। मेरे यहाँ खाने पिने की बचीचीजें और सब्जियों और फलों के छिलके रोजाना शाम को गाय को डाले जाते है...
पिछले दिनों मैंने उषा मशीन खरीदी उसका कार्टन मेरे पास पडा था और पिछले दिनोंही मैंने अपनी कुर्सियों को केन करवाया था क्यों कि वे कहीं- कहीं से उधड़ गई थी फ़िर मेरे पास प्लास्टिक की केन से बने कई खाली लिफ़ाफ़े पड़े थे जिनमें पिछले दिनों दालें और चने आये थे ..........और मैंने पिछले दिनों ही कुछ कपडे के छोटे-छोटे टुकड़े भी खरीदे थे .फ़िर क्या था .....
कल मैंने लेट-लेटे सोचा कि इन सब चीजों से कुछ उपयोगी बनाऊं और मेरे दिमाग में आया कि एक सुन्दर बास्केट बनाया जाय जिसमें में अपने बैग रखूंगी बैगों को उपयुक्त जगह चाहिए ..वरना वे तुड-मुड़ जाते हैं
केन को मैंने कार्टन के चारों ओर फेविकोल(गोंद) से चिपका दिया और एक दिन के लिये सूखने को रख दिया..
अगले दिन कपडे की ४ इंच की पट्टियां काट कर उन्हें दोनों तरफ से एक-एक इंच अन्दर की तरफ मोड़ कर कार्टन के चारो किनारों पर तथा ऊपर एवं नीचे बार्डर पर चिपका दिया ताकि बोक्स मजबूत रहे
मैंने अपनी नई मशीन निकाली, उसके कार्टन का माप लिया जो २४ इंच ऊँचा १९ इंच चौड़ा और १० इंच साइडों से था. मैंने उससे २ इंच ज्यादा ऊँचाई के लिये लिया 5 इंच बेस के लिये और सिल दिया कार्टन के अन्दर का अस्तर जिसे प्लास्टिक के बैग के कपडे से लाईन कर दिया ऊपर से मोड़ कर सूती धागे से डोरी बना कर डाल दी और उसके किनारों पर कपडे के गोल टुकड़े काट कर उनमें रुई भर डोरी के किनारों पर टांक दिया
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