




करीब ७८० गज ऊन, नौ रंग, ९० दिन, कितने ही टूअर का सफ़र, पार्क की बैच, सोफा, सहेलियों के संग बतियाते, टीवी देखते वक्त और पता नहीं किस-किस समय, दिन, दोपहर,अप्राहन , शाम, रात, देर रात,कब-कब इन फूलों को बुना है.... फ़िर कहीं यह कम्बल तैयार हुआ था इसमें कुल १८० फुल गुंथे हैं ...फूलों की फुलवारी है .यह कम्बल ॥
फिर छिड़ी रात बात फूलों की
रात हैं या बरात फूलों की फुल के हार,
फुल के गजरे शाम फूलों की,
रात फूलों की आप का साथ,
साथ फूलों का आप की बात,
बात फूलों की फुल खिलते रहेंगे दुनियाँ
में रोज निकलेगी,
बात फूलों की नज़ारे मिलती है,
जाम मिलते है मिल रही है,
हयात फूलों की
ये महकती हुयी गज़ल मखदूम
जैसे सेहरा में, रात फूलों की
Bazaar - Phir Chhidi Raat Baat Phoolon Ki Raat Hai - Talat Aziz - Lata Mangeshkar
शब्बा खैर!!!
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