इस तसवीर को देख् (जो मुझे अनायास ही नेट में मिल गई था) मुझे वह् दिन याद आते हैं जब हम अपनी पुरानि हवेली मेंरह्ते थे मेरे पिता जोरहाट पोस्टेड थे और हमें अपने दादा-दादी के पास हमारे गांव रहना पड़ा था. ओह तसवीर का जिक्र हो रहाथा!!!!!!!
जी हान मेरे चाचा चाँदनी रात में खेतों में (धारणवाली के खेत में) चाँद की रोशनी में बाजरा बिजने जाते थे और मैं भी एक बार दिन निकालने से पहले ही अपने दादा के साथ चाचा की रोटी लेकर खेत में गई थीं जब दिन निकला हम खेत के पास तक पहुँची तो चाचा ऊँट के साथ ऎसे ही दिख रहे थे ....हाँ बिलकुल ऎसा ही द्र्श्य था तब ऎसा ही द्र्श्य था ओह यह इंटरनेट की दुनिया!!!!!!!!!यदि यह नहीं होती तो इस तरह यादें ताजा ना हो पाती!!!!!!!!
शब्बा खैर!!!!
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