Tuesday, May 11, 2021

Ker ka Ped | केर का पेड़ |


जब मैं छोटी थी ,हमारे बारानी इलाके(arid area) में केर के पेड़ बहुत होते थे, उन    पर टिंट बहुत लगते थे, जांडी (खेजड़ी,A thorny tree found in arid zones – it has tiny leaves which can be eaten by camels and goats.  ), जाल(A wild, thick tree which does not have thorns. Its fruit is like a tiny berry, called 'peehl' पील)   और केर वो 3 पेड़ ऐसे थे जो गर्मियों में आबाद रहते थे.  ये तीनों पेड़  मई-जून के तपते दिनों में हमारे बारानी इलाके को आबाद रखते थे। मेरी पर दादी बताया करती थी,जब छपनिया अकाल पड़ा था तब लोगों ने खेजड़ी की छाल पीसकर रोटियां बनाकर खाई थीं। हमारे खेत में और गांव भर में ढेरों जांडी  के पेड़ होते थे ,जिन्हें अक्टूबर में छांग(prunning ) कर उनके पत्तों को झाड़ लिया जाता था जिसे लूंगा कहते हैं वह पशुओं खासकर ऊंटों का पसंदीदा चारा होता है, लकड़ियों को सूखा कर उनका  मरीड़ा बना लिया करते थे और साल भर उन लकड़ियों को ईंधन के रूप में जलाया करते  थे. जांदी पर सांगरी लगती है जिसकी सब्जी बहुत स्वादिष्ट होती है इसे सांगरी को सूखा कर इसकी वर्ष भर सब्जी बनाई जाती है जो बहुत स्वादिष्ट होती है. सांगरी पाक कर खोखा हो जाती है वह इसका फल होता है जो बहुत स्वादिष्ट होता है। केर और जाल के झाड़ बणी में खूब होते थे जिन पर पील और पिंजू लगते थे. केर ( wild tree,its   raw fruit called 'Qair' कैर,टींट   - this fruit is also called 'Peechu' पिंजू  when ripe. ) का हरा फल टींट कहलाता है उसकी सब्जी और अचार बनता है,पक कर इसका फल लाल हो जाता है इसे पिंजू कहते हैं यह बहुत स्वादिष्ट होता है।    सांगरी कहते हैं। अब बारानी इलाकों (arid areas)  में जांडी  के पेडों  की संख्या लगातार कम हो रही है। वे जांडी  के   ही पेड़ थे जिन्हें बचाने के लिए अमृता बाई ने बलिदान दिया था। 1730 ई. के उस दिन जोधपुर के पास खेजड़ली गाँव में विश्नोई समाज के 363 लोगों ने पेड़ों को बचाने के लिए पेड़ों से लिपटकर अपनी जान दे दी थी।
xoxo.



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