मेरी दादी और मेरी मम्मी राबड़ी बनाती थी सच पूछूं तो मैंने राबड़ी कभी नहीं बनाई इस बार गर्मियों में जरूर बनाउंगी देखिये इसे बनाने की विभिन्न विधियां
राबड़ी
राबड़ी जाटों का मुख्य पेय है. राबड़ी कोई बियर का नया ब्रांड नही है. ये एक अमृत है गर्मी से निजाद पाने के लिए. राबड़ी राजस्थान और हरयाणा का प्रमुख पेय है जो कि काफी लोकप्रिय और सस्ता भी है और स्थानीय रूप से आसानी से तैयार हो जाता है. राजस्थन में जहा 45-50 डिग्री तापमान रह्ता है वहां ये वरदान है. लू के थपेड़ों में भी लोग इसको पी कर दोपहर में आराम से सोते है. यह गरमी के मौसम में अधिक प्रयोग की जाती है. जो पहली बार राबड़ी पिएगा, एक गिलास मे बेहोश नींद में सो जाएगा. आजकल राबड़ी पाँच सितारा होटलों मे भी उपलब्ध है और विदेशी पर्यटक बड़े चाव से राबड़ी का लुत्फ उठा रहे है. इस राबडी के साथ बाजरे की रोटी चूर कर खा सकते हैं या ठंडी राबडी में छाछ या दही और जीरा मिलाकर पी सकते हैं.
राबड़ी के फायदे ही फायदे हैं:-
* यह तनाव कम कम करती है
* इससे नींद अच्छी आती है
* कभी लू नही लगती है
* ब्लड प्रेशर नही होता है
* अस्थमा में भी लाभदायक है
* भूक अच्छी लगती है
* पेट की हर बिमारी में लाभ दायक है
राबड़ी बनाने की विधि
राबड़ी तीन प्रकार की होती है.
* खाटे की राबड़ी
* छाछ की राबड़ी
* कुटेड़ी राबड़ी
खाटे की राबड़ी
यह राबड़ी बनाने के लिए २०० ग्राम बाजरे के आटे में ५० ग्राम मोठ का आटा मिलाएँ तथा लगभग २५० ग्राम छाछ में मिट्टी की हांडी में पाँच मिनट तक हाथ से फेंटें. इसमें ५ लीटर हलका गुनगुना पानी मिलाएं. इस घोळ को दोपहर को धूप में रखें. साम ५ बजे तक इसमें खमीर आ जाता है तब इसका पानी कपड़े से छानलें. नीचे जमा आटा अलग रख लें. निथारे पानी को आग पर चढा कर स्वाद के अनुसार नमक डालें. पानी जब उबलने लगे तब अलग रखे आटे को उबलते पानी में डाल कर लगभग २-४ मिनट पकाएं और साथ साथ लकडी के चाटू से हिलाते रहें ताकि गठान न पडें. इसमें दो-तीन उफान आजायें तब गाढ़ी होने पर उतार लें. यदि ज्यादा गाढ़ी हो जाए तो थोड़ा छाछ मिला लें . राबडी तैयार. अगर बाजरे का आटा या मोठ नही मिले तो गेंहू का आटा भी चल सकता है पर जो मजा बाजरे और मोठ के आटे की राबडी में है वो नही मिलेगा.
छाछ की राबड़ी
एक लीटर छाछ में लगभग २०० ग्राम बाजरे का आटा मिलाकर आग पर चढावें और धीरे धीरे लकड़ी के चाटू से हिलाते रहें. जब यह गाढी हो जाए और उफनने लगे तब नीचे उतार कर स्वाद के अनुसार नमक मिलावें. यदि गाढी ज्य्य्यादा हो जाए तो इसमें ठंडा छाछ और मिलावें. यह राबडी प्राय शर्दी के मौसम में खाई जाती है. साम को गरम गरम खाई जाती है और सुबह इसमे ठंडी में दही मिलाकर बाजरे की रोटी के साथ खाया जाता है.
कुटेड़ी राबडी
एक लीटर छाछ के लिए २०० ग्राम साबूत बाजरा भिगोयें. ३ घंटे बाद चलनी से पानी निकाल कर ओखली में मूसल से बाजरा कूटें. कूटने से बाजरा जब सफ़ेद दिखने लगे और आधा फूट जाए तो एक लीटर छाछ में लगभग २०० ग्राम कूटे बाजरे को मिलाकर आग पर चढावें और धीरे धीरे लकड़ी के चाटू से हिलाते रहें. जब यह गाढी हो जाए और उफनने लगे तब नीचे उतार कर स्वाद के अनुसार नमक मिलावें. यदि गाढी ज्यादा हो जाए तो इसमें ठंडा छाछ और मिलावें. यह राबडी प्राय शर्दी के मौसम में खाई जाती है. साम को गरम गरम खाई जाती है और सुबह इसमे ठंडी में दही मिलाकर बाजरे की रोटी के साथ खाया जाता है. साम को गरम गरम खाई जाती है और सुबह इसमे ठंडी में दही मिलाकर बाजरे की रोटी के साथ खाया जाता है.
राबड़ी जाटों का मुख्य पेय है. राबड़ी कोई बियर का नया ब्रांड नही है. ये एक अमृत है गर्मी से निजाद पाने के लिए. राबड़ी राजस्थान और हरयाणा का प्रमुख पेय है जो कि काफी लोकप्रिय और सस्ता भी है और स्थानीय रूप से आसानी से तैयार हो जाता है. राजस्थन में जहा 45-50 डिग्री तापमान रह्ता है वहां ये वरदान है. लू के थपेड़ों में भी लोग इसको पी कर दोपहर में आराम से सोते है. यह गरमी के मौसम में अधिक प्रयोग की जाती है. जो पहली बार राबड़ी पिएगा, एक गिलास मे बेहोश नींद में सो जाएगा. आजकल राबड़ी पाँच सितारा होटलों मे भी उपलब्ध है और विदेशी पर्यटक बड़े चाव से राबड़ी का लुत्फ उठा रहे है. इस राबडी के साथ बाजरे की रोटी चूर कर खा सकते हैं या ठंडी राबडी में छाछ या दही और जीरा मिलाकर पी सकते हैं.
राबड़ी के फायदे ही फायदे हैं:-
* यह तनाव कम कम करती है
* इससे नींद अच्छी आती है
* कभी लू नही लगती है
* ब्लड प्रेशर नही होता है
* अस्थमा में भी लाभदायक है
* भूक अच्छी लगती है
* पेट की हर बिमारी में लाभ दायक है
राबड़ी बनाने की विधि
राबड़ी तीन प्रकार की होती है.
* खाटे की राबड़ी
* छाछ की राबड़ी
* कुटेड़ी राबड़ी
खाटे की राबड़ी
यह राबड़ी बनाने के लिए २०० ग्राम बाजरे के आटे में ५० ग्राम मोठ का आटा मिलाएँ तथा लगभग २५० ग्राम छाछ में मिट्टी की हांडी में पाँच मिनट तक हाथ से फेंटें. इसमें ५ लीटर हलका गुनगुना पानी मिलाएं. इस घोळ को दोपहर को धूप में रखें. साम ५ बजे तक इसमें खमीर आ जाता है तब इसका पानी कपड़े से छानलें. नीचे जमा आटा अलग रख लें. निथारे पानी को आग पर चढा कर स्वाद के अनुसार नमक डालें. पानी जब उबलने लगे तब अलग रखे आटे को उबलते पानी में डाल कर लगभग २-४ मिनट पकाएं और साथ साथ लकडी के चाटू से हिलाते रहें ताकि गठान न पडें. इसमें दो-तीन उफान आजायें तब गाढ़ी होने पर उतार लें. यदि ज्यादा गाढ़ी हो जाए तो थोड़ा छाछ मिला लें . राबडी तैयार. अगर बाजरे का आटा या मोठ नही मिले तो गेंहू का आटा भी चल सकता है पर जो मजा बाजरे और मोठ के आटे की राबडी में है वो नही मिलेगा.
छाछ की राबड़ी
एक लीटर छाछ में लगभग २०० ग्राम बाजरे का आटा मिलाकर आग पर चढावें और धीरे धीरे लकड़ी के चाटू से हिलाते रहें. जब यह गाढी हो जाए और उफनने लगे तब नीचे उतार कर स्वाद के अनुसार नमक मिलावें. यदि गाढी ज्य्य्यादा हो जाए तो इसमें ठंडा छाछ और मिलावें. यह राबडी प्राय शर्दी के मौसम में खाई जाती है. साम को गरम गरम खाई जाती है और सुबह इसमे ठंडी में दही मिलाकर बाजरे की रोटी के साथ खाया जाता है.
कुटेड़ी राबडी
एक लीटर छाछ के लिए २०० ग्राम साबूत बाजरा भिगोयें. ३ घंटे बाद चलनी से पानी निकाल कर ओखली में मूसल से बाजरा कूटें. कूटने से बाजरा जब सफ़ेद दिखने लगे और आधा फूट जाए तो एक लीटर छाछ में लगभग २०० ग्राम कूटे बाजरे को मिलाकर आग पर चढावें और धीरे धीरे लकड़ी के चाटू से हिलाते रहें. जब यह गाढी हो जाए और उफनने लगे तब नीचे उतार कर स्वाद के अनुसार नमक मिलावें. यदि गाढी ज्यादा हो जाए तो इसमें ठंडा छाछ और मिलावें. यह राबडी प्राय शर्दी के मौसम में खाई जाती है. साम को गरम गरम खाई जाती है और सुबह इसमे ठंडी में दही मिलाकर बाजरे की रोटी के साथ खाया जाता है. साम को गरम गरम खाई जाती है और सुबह इसमे ठंडी में दही मिलाकर बाजरे की रोटी के साथ खाया जाता है.
xoxo
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