काचरी/कचरी/काचर, एक ऐसा शब्द जो हरियाणा के मेरे गांव में फल एवं सब्जी दोनों का काम पूरा करता है.यह एक ऐसा फल (या सब्जी) जो छठ बारह महीने हमारे घरों की थाली को चटपटा बनाए रखता है. काचर अपने तीखी खटास या अम्ल के लिए भी जाना जाता है. काचर के एक छोटे से बीज को अगर एक मण (40 किलो लगभग) दूध में डाल दें तो वह पूरे दूध को फाड़ देगा. खराब कर देगा या पनीर बना देगा. यहीं से ‘काचर का बीज’मुहावरा निकलता है यानी कुचमादी, गुड़ गोबर करने वाला, अच्छे भले काम को बिगाड़ने वाला. इसी तरह ‘यहां क्या काचर ले रहा है’ मतलब यहां क्या भाड़ झोंक रहा है, जाकर अपना काम क्यों नहीं करते?
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खाने में काचर की बात की जाए. काचर यानी ककड़ी का छोटे से छोटा रूप. काचर, काकड़ी, मतीरा, खरबूजा ये लगभग एक ही वंशकुल के तथा टिब्बों की बालुई मिट्टी में कम पानी में होने वाले फल सब्जियां हैं. वैसे ये सभी फल हैं लेकिन इनका काम सब्जियों में ज्यादा होता है. काचर तो काचर ही है. काचर हरा होता है तो बहुत खट्टा मीठा होता है और उसे कच्चा खाने का सोचते ही मुहं में कुछ होने लगता है. कच्चे काचर को लाल मिर्च और थोड़े से लहसुन के साथ कुंडी में रगड़करकुटिये, इस तरह बनी चटनी को दही या लस्सी के साथ खाने का जो मजा है, मानिए गूंगे का गुड़ है!
वैसे काचरी को आयुर्वेद में मृगाक्षी कहा जाता है और काचरी बिगड़े हुए जुकाम, पित्त, कफ, कब्ज, परमेह सहित कई रोगों में बेहतरीन दवा मानी गई है.
वैसे काचरी को आयुर्वेद में मृगाक्षी कहा जाता है और काचरी बिगड़े हुए जुकाम, पित्त, कफ, कब्ज, परमेह सहित कई रोगों में बेहतरीन दवा मानी गई है.
काचर थोक में होता है. कमाल की बात है कि इसे बोया नहीं जाता इसकी बेलें वैसे ही उग आती हैं. इसके छिलके को उतारकर टुकड़ों में काट जाता है और धूप में सुखा लिया जाता है.
कुछ 15 दिन पहले मेरे गांव से कुछ काचर आए थे ...कुछ हमने खा लिए जो ज्यादा किरे (पके) हुए थे और कुछ मैंने सूखा लिए
सूखा कर यह इतने भर रह गए कोई 400 ग्राम के क़रीब थीं यह काचरीयां मैंने इन्हें बिना छिलका उतारे ही काट कर धागे में पिरो कर सूखा लिया ...हालाँकि मेरे पास पिछले साल की सूखी कचरियाँ पड़ी थीं परन्तु वह् काली पड़ गई थीं मालूम नहीं क्यों? मेरे गांव में तो शायद मैंने इन्हें कभी काला पड़ते नही देखा ...खैर इन ताजां सूखे कचरियों से मैंने चटनी बनाई
कुछ 15 दिन पहले मेरे गांव से कुछ काचर आए थे ...कुछ हमने खा लिए जो ज्यादा किरे (पके) हुए थे और कुछ मैंने सूखा लिए
सूखा कर यह इतने भर रह गए कोई 400 ग्राम के क़रीब थीं यह काचरीयां मैंने इन्हें बिना छिलका उतारे ही काट कर धागे में पिरो कर सूखा लिया ...हालाँकि मेरे पास पिछले साल की सूखी कचरियाँ पड़ी थीं परन्तु वह् काली पड़ गई थीं मालूम नहीं क्यों? मेरे गांव में तो शायद मैंने इन्हें कभी काला पड़ते नही देखा ...खैर इन ताजां सूखे कचरियों से मैंने चटनी बनाई
चटनी की सामग्री |
कटोरियों में डाली गई सभी सामग्री एक बार की इस चटनी बनाने के लिए नहीं इस्तेमाल किया गया.
इन्हें यहाँ सिर्फ़ दिखाया गया है.
सबूत मिर्च,
दही,
सुखी
काचरीयां सबूत धनिया,लहसुन की छिली हुई कलियाँ, नमक, |
कचरी चटनी |
कच्ची ताजा कचरी चटनी |
काचरी/कचरी की चटनी
सामग्री :
काचरी 100 ग्राम, साबुत लाल सूखी मिर्च लहसुन की 10-12 कलियाँ, सूखा धनिया थोड़ा सा, दही दो बड़े चम्मच, नमक स्वादानुसार,
विधि :
काचरी और मिर्च थोड़े गरम पानी में एक घंटा भिगोइए। फिर उसमें धनिया,लहसुन,नमक व दही डालकर पीस लें।
आप इसे तड़का भी लगा सकती हैं...परन्तु यह बिना तड़के के भी बहुत स्वाद लगती हैं ...हाँ इसमें घी अथवा मक्खन जरूर मिला लें
तेल में जीरे का तड़का लगाकर उसमें पिसी चटनी डालकर थोड़ा भून लें।
इसे बाजरे की रोटी और लस्सी के साथ खायेँ और देखें फिर आप! सात पकवानों का स्वाद भूल जायेंगे
सूखी काचरी का पावडर खटाई के रूप में भी सब्जियों में डाला जा सकता है। यह मजेदार चटनी, खाने का स्वाद दोगुना कर देगी।
इंटरनेट से मिली जानकारी बताती है कि बाजरा मोटे अन्नों में सबसे अधिक उगाया जाने वाला अनाज है. इसे अफ्रीका और भारतीय महाद्वीप में प्रागेतिहासिक काल से उगाया जाता रहा है, यद्यपि इसका मूल अफ्रीका में माना गया है और यह भारत बाद में आया. हालांकि इसके भारत में इसे इसा पूर्व २००० वर्ष से उगाने के प्रमाण मिलते है ,इसका मतलब है कि यह अफ्रीका में इससे पहले ही उगाया जाने लगा था. बाजरे की विशेषता है सूखा प्रभावित क्षेत्र में भी उग जाना, ऊँचा तापक्रम झेल जाना ,यह अम्लीयता को भी झेल जाता है.
काचर थोक में होता है. उसके छिलके को उतारकर टुकड़ों में काट जाता है और धूप में सुखा लिया जाता है. सूखकर काचर, काचरी हो जाता है और काचरी की चटनी तो .. कहते हैं कि आजकल पांच सितारा होटलों में विशेष रूप से परोसी जाती है. काचरी की चटनी तो बनती ही है इसे कढ़ी में डाल दिया जाता है, सांगरी के साथ बना लिया जाता है या किसी और रूप में भी. कचरी की चटनी का सही स्वाद उसे साबुत लाल मिर्च के साथ कुंडी में या सिलबट्टे पर रखड़कर बनाने व खाने में ही है. काचर काचरी थार में घरों में छठ बारह महीने उपलब्ध रहते हैं. भोजन में स्वाद और बातों में रस घोलते रहते हैं.
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