अजोऽपि सन्नव्ययात्मा भूतानामीश्वरोऽपि सन् |
प्रकृतिं स्वामधिष्ठाय सम्भवाम्यात्ममायया || 6||
BG 4.5: Although I am unborn, the Lord of all living entities, and have an imperishable nature, yet I appear in this world by virtue of Yogmaya, my divine power.
Photo essay for programme of a book on Hindi "हाशिये उलाँघती स्त्री" means "Marginalized woman"translated poems of different languages(poets) of India.
the programm was sponsered by Sahitya_Akademi DELHI INDIA
प्रकृतिं स्वामधिष्ठाय सम्भवाम्यात्ममायया || 6||
BG 4.5: Although I am unborn, the Lord of all living entities, and have an imperishable nature, yet I appear in this world by virtue of Yogmaya, my divine power.
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वर्ष 2004 में रमणिका फ़ाउंडेशन की पत्रिका "युद्धरत आम आदमी" के दो विशेषांकों की योजना रमणिका गुप्ता जी ने बनाई थी। एक विशेषांक भारतीय भाषाओं की स्त्री कविता का और दूसरा स्त्री लेखन (गद्यभाग) का।
यह निस्संदेह एक बड़ी विशाल व श्रमसाध्य योजना थी। रमणिका जी ' अपने जुझारूपन, कर्मठता और अतीव उत्साह के लिए भी अपने आप में विशिष्ट उदाहरण हैं। उन दिनों मेरी बेटी रमणिका गुप्ता के घर पर ही रहा करती थी वह बताती थी कि, रमणिका जी रात-रात भर बैठ कर प्रूफ देखा करती थीं और विविध भारतीय भाषाओं की हिन्दी में अनूदित हो कर आई कविताओं के पुनर्लेखन की भी आवश्यकता पड़ा करती थी ताकि उन्हें हिन्दी के मुहावरे में सही सही ढाला जा सके। प्राप्त कविताओं में से कुछ कविताओं को उन दिनों रमणिका जी के साथ बैठ कर नए रूप में ढाला, ढलते देखा।
और परिणामतः "युद्धरत आम आदमी" का भास्कर संकलन "हाशिये उलाँघती स्त्री" दो खंडों में आ गया और
26 March 2011 को इनका लोकर्पक रमणिका फ़ाउंडेशन "युद्धरत आम आदमी" और साहित्य अकादमी के तत्वावधान में एक दिवसीय कार्यक्रम भव्य तरिके से सम्पन्न हुआ। देश भर से विभीन प्रांतों से विभिन्न भाषाओं की लेखिकाएं आई और उन्होंने अपनी-अपनी कविताएं पढ़ी. कार्यक्रम में मेरी फिल्म जगत की हीरोइन
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