वीतरागभयक्रोधा मन्मया मामुपाश्रिता: |
बहवो ज्ञानतपसा पूता मद्भावमागता: || 10||
Being freed from attachment, fear, and anger, becoming fully absorbed in me, and taking refuge in me, many persons in the past became purified by knowledge of me, and thus they attained my divine love.
Photo Essay
My daughter participated in a skit Lashkre Kawalli on 22 December 2012
संगीत से इंसान का रिश्ता पहलेपहल पक्षियों की चहचाहट से पहचान में आया होगा। फिर मानवीय सभ्यता के अगले मुकाम पर कुछ आगे चलते हुए इसी संगीत की एक बेहद खूबसूरत और कर्णप्रिय विधा " क़व्वाली " को सूफियों ने खुदा की इबादत का ज़रिया बनाया। संगीत की इसी पुरकशिश रिवायत को कल, यानी 21 दिसम्बर की शाम, इंडिया इस्लामिक केंद्र, लोदी रोड के सभागार में एक नए और अनोखे अंदाज़ में पेश किया। नाट्य निर्देशक थे जनाब दानिश इकबाल। उन्होंने डॉक्यूमेंट्री फिल्म की तर्ज पर बनाये गए अपने डॉक्यूमेंट्री नाटक, "लश्कर ए कव्वाली" में क़व्वाली ने विभिन्न आयामों को छुते हुए एक नायाब तरह की बानगी प्रस्तुत की, जिसमे कव्वाली के भारत में उद्गम, सूफी परंपरा में इसके महत्व से लेकर वर्तमान समय में "कव्वाली "के बिगड़ते स्वरुप और इसके अस्तित्व पर मंडराते खतरे को इस तरह से पेश किया कि हिंदी नाट्य जगत में "लश्कर ए कव्वाली" एक नये अध्याय के रूप में सामने आया और इसके साक्षात् प्रत्यक्षदर्शी बने सभागार में बैठे हुए मुग्ध और आत्मविभोर दर्शक। गौरतलब है कि 'राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय' और लन्दन से अभिनय में शिक्षा प्राप्त कर चुके 'दानिश इकबाल' अभिनय और निर्देशन के क्षेत्र में नये मील के पत्थर स्थापित करने को कृत संकल्प हैं। कल मंचित हुआ यह नाटक भी उसी की नयी और अगली कड़ी है। दानिश इकबाल को वर्ष 2004 में 'चार्ल्स वाल्लास अवार्ड ' और वर्ष 2010 में "संगीत नाटक अकादमी' का प्रतिष्ठित पुरस्कार वर्ष 2010 में 'उस्ताद बिस्मिल्लाह खान युवा रत्न अवार्ड' से नवाज़ा गया। भारतीय नाटय जगत में मूल नाटकों की कमी को लेकर जो चिंता जताई जा रही है उसे पूरा करने के लिए 'लश्कर ए क़व्वाली' जैसे मौलिक और तथ्य निर्धारित नाटक काफी हद तक कारगर सिद्ध हो सकते हैं।
My daughter in action
may daughter with other participants of skit
बहवो ज्ञानतपसा पूता मद्भावमागता: || 10||
Being freed from attachment, fear, and anger, becoming fully absorbed in me, and taking refuge in me, many persons in the past became purified by knowledge of me, and thus they attained my divine love.
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My daughter participated in a skit Lashkre Kawalli on 22 December 2012
संगीत से इंसान का रिश्ता पहलेपहल पक्षियों की चहचाहट से पहचान में आया होगा। फिर मानवीय सभ्यता के अगले मुकाम पर कुछ आगे चलते हुए इसी संगीत की एक बेहद खूबसूरत और कर्णप्रिय विधा " क़व्वाली " को सूफियों ने खुदा की इबादत का ज़रिया बनाया। संगीत की इसी पुरकशिश रिवायत को कल, यानी 21 दिसम्बर की शाम, इंडिया इस्लामिक केंद्र, लोदी रोड के सभागार में एक नए और अनोखे अंदाज़ में पेश किया। नाट्य निर्देशक थे जनाब दानिश इकबाल। उन्होंने डॉक्यूमेंट्री फिल्म की तर्ज पर बनाये गए अपने डॉक्यूमेंट्री नाटक, "लश्कर ए कव्वाली" में क़व्वाली ने विभिन्न आयामों को छुते हुए एक नायाब तरह की बानगी प्रस्तुत की, जिसमे कव्वाली के भारत में उद्गम, सूफी परंपरा में इसके महत्व से लेकर वर्तमान समय में "कव्वाली "के बिगड़ते स्वरुप और इसके अस्तित्व पर मंडराते खतरे को इस तरह से पेश किया कि हिंदी नाट्य जगत में "लश्कर ए कव्वाली" एक नये अध्याय के रूप में सामने आया और इसके साक्षात् प्रत्यक्षदर्शी बने सभागार में बैठे हुए मुग्ध और आत्मविभोर दर्शक। गौरतलब है कि 'राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय' और लन्दन से अभिनय में शिक्षा प्राप्त कर चुके 'दानिश इकबाल' अभिनय और निर्देशन के क्षेत्र में नये मील के पत्थर स्थापित करने को कृत संकल्प हैं। कल मंचित हुआ यह नाटक भी उसी की नयी और अगली कड़ी है। दानिश इकबाल को वर्ष 2004 में 'चार्ल्स वाल्लास अवार्ड ' और वर्ष 2010 में "संगीत नाटक अकादमी' का प्रतिष्ठित पुरस्कार वर्ष 2010 में 'उस्ताद बिस्मिल्लाह खान युवा रत्न अवार्ड' से नवाज़ा गया। भारतीय नाटय जगत में मूल नाटकों की कमी को लेकर जो चिंता जताई जा रही है उसे पूरा करने के लिए 'लश्कर ए क़व्वाली' जैसे मौलिक और तथ्य निर्धारित नाटक काफी हद तक कारगर सिद्ध हो सकते हैं।
My daughter in action
may daughter with other participants of skit
may daughter with other participants of skit |
My daughter in veil |
My daughter |
Participants of Lashkre Kawalli. xxxxxxxxxxxxxxxxx |
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